Rajasthan News: राजस्थान में जल संकट से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया जा रहा है। देश में पहली बार कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) की तकनीक का उपयोग जयपुर के रामगढ़ बांध में किया जाएगा। यह प्रयोग जुलाई 2025 के अंत में होने की संभावना है, जिसमें ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से बादलों में रासायनिक पदार्थ डालकर बारिश कराने की योजना है। इस पहल के पीछे राजस्थान के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा का विशेष योगदान है, जिनके निर्देश पर यह परियोजना शुरू की गई है।
कृत्रिम बारिश का उद्देश्य और तकनीक
रामगढ़ बांध, जो कभी जयपुर की जीवन रेखा माना जाता था और 1982 के एशियाड नौकायन जैसे आयोजनों का गवाह रहा, पिछले कुछ वर्षों से पानी की कमी से जूझ रहा है। इस बांध को पुनर्जनन देने और क्षेत्र में जल स्तर बढ़ाने के लिए यह प्रयोग किया जा रहा है। कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया में ड्रोन के माध्यम से बादलों में सोडियम क्लोराइड जैसे रासायनिक पदार्थ छोड़े जाएंगे, जो बादलों को घना करके बारिश की संभावना को बढ़ाएंगे। इस तकनीक को लागू करने के लिए एक अमेरिकी कंपनी के विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है, जिन्होंने पर्यावरण से संबंधित सभी विभागों के साथ विचार-विमर्श कर इसकी रूपरेखा तैयार की है।
डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की भूमिका
राजस्थान के कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने इस परियोजना को जनहित में एक क्रांतिकारी कदम बताया है। उन्होंने कहा, “यह पहल न केवल रामगढ़ बांध को पुनर्जनन देगी, बल्कि सूखे की समस्या से जूझ रहे राजस्थान के अन्य क्षेत्रों के लिए भी एक मिसाल बनेगी।
चुनौतियां और संभावनाएं
हालांकि यह तकनीक आशाजनक है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम बारिश की सफलता मौसम की परिस्थितियों, बादलों की उपलब्धता और तकनीकी सटीकता पर निर्भर करती है। इसके अलावा, पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर भी कुछ सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें संबंधित विभागों द्वारा जांचा जा रहा है। फिर भी, इस प्रयोग को जल संरक्षण और कृषि क्षेत्र के लिए एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है।
मौसम का ताजा अपडेट
हाल के मौसम अपडेट के अनुसार, राजस्थान में मानसून की सक्रियता के कारण कई जिलों में भारी बारिश हो रही है। मौसम विभाग ने 27-28 जुलाई के आसपास पूर्वी राजस्थान में फिर से भारी बारिश की संभावना जताई है। ऐसे में कृत्रिम बारिश का यह प्रयोग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह तकनीक उन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बढ़ा सकती है जहां प्राकृतिक बारिश अपर्याप्त है।

