Questions about the BJP government’s atrocities in Ladakh News: लद्दाख में हाल की हिंसा के बाद तनाव चरम पर है। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गितांजली जे. अंगमो ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए एक चौंकाने वाला सवाल उठाया है- “क्या भारत वाकई आजाद है?” उन्होंने ब्रिटिश राज के साथ तुलना करते हुए दावा किया है कि गृह मंत्रालय (एमएचए) के आदेश पर लद्दाख पुलिस 3 लाख लद्दाखियों पर अत्याचार कर रही है। यह बयान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर वायरल हो गया है, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है।
गितांजली अंगमो, जो हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स (एचएआईएल) की सीईओ भी हैं, ने अपने पोस्ट में लिखा, “1857 में, 24,000 ब्रिटिशर्स ने 1,35,000 भारतीय सिपाहियों का इस्तेमाल रानी के आदेश पर 30 करोड़ भारतीयों को दबाने के लिए किया। आज, दर्जन भर प्रशासक 2,400 लद्दाखी पुलिस का दुरुपयोग एमएचए के आदेश पर 3 लाख लद्दाखियों को दबाने और यातना देने के लिए कर रहे हैं।” उनका यह बयान लद्दाख में 24 सितंबर को हुई हिंसक झड़पों के बाद आया है, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 80 से अधिक घायल हुए।
स्टेटहुड और संवैधानिक सुरक्षा की मांग
लद्दाख का यह आंदोलन चार साल से अधिक समय से चल रहा है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला, लेकिन स्थानीय लोग राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। यह अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करती है, जो पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय रोजगार और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए जरूरी मानी जाती है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने इन मांगों पर “झूठे वादे” किए हैं, जिससे बेरोजगारी और आर्थिक संकट बढ़ा है।
सोनम वांगचुक, जो मैगसेसे पुरस्कार विजेता हैं और ‘3 इडियट्स’ फिल्म के प्रोटोटाइप माने जाते हैं, इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे हैं। उन्होंने हाल ही में भूख हड़ताल की, लेकिन 24 सितंबर को लेह में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक हो गया।
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया, तो पुलिस ने फायरिंग की। इसके बाद वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत गिरफ्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया गया। गितांजली ने आरोप लगाया कि यह गिरफ्तारी “विच-हंट” (झाड़ू लगाने जैसी कार्रवाई) है और वांगचुक पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से जुड़े होने के झूठे इल्जाम लगाए जा रहे हैं।
पाक लिंक के आरोपों को खारिज
गितांजली ने कहा, “अगर भारत पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलता है, तो क्या हमारे खिलाड़ी आईएसआई एजेंट हो जाते हैं? यह वैज्ञानिक सम्मेलन था हिमालयी ग्लेशियरों पर, राजनीतिक नहीं।” उन्होंने वांगचुक की विदेश यात्राओं को जलवायु मुद्दों से जोड़ा और एफसीआरए (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम) उल्लंघन के आरोपों को भी “चरित्र हनन” बताया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि एक आदिवासी के तौर पर राष्ट्रपति इस दर्द को समझेंगी। साथ ही, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर वांगचुक की तत्काल रिहाई की मांग की है।
लद्दाख के उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार लद्दाख की “सभी आशाओं को पूरा करने” के लिए काम कर रही है और जल्द संवाद से मुद्दा सुलझेगा। लेकिन सिविल सोसाइटी ग्रुप्स ने बातचीत से हाथ खींच लिया है और वांगचुक की रिहाई व पुलिस फायरिंग की न्यायिक जांच की मांग की है।
कर्फ्यू, जांच और राजनीतिक बहस
24 सितंबर की हिंसा के बाद लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया था, जो अब धीरे-धीरे ढिला रहा है। लद्दाख प्रशासन ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं। विपक्षी नेता और कार्यकर्ता इसे “लोकतंत्र पर हमला” बता रहे हैं, जबकि कुछ सोशल मीडिया पोस्ट वांगचुक पर “भड़काऊ भाषण” का आरोप लगा रहे हैं। लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा ने कहा, “लद्दाखियों को एंटी-नेशनल बताने की साजिश हो रही है, जबकि उन्होंने देश के लिए बलिदान दिए हैं।”
यह विवाद लद्दाख की शांतिपूर्ण छवि को झकझोर रख दिया है। पर्यटकों का केंद्र रहे इस हिमालयी क्षेत्र में अब बेरोजगारी और पर्यावरण चिंताएं प्रमुख हैं। गितांजली के सवाल ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है- क्या आजादी सिर्फ नाम की है, या वाकई हर नागरिक को न्याय मिल रहा है? आंदोलनकारी उम्मीद कर रहे हैं कि केंद्र जल्द मांगें माने, वरना तनाव और बढ़ सकता है।

