आज के मुख्य कार्यक्रम: सम्मेलन और संयुक्त बयान
आज सुबह 11 बजे राष्ट्रपति भवन में पुतिन का औपचारिक स्वागत हुआ, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया। इसके बाद पुतिन ने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। दोपहर 11:50 बजे हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता शुरू हो चुकी है, जो दोपहर 1:50 बजे संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के साथ समाप्त होगी। दिल्ली में यातायात प्रतिबंधों के कारण सेंट्रल दिल्ली के इलाकों जैसे मदर टेरेसा क्रिसेंट, तीन मूर्ति मार्ग और आईटीओ चौक पर सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक आवागमन सीमित रहा।
पुतिन आज शाम 7 बजे राष्ट्रपति मुर्मू से मुलाकात करेंगे और रात्रिभोज के बाद रात 9 बजे मॉस्को लौट जाएंगे। यह लगभग 27 घंटे की यात्रा रूस-भारत के ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ को मजबूत करने पर केंद्रित है।
समझौते और चर्चाएं: रक्षा-व्यापार पर फोकस
वार्ता में रक्षा, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्र प्रमुख रहे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 4 दिसंबर को रूसी समकक्ष आंद्रेई बेलूसोव के साथ 22वीं भारत-रूस सैन्य-तकनीकी आयोग की बैठक की, जहां एस-400/500 वायु रक्षा प्रणाली, सु-30 लड़ाकू विमानों का उन्नयन और आर-37 हवा-से-हवा मिसाइलों की आपूर्ति पर सहमति बनी। सिंह ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर जोर देते हुए कहा कि रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बना रहेगा।
व्यापार के मोर्चे पर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि द्विपक्षीय व्यापार 70 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है और 2030 तक 100 अरब डॉलर पार करने का लक्ष्य है। भारत के उपभोक्ता सामान, कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात बढ़ाने पर सहमति हुई। रूस ने भारतीय मछली, मांस और डेयरी उत्पादों के आयात की इच्छा जताई, साथ ही पशु चिकित्सा वैक्सीन और स्वास्थ्य प्रबंधन में सहयोग पर चर्चा हुई। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रूसी समकक्ष ओक्साना लुत से आधुनिक खेती, नवाचार और सतत विकास पर बात की।
ऊर्जा क्षेत्र में, रोसाटॉम ने कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के तीसरे रिएक्टर के लिए पहला परमाणु ईंधन का जखीरा पहुंचाया। कुल छह रिएक्टरों से 6,000 मेगावाट क्षमता वाला यह संयंत्र भारत की ऊर्जा जरूरतों को मजबूत करेगा। शिक्षा और संस्कृति में, रूसी शिक्षा एजेंसी ने दिल्ली में शाखा खोली, जो रूस में अध्ययन और रोजगार के अवसर प्रदान करेगी। पीएम मोदी ने पुतिन को रूसी भाषा में भगवद्गीता की प्रति भेंट की, कहा- “गीता की शिक्षाएं दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।”
यूक्रेन मुद्दे पर पुतिन ने कहा कि भारत-रूस सहयोग किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं है, लेकिन कुछ ‘बाहरी तत्व’ ऊर्जा संबंधों में बाधाएं डाल रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शांति पहल के बीच यह बयान महत्वपूर्ण है।
पुतिन की भारत यात्राएं: 17 बार का रिकॉर्ड
पुतिन भारत के सबसे अधिक यात्रा करने वाले रूसी राष्ट्रपति हैं। 2000 से अब तक उनकी यह 17वीं यात्रा है। प्रमुख यात्राओं में 2000 (नई दिल्ली), 2004 (बैंगलोर), 2007 (नई दिल्ली), 2010 (नई दिल्ली), 2012, 2014, 2015, 2018 (सोची अनौपचारिक), 2019 (वडोदरा), 2021 (नई दिल्ली) शामिल हैं। 2021 के बाद यह पहली यात्रा है, जब यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक संबंधों को प्रभावित किया। इन यात्राओं ने रक्षा (जैसे ब्रह्मोस मिसाइल), ऊर्जा (न्यूक्लियर डील) और व्यापार समझौतों को मजबूत किया।
जासूस से राष्ट्रपति: पुतिन की KGB पृष्ठभूमि और सत्ता की सीढ़ी
पुतिन की कहानी एक साधारण लड़के से KGB जासूस और फिर रूसी सत्ता के शिखर तक की है। 7 अक्टूबर 1952 को लेनिनग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) में जन्मे पुतिन का बचपन साम्यवादी कम्युनल फ्लैट में बीता। जूडो और सैन्यीकरण से प्रेरित होकर 1975 में लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री लेने के बाद वे सीधे KGB में शामिल हो गए। 16 साल तक विदेशी खुफिया अधिकारी के रूप में सेवा की, जर्मनी में NATO रहस्य चुराने का काम किया और लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर रिटायर हुए (1991)।
सोवियत संघ के विघटन के बाद सेंट पीटर्सबर्ग में मेयर अनातोली सोबचाक के डिप्टी बने। 1996 में मॉस्को पहुंचे और राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के प्रशासन में तेजी से ऊंचे पद हासिल किए। 1998 में FSB (KGB का उत्तराधिकारी) के डायरेक्टर बने, फिर सिक्योरिटी काउंसिल के सचिव। अगस्त 1999 में येल्तसिन ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया। चेचन्या युद्ध में कठोर रुख से लोकप्रियता हासिल की। 31 दिसंबर 1999 को येल्तसिन के इस्तीफे के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और मार्च 2000 के चुनाव में 53% वोटों से जीते।
2008 में संविधानिक सीमा के कारण प्रधानमंत्री बने, लेकिन 2012 में फिर राष्ट्रपति। 2020 के संशोधन से दो और कार्यकाल संभव हुआ। पुतिन का शासन रूस को ‘महाशक्ति’ बनाने पर केंद्रित रहा, लेकिन आलोचक इसे सत्तावादी
विचारधारा वाला बताते हैं।
निष्कर्ष: मजबूत साझेदारी का संदेश
यह यात्रा भारत-रूस संबंधों के 75 वर्षों को मजबूत करती है, जो 1955 के इंडो-सोवियत समझौते से शुरू हुए। पुतिन की जासूसी पृष्ठभूमि से निकली रणनीतिक सोच आज भी रूस की विदेश नीति को आकार दे रही है। वैश्विक तनावों के बीच भारत की तटस्थता ने इस साझेदारी को और प्रासंगिक बना दिया है। अधिक अपडेट के लिए बने रहें।

