Tianjin News: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सोमवार को चीन के तियानजिन में आयोजित 25वें शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) राष्ट्राध्यक्ष परिषद शिखर सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध को सुलझाने के लिए भारत और चीन के कूटनीतिक प्रयासों की सराहना की। इस दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो के उस विवादित बयान का खंडन किया, जिसमें नवारो ने यूक्रेन संघर्ष को ‘मोदी का युद्ध’ करार दिया था। पुतिन ने इस संघर्ष की जड़ों के लिए नाटो और पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप को जिम्मेदार ठहराया था।
पुतिन का संबोधन और भारत-चीन की भूमिका
एससीओ शिखर सम्मेलन के सत्र को संबोधित करते हुए पुतिन ने कहा, “मैं यूक्रेन संकट को सुलझाने के लिए भारत और चीन के प्रयासों की सराहना करता हूं। दोनों देशों ने संवाद और कूटनीति के माध्यम से शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।” उन्होंने यह भी बताया कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अलास्का में हुई अपनी हालिया बैठक के विवरण एससीओ नेताओं के साथ द्विपक्षीय चर्चाओं में साझा करेंगे। पुतिन ने मॉस्को के रुख को दोहराते हुए कहा कि यूक्रेन संकट का मूल कारण कीव में पश्चिमी देशों के समर्थन से हुआ तख्तापलट है, न कि रूस का कोई आक्रमण।
नवारो के बयान का खंडन
पुतिन ने व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो के उस दावे को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें नवारो ने कहा था कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर युद्ध को बढ़ावा दे रहा है। नवारो ने ब्लूमबर्ग टीवी को दिए एक साक्षात्कार में दावा किया था कि “यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर जाता है” और इसे “मोदी का युद्ध” करार दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर दे, तो उसे अमेरिकी टैरिफ में 25% की छूट मिल सकती है।
पुतिन ने इस बयान को तथ्यहीन बताते हुए कहा कि यह संघर्ष नाटो और पश्चिमी देशों की नीतियों का परिणाम है, न कि भारत की ऊर्जा नीतियों का। उन्होंने भारत के संतुलित कूटनीतिक रुख की प्रशंसा की और कहा कि भारत ने हमेशा शांति और संवाद का समर्थन किया है।
भारत का रुख और अमेरिकी टैरिफ
भारत ने रूस से तेल खरीद को लेकर अमेरिकी दबाव की कड़ी आलोचना की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मॉस्को में अपने बयान में स्पष्ट किया था कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए स्वतंत्र निर्णय लेता रहेगा। उन्होंने कहा, “रूस से तेल खरीदने का फैसला भारत का है, और जिन देशों को इससे परेशानी है, वे भी इसे खरीदना बंद कर सकते हैं।”
अमेरिका ने हाल ही में भारत पर रूस से तेल खरीदने के कारण 50% तक टैरिफ लागू किया है, जिसमें 25% अतिरिक्त शुल्क शामिल है। भारत ने इसे “अनुचित” और “अव्यावहारिक” करार देते हुए कहा कि यह न केवल द्विपक्षीय व्यापार को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि वैश्विक बाजार पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
मोदी की कूटनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से फोन पर बात की थी, जिसमें उन्होंने यूक्रेन संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। मोदी ने जुलाई 2024 में मॉस्को और अगस्त 2024 में कीव की अपनी यात्राओं के दौरान भी दोनों पक्षों के साथ संवाद बनाए रखा। उन्होंने 2022 में समरकंद एससीओ शिखर सम्मेलन में पुतिन से कहा था, “यह युद्ध का युग नहीं है,” जिसकी विश्व स्तर पर सराहना हुई थी।
यूक्रेन का दृष्टिकोण
यूक्रेन के राजदूत ने हाल ही में कहा कि भारत के रूसी तेल खरीदने से यूक्रेन को कोई नुकसान नहीं है। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय हितों को समझने की बात कही और द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से इस मुद्दे को सुलझाने की वकालत की।
अमेरिका की आलोचना
अमेरिका के प्रभावशाली ज्यूइश एडवोकेसी ग्रुप, अमेरिकन ज्यूइश कमेटी (AJC) ने नवारो के बयानों को “गलत और परेशान करने वाला” बताया। समूह ने कहा कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए जिम्मेदार नहीं है और उसकी ऊर्जा जरूरतें वास्तविक हैं। AJC ने अमेरिका-भारत संबंधों में “रीसेट” की आवश्यकता पर जोर दिया।
निष्कर्ष
एससीओ शिखर सम्मेलन में पुतिन का बयान भारत की संतुलित कूटनीति और शांति प्रयासों की वैश्विक स्वीकृति को बढ़ावा दिया है। भारत ने न केवल रूस और यूक्रेन के साथ संवाद बनाए रखा, बल्कि अमेरिकी दबाव के बावजूद अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की है। तियानजिन में पुतिन और मोदी की द्विपक्षीय बैठक पर वैश्विक नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह यूक्रेन संकट के समाधान और वैश्विक स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

