पुष्कर मेला 2025, जो 30 अक्टूबर से 5 नवंबर तक आयोजित हो रहा है, इस बार भी ऊंटों-घोड़ों की सजावट, नृत्य प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जाना जा रहा है। लेकिन मूंछ प्रतियोगिता ने एक बार फिर अपनी अलग पहचान बनाई। जजों ने मूंछों की लंबाई, घनत्व, सजावट और प्रस्तुति के आधार पर विजेताओं का चयन किया। जानकारी के मुताबिक, ढाई फीट लंबी मूंछों वाले हिमांशु गुर्जर ने विरासत का जलवा बिखेरा, जबकि पाली के पीटीआई टीचर विक्रम सिंह ने अपनी स्टाइलिश मूंछों से सबका ध्यान खींचा। रेलवे कर्मचारी मोहन सिंह रावत ने बताया कि वे 1990 से अपनी मूंछ और दाढ़ी को पारंपरिक तेलों व देसी नुस्खों से संवार रहे हैं और 2005 से इस प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं।
प्रतिभागियों ने साझा किया कि मूंछें उनके लिए सिर्फ शारीरिक सजावट नहीं, बल्कि राजपूतानी शान और सम्मान का प्रतीक हैं। एक प्रतिभागी ने कहा, “मूंछें हमारी पहचान हैं, इन्हें संभालना हमारी जिम्मेदारी।” आयोजकों के अनुसार, यह प्रतियोगिता हर साल पुष्कर मेले की विशेष आकर्षण बन चुकी है, जो विदेशी पर्यटकों को भी भारतीय परंपराओं से जोड़ती है। इस बार मेले में अमेरिका, जर्मनी, स्पेन, इटली और फ्रांस जैसे देशों से आए सैलानी भी मौजूद थे, जिन्होंने राजस्थानी मूंछों की तारीफ की।
मूंछ प्रतियोगिता के अलावा, सोमवार को ‘लगान’ स्टाइल क्रिकेट मैच में देसी टीम ने विदेशी खिलाड़ियों को हराया, जबकि साफा बांधने की प्रतियोगिता में अर्जेंटीना के कपल पाब्लो और कोस्टा ने मात्र 15 सेकंड में बाजी मार ली। विदेशी मेहमानों ने कहा, “राजस्थान की पगड़ी सम्मान की निशानी है, अब भारत अपना सा लगता है।” मेले में अब तक 3 करोड़ रुपये से अधिक के पशुओं की खरीद-फरोख्त हो चुकी है, जिसमें 35 लाख का भैंसा ‘अनमोल’ और 11 करोड़ का घोड़ा ‘बादल’ चर्चा का केंद्र बने हुए हैं।
पुष्कर मेला, जो भगवान ब्रह्मा के तीर्थस्थल पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगता है, न केवल पशु व्यापार का केंद्र है, बल्कि लोक संस्कृति, अध्यात्म और पर्यटन का अनोखा संगम भी। इस बार पर्यटन विभाग ने प्लास्टिक-फ्री मेला क्षेत्र और साफ-सफाई पर विशेष जोर दिया है। शाम को रूप कुमार राठौड़ और सोनाली राठौड़ के संगीत कार्यक्रम ने रंग जमाया। मंगलवार को ऊंट नृत्य और घोड़ा दौड़ जैसी अन्य प्रतियोगिताएं होंगी, जो मेले को और रोमांचक बनाएंगी।
यह मेला राजस्थान की जीवंत परंपराओं को दुनिया के सामने लाने का माध्यम बन चुका है, जहां रेगिस्तान के जहाज ऊंटों की घंटियां और लोकगीतों की धुनें आस्था का जश्न मनाती हैं।

