पुरोला मामले में नए नए मोड़ आते जा रहे है। अब इस मामले में ऐसा खुलासा हुआ है जिसे सुनेगे तो हैरान हो जाएंगे। बताया जा रहा है कि आरोपियों का किसी तरह का बचाव न किए जाने के बावजूद निरंतर उग्र माहौल बनाए रखना और इसके लिए विभिन्न बाजारों को बंद रखना एक सुनियोजित कार्यवाही प्रतीत होती है। जिसके निशाने पर अल्पसंख्यक समाज के वे लोग हैं, जिनका कोई मामले में लेनादेना नहीं है। द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मामले के एक जांच अधिकारी ने लव जिहाद से कोई लेना-देना होने से इनकार किया है। आईयू के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, लड़की इन लोगों को नहीं जानती थी … कोई लव जिहाद एंगल नहीं है।
दरअसल, उत्तराखंड में पहले से ही जबरन-धर्मांतरण विरोधी कानून (anti-forceful religious conversion law) मौजूदा है, जिसे लोकप्रिय रूप से व जिहाद कानून कहा जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा कोई अधिनियम लागू नहीं किया गया है।
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रैलियों, पोस्टरों में मुसलमानों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी
इसके बाद जल्द ही, क्षेत्र में तनाव फैल गया। 29 मई को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा पुरोला में एक बड़ी रैली निकाली गई, जिसमें मुसलमानों को शहर छोड़ने की मांग की गई। रैली के वीडियो वायरल हुए। इसमें पुलिस की मौजूदगी के बावजूद भीड़ को मुस्लिमों की दुकानों पर हमला करते देखा जा सकता है।
उत्तरकाशी के पुरोला में कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर उसकी शादी कराने की साजिश में एक हिंदू युवक के साथ मुस्लिम लड़के के शामिल होने की घटना के बाद मुस्लिमों के खिलाफ पूरा उत्तराखण्ड एकजुट हो गया है और मुस्लिममुक्त उत्तराखण्ड की मुहिम तेज हो गयी है। लैंड जिहाद वाले सीएम धामी के शासन में दक्षिणपंथी संगठनों की शह पर इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में मुस्लिमों के खिलाफ जगह जगह लोगों का गुस्सा फूट रहा है, मुस्लिम दुकानदार प्रदेश छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।
इस घटना के बाद निर्दोष अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए तत्काल ठोस उपाय किए जाए। किसी को भी भीड़ हिंसा और नफरत फैलाने की अनुमति न दिये जाने व उच्चतम न्यायालय द्वारा भीड़ हिंसा रोकने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर नोडल अफसर नियुक्त करने आदि मांगों को लेकर रामनगर एसडीएम के माध्यम से विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने 9 जून को राज्यपाल को ज्ञापन प्रेषित किया।