President Donald Trump’s controversial $100,000 fee: अमेरिकी राज्यों ने एच-1बी वीजा शुल्क पर मुकदमा, तकनीकी क्षेत्र पर पड़ेगा गहरा असर

President Donald Trump’s controversial $100,000 fee: अमेरिका के 20 राज्यों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विवादास्पद 1 लाख डॉलर (करीब 84 लाख रुपये) के एच-1बी वीजा शुल्क को चुनौती देते हुए शुक्रवार को संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया गया है। यह मुकदमा बोस्टन की संघीय अदालत में दाखिल किया गया है और ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को असंवैधानिक तथा अवैध बताते हुए इसे रद्द करने की मांग करता है। कैलिफोर्निया के महान्यायवादी रॉब बोंटा के नेतृत्व में दायर इस मुकदमे में न्यूयॉर्क, मैसाचुसेट्स, इलिनोइस, न्यू जर्सी, वाशिंगटन समेत अन्य राज्य शामिल हैं।

एच-1बी वीजा कार्यक्रम उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों को अमेरिकी कंपनियों में नौकरियां दिलाने के लिए जाना जाता है, खासकर तकनीकी क्षेत्र में। ट्रंप ने सितंबर 2025 में इस शुल्क की घोषणा की थी, जो वर्तमान में 2,000 से 5,000 डॉलर (करीब 1.7 से 4.2 लाख रुपये) के बीच होने वाले शुल्क को कई गुना बढ़ा देता है। कैलिफोर्निया के महान्यायवादी कार्यालय ने बयान जारी कर कहा कि यह शुल्क वीजा कार्यक्रम के प्रशासनिक खर्च को कवर करने से कहीं अधिक है और राष्ट्रपति को राजस्व जुटाने का अधिकार नहीं है, जो संविधान के अनुसार कांग्रेस का विशेषाधिकार है।

बोंटा ने कहा, “यह शुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं के प्रदाताओं पर अनावश्यक वित्तीय बोझ डालेगा, जिससे श्रमिकों की कमी बढ़ेगी और सेवाओं में कटौती हो सकती है।” तकनीकी उद्योग, जहां सिलिकॉन वैली जैसी जगहों पर कई कंपनियां स्थित हैं, इस वीजा पर अत्यधिक निर्भर है। आलोचकों का मानना है कि यह नीति अमेरिकी श्रमिकों की नौकरियों को बचाने के बहाने विदेशी प्रतिभाओं को रोकने की कोशिश है।

यह मुकदमा ट्रंप के इस फैसले के खिलाफ तीसरा कानूनी हमला है। इससे पहले अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स और यूनियनों, नियोक्ताओं तथा धार्मिक समूहों के गठबंधन ने अलग-अलग मुकदमे दायर किए थे। वाशिंगटन डीसी की एक अदालत में चैंबर के मुकदमे की सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित है। ट्रंप प्रशासन ने अन्य मुकदमों के जवाब में कहा है कि यह शुल्क राष्ट्रपति की शक्तियों का वैध प्रयोग है और एच-1बी कार्यक्रम के दुरुपयोग को रोकने में मदद करेगा। प्रशासन का दावा है कि यह शुल्क अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने वाले विदेशी नागरिकों के प्रवेश को सीमित करने के लिए संघीय आप्रवासन कानून के तहत जारी किया गया है।

एच-1बी वीजा के आलोचक, जिनमें ट्रंप समर्थक शामिल हैं, इसे अमेरिकी श्रमिकों को कम वेतन वाले विदेशी कर्मचारियों से प्रतिस्थापित करने का साधन बताते हैं। वहीं, व्यवसाय समूहों और प्रमुख कंपनियों का कहना है कि यह वीजा योग्य अमेरिकी श्रमिकों की कमी को पूरा करने का महत्वपूर्ण माध्यम है। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मुकदमे से मामला समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि ट्रंप प्रशासन के बचाव पर राज्य सरकारों ने जवाबी दलीलें दाखिल की हैं।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई है। कई उपयोगकर्ताओं ने इसे “अमेरिकी नवाचार के लिए झटका” करार दिया है, जबकि अन्य ने ट्रंप की नीति का समर्थन करते हुए इसे “अमेरिका फर्स्ट” का हिस्सा बताया। उदाहरण के लिए, एक पोस्ट में कहा गया, “ट्रंप का यह कदम अमेरिकी मजदूरों की कमाई को प्रभावित करने वाले वीजा कार्यक्रम पर सही प्रहार है।”

यह मुकदमा अमेरिकी आप्रवासन नीति पर ट्रंप के सख्त रुख का एक और उदाहरण है, जो 2025 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद और तेज हो गया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अदालती फैसला तकनीकी कंपनियों और भारतीय आईटी पेशेवरों पर सीधा असर डालेगा, क्योंकि भारत एच-1बी वीजा के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है। मामले की अगली सुनवाई का इंतजार किया जा रहा है।

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