प्रदूषण के मुख्य कारणों में वाहनों का धुआं, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना, निर्माण कार्यों से धूल और मौसमी कारक जैसे कम हवा की गति शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर भारत का पूरा गंगा मैदान इस समय ‘गैस चैंबर’ जैसा बन गया है।
सख्त उपाय लागू, लेकिन राहत नहीं
केंद्र सरकार की एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन (सीएक्यूएम) ने जीआरएपी-4 के तहत सबसे सख्त प्रतिबंध लागू किए हैं:
• दिल्ली में गैर-बीएस-6 वाहनों के प्रवेश पर रोक।
• वैध पीयूसी सर्टिफिकेट के बिना पेट्रोल-डीजल नहीं मिलेगा।
• निर्माण और विध्वंस कार्य पूरी तरह बंद।
• स्कूलों में छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेस अनिवार्य।
• सरकारी और निजी कार्यालयों में 50% स्टाफ वर्क फ्रॉम होम।
इन उपायों से सड़कों पर वाहनों की संख्या में कमी आई है और पीयूसी सर्टिफिकेट जारी करने में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। फिर भी, AQI में सुधार सीमित रहा है।
संसद सत्र में प्रदूषण पर चर्चा रद्द
संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर होने वाली महत्वपूर्ण चर्चा रद्द हो गई। विपक्षी सांसदों ने इस मुद्दे पर बहस की मांग की थी, लेकिन सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने से चर्चा नहीं हो सकी। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव जवाब देने वाले थे, लेकिन अन्य विधेयकों पर हंगामे के कारण यह मुद्दा लटक गया। विपक्ष ने इसे जनस्वास्थ्य की अनदेखी बताया।
अस्पतालों में सांस की दवाओं की कमी, मरीज परेशान
प्रदूषण से सांस की बीमारियों में इजाफा हुआ है। दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल लोक नायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) में नेबुलाइजर सॉल्यूशन, कफ सिरप, इनहेलर और मल्टीविटामिन जैसी जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। मरीजों को बाहर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। गरीब मरीज सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। अस्पताल प्रशासन ने टिप्पणी करने से इनकार किया, जबकि स्वास्थ्य विभाग ने कोई जवाब नहीं दिया। सूत्रों के अनुसार, दवाओं की खरीद प्रक्रिया में देरी इसका मुख्य कारण है।
केंद्र की भूमिका पर सवाल
विशेषज्ञ और संपादकीय टिप्पणियां केंद्र सरकार से अमेरिका की ईपीए जैसी मजबूत राष्ट्रीय एजेंसी बनाने की मांग कर रही हैं, जो प्रदूषण नियंत्रण में दांतेदार अधिकार रखे। राज्य अलग-अलग लड़ रहे हैं, लेकिन प्रदूषण सीमाओं को नहीं मानता। केंद्र ने 2019 में नेशनल क्लीन एयर पॉलिसी शुरू की, लेकिन फंड उपयोग कम होने और प्रवर्तन की कमी से प्रभाव सीमित रहा।
दिल्ली वाले लगातार स्मॉग की मार झेल रहे हैं। आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में तकलीफ आम हो गई है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर है। केंद्र और राज्य मिलकर ठोस रोडमैप बनाएं, ताकि यह वार्षिक संकट खत्म हो। फिलहाल, राहत की कोई आसार नजर नहीं आ रही।

