लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2027 को लेकर राजनीतिक बिसात बिछाई जा रही है। सीएम योगी के बयान ने सबको चैंका कर रख दिया है। SIR को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हालिया बयान के बाद राज्य की राजनीति में नई हलचल तेज हो गई है। विपक्ष के साथ-साथ अब ’’भारतीय जनता पार्टी (BJP)’’ के अंदर भी इसे लेकर असहजता और खलबली देखी जा रही है। पार्टी के भीतर चल रही यह हलचल केवल एक बयान तक सीमित नहीं मानी जा रही, बल्कि इसे ’’केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीतिक राजनीति और “मास्टर स्ट्रोक”’’ के रूप में देखा जा रहा है।
सीएम योगी के बयान से बढ़ा सियासी पारा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने SIR को लेकर जिस तरह से अपनी बात रखी, उसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। माना जा रहा है कि यह बयान केवल प्रशासनिक सुधार या व्यवस्था से जुड़ा नहीं, बल्कि इसके ’’राजनीतिक मायने भी काफी गहरे हैं’’। विपक्ष ने जहां इसे सत्ता के भीतर मतभेद का संकेत बताया, अखिलेश तो स्पष्ट शब्दों में बोलें कि केन्द्र और प्रदेश में कुछ ठीक नही है। वहीं भाजपा के अंदर भी इसे लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं।
BJP के अंदर क्यों मची खलबली?
पार्टी सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री के बयान के बाद ’’प्रदेश संगठन और सरकार के बीच संतुलन को लेकर सवाल उठने लगे हैं’’। खासकर ऐसे समय में जब ’’पंकज चैधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद संगठन में नए समीकरण उभर रहे हैं’’, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक रूप से घेरने की कोशिशें तेज हुई हैं। यह भी चर्चा है कि संगठन को मजबूत करने और आगामी चुनावी रणनीति के तहत ’’केंद्रीय नेतृत्व राज्य में शक्ति संतुलन को नए सिरे से परिभाषित करना चाहता है’’। इसी क्रम में एसआईआर को लेकर दिया गया बयान एक बड़े राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। अमित शाह का ‘मास्टर स्ट्रोक’? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पूरा घटनाक्रम ’’केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की दूरगामी रणनीति’’ का हिस्सा हो सकता है। प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से लेकर संगठनात्मक बदलाव और अब एसआईआर जैसे मुद्दों का उभार, इन सबको जोड़कर देखा जाए तो यह साफ होता है कि ’’बीजेपी नेतृत्व उत्तर प्रदेश में आने वाले समय के लिए नई राजनीतिक संरचना तैयार कर रहा है’’। अमित शाह को पार्टी के भीतर संगठन और सत्ता के बीच संतुलन साधने में माहिर माना जाता है। ऐसे में सीएम योगी के कद को चुनौती देना नहीं, बल्कि ’’उन्हें एक बड़े फ्रेम में फिट करना’’ इस रणनीति का हिस्सा हो सकता है। क्या योगी सरकार पर बढ़ेगा दबाव? प्रदेश अध्यक्ष पंकज चैधरी के आने के बाद यह सवाल और गहरा गया है कि ’’क्या संगठन अब सरकार पर ज्यादा हावी रहेगा?’’ या फिर सरकार अपनी स्वतंत्र निर्णय प्रक्रिया को और मजबूत करेगी? एसआईआर को लेकर उठा विवाद इसी टकराव का शुरुआती संकेत माना जा रहा है। हालांकि भाजपा के शीर्ष नेता सार्वजनिक रूप से किसी भी तरह के मतभेद से इनकार कर रहे हैं, लेकिन ’’अंदरखाने चल रही गतिविधियां कुछ और ही बयां कर रही हैं’’।
आगे क्या रहेगी रणनीति?
बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि एसआईआर को लेकर शुरू हुई यह सियासी बहस ’’सिर्फ एक बयान तक सीमित रहती है या फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े बदलाव की भूमिका बनती है’’। इतना तय है कि बीजेपी के भीतर चल रही यह हलचल अब नजरअंदाज करने लायक नहीं रही। उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर ’’केंद्रीय नेतृत्व, संगठन और मुख्यमंत्री के बीच संतुलन की परीक्षा’’ से गुजर रही है। इतना ही नही इसका असर आने वाले राजनीतिक फैसलों पर साफ दिखाई देगा।
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