अध्ययन की प्रमुख लेखिका एलिस गोडेन ने न्यूज चैनल को बताया, “यह पहली बार है जब हमने किसी स्तनधारी प्रजाति में तापमान को मुख्य कारण मानते हुए पर्यावरणीय तनाव के वास्तविक समय में डीएनए पर प्रभाव को देखा है।” ग्रीनलैंड के सबसे गर्म हिस्से में रहने वाले ये भालू लगभग 200 साल पहले उत्तर-पूर्वी समूह से अलग हो गए थे। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के एक पुराने अध्ययन से प्राप्त 17 ध्रुवीय भालुओं के रक्त नमूनों का विश्लेषण करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण-पूर्वी भालू अपने उत्तर-पूर्वी साथियों से आनुवंशिक रूप से अलग हो चुके हैं। इसमें तापमान और जलवायु डेटा को शामिल कर यह साबित किया गया कि बढ़ते तापमान ही इन बदलावों के पीछे हैं।
आहार में बदलाव और जेनेटिक अनुकूलन
परंपरागत रूप से सील जैसे चिकनाई वाले शिकार पर निर्भर ध्रुवीय भालू अब पिघलते समुद्री बर्फ के कारण पौधों पर अधिक निर्भर हो रहे हैं। अध्ययन में पाया गया कि ‘जंपिंग जीन’ की बढ़ी हुई गतिविधि से हीट स्ट्रेस, उम्र बढ़ने और चयापचय से जुड़े जीन प्रभावित हो रहे हैं। इससे भालू वसा प्रसंस्करण और पोषण अवशोषण में बेहतर अनुकूलन दिखा रहे हैं। गोडेन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “यह समूह अपने जीनोम के हिस्सों को फिर से लिख रहा है, जो पिघलती बर्फ के खिलाफ एक हताश जीवित रहने की रणनीति है।” द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी ग्रीनलैंड के भालू उत्तरी समूहों की तुलना में अधिक आनुवंशिक हॉटस्पॉट दिखा रहे हैं, जो गर्म जलवायु में अनुकूलन का संकेत देते हैं।
खतरे बरकरार
यूएस फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस के अनुसार, दुनिया में केवल 26,000 ध्रुवीय भालू बचे हैं और वे लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध हैं। अध्ययन के बावजूद, विशेषज्ञों का कहना है कि यह अनुकूलन प्रजाति को पूरी तरह बचा नहीं सकता। फिज.ऑर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रीनलैंड के दक्षिण-पूर्वी भालू हीट स्ट्रेस और मेटाबॉलिज्म से जुड़े जीनों में बदलाव दिखा रहे हैं, लेकिन वैश्विक तापमान वृद्धि से 2050 तक उनकी दो-तिहाई आबादी खत्म हो सकती है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अनुसार, ध्रुवीय भालू समुद्री बर्फ पर निर्भर हैं, जो जलवायु परिवर्तन से तेजी से पिघल रही है। कनाडा के हाई आर्कटिक क्षेत्र के भालू सबसे अधिक जोखिम में हैं, जहां आनुवंशिक विविधता कम होने से अनुकूलन कठिन है।
संरक्षण की उम्मीद और चेतावनी
यह अध्ययन आशा की किरण है, लेकिन गोडेन ने जोर दिया, “यह सकारात्मक अनुकूलन है, लेकिन हमें इन भालुओं के जीनोम को और गहराई से समझने का छोटा सा समय मिला है। हमें कार्बन उत्सर्जन कम करना होगा।” मोबाइल डीएनए जर्नल में प्रकाशित इस शोध से संरक्षण प्रयासों को दिशा मिलेगी, जैसे कि आनुवंशिक रूप से मजबूत आबादी की रक्षा। पोलर बियर्स इंटरनेशनल के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि वेस्टर्न हडसन बे की आबादी 1979 से 2021 तक आधी हो चुकी है, जो समुद्री बर्फ में लगातार गिरावट से जुड़ी है। वैज्ञानिकों का आह्वान है कि ‘लास्ट आइस एरिया’ जैसे क्षेत्रों की सुरक्षा करें, जहां बर्फ लंबे समय तक बनी रह सकती है।
जलवायु परिवर्तन न केवल ध्रुवीय भालुओं, बल्कि पूरी पारिस्थितिकी को प्रभावित कर रहा है। यह अध्ययन हमें याद दिलाता है कि प्रकृति अनुकूलन कर रही है, लेकिन मानव प्रयासों के बिना यह संघर्ष व्यर्थ जाएगा।

