भारत में रूसी तेल खरीद पर पीटर नवारो के दिया विवादित बयान, ब्राह्मणों पर लगाए मुनाफाखोरी के आरोप

Washington News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने भारत पर रूस से सस्ता तेल खरीदकर मुनाफा कमाने और यूक्रेन युद्ध को वित्तीय सहायता देने का आरोप लगाया है। नवारो ने अपने ताजा बयान में भारत की सामाजिक संरचना पर टिप्पणी करते हुए दावा किया कि “भारत में ब्राह्मण लोग रूसी तेल से पैसा छाप रहे हैं, जो आम भारतीयों की कीमत पर हो रहा है।” इस बयान ने भारत-अमेरिका संबंधों में नई खटास पैदा कर दी है और इसे अमेरिकी मीडिया ने भी भड़काऊ और असामान्य करार दिया है।

नवारो के आरोप और भारत का जवाब
नवारो ने फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर उसे रिफाइन करता है और फिर यूरोप, अफ्रीका, और एशिया में ऊंचे दामों पर बेचता है। उनके मुताबिक, इससे होने वाला मुनाफा रूस की युद्ध मशीन को मजबूत कर रहा है, जिससे यूक्रेन में हिंसा बढ़ रही है। उन्होंने भारत के ब्राह्मण समुदाय को निशाना बनाते हुए कहा, “ब्राह्मण भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं, और इसे रोकना होगा।” नवारो ने यह भी दावा किया कि भारत का रूसी तेल आयात 2022 से पहले 1% से कम था, जो अब बढ़कर 30% से अधिक, यानी प्रतिदिन 15 लाख बैरल हो गया है।

भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत का रूस से तेल खरीदना वैश्विक तेल बाजार को स्थिर रखने के लिए जरूरी है और यह जी7 के प्राइस-कैप नियमों के तहत वैध है। उन्होंने पश्चिमी देशों पर पाखंड का आरोप लगाते हुए कहा कि अमेरिका स्वयं रूस से यूरेनियम और खनिज आयात करता है, और यूरोप रूसी गैस खरीद रहा है। जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपनी 140 करोड़ जनता के हितों को प्राथमिकता देता है और सस्ता तेल खरीदना उसकी ऊर्जा सुरक्षा का हिस्सा है।

भारत की तेल नीति और आर्थिक प्रभाव
भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी तेल आयात बढ़ाया, क्योंकि यह सस्ता और उपलब्ध था। मार्च 2022 में जब ब्रेंट क्रूड की कीमत $137 प्रति बैरल तक पहुंच गई थी, भारत ने तेल की कीमतें नहीं बढ़ाईं, जिससे आम जनता को राहत मिली। सरकारी तेल कंपनियों ने अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 तक 21,000 करोड़ रुपये का नुकसान सहा, ताकि उपभोक्ताओं पर बोझ न पड़े। भारत का कहना है कि उसने वैश्विक तेल बाजार को स्थिर करने में योगदान दिया है, जिससे पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं को भी लाभ हुआ।

जातिगत टिप्पणी पर विवाद
नवारो की ब्राह्मण समुदाय पर टिप्पणी को भारत में अपमानजनक और अनुचित माना गया है। यह पहली बार है जब किसी विदेशी राजनयिक ने भारत की सामाजिक संरचना पर इस तरह की टिप्पणी की है। विशेषज्ञों ने इसे भारत की आंतरिक राजनीति में दखल देने की कोशिश बताया है। नवारो के बयान को ट्रंप प्रशासन की उस निराशा से जोड़ा जा रहा है, जो भारत के रूस और चीन के साथ बढ़ते संबंधों, विशेष रूप से हाल की SCO समिट में पीएम मोदी की पुतिन और शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद सामने आई है।

अमेरिकी टैरिफ और भारत-अमेरिका संबंध
नवारो ने ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ का बचाव करते हुए कहा कि यह रूस की युद्ध मशीन की वित्तीय सहायता को रोकने के लिए जरूरी है। उन्होंने दावा किया कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो उसे 25% टैरिफ में छूट मिल सकती है। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि वह दबाव में अपनी नीतियां नहीं बदलेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि नवारो के बयान न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत हैं, बल्कि भारत-अमेरिका के रणनीतिक संबंधों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अमेरिकी विशेषज्ञों ने भी नवारो के बयानों को “बेतुका” और “भ्रामक” बताया है।

निष्कर्ष
पीटर नवारो के बयान ने भारत और अमेरिका के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह वैश्विक स्थिरता और अपनी जनता के हितों को ध्यान में रखकर काम करता रहेगा। नवारो की जातिगत टिप्पणी को लेकर भारत में व्यापक आक्रोश है, और यह मुद्दा दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।

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