प्रदर्शन के दौरान, पीईटीए के एक समर्थक को ‘जली हुई’ और ‘खून से सनी’ वेशभूषा में एक नकली ग्रिल पर लिटाया गया, मानो वह किसी बर्बेक्यू में पकाया जा रहा हो। आसपास लगे बैनरों पर साफ लिखा था— “फ्लेश इज फ्लेश, ह्यूमन ऑर एनिमल” (मांस तो मांस है, चाहे इंसान का हो या जानवर का)।
संगठन के कार्यकर्ताओं ने बताया कि यह प्रदर्शन इसलिए किया गया ताकि लोग समझ सकें कि मांस खाना एक संवेदनशील प्राणी की लाश को चबाना है, जो दर्द महसूस करता है, दोस्ती निभाता है और जीना चाहता है।
पीईटीए इंडिया की कैंपेन कोऑर्डिनेटर उत्तर्ष गर्ग ने कहा, “ज्यादातर लोग कभी इंसानी मांस को चखना नहीं चाहेंगे, तो चिकन या सुअर का मांस क्यों? पशु उद्योग में मुर्गियों की गला काटा जाता है जब वे बेहोश भी नहीं होतीं, सुअरों के बच्चों का बिना दर्द निवारक के अपशिष्ट काटा जाता है और गायों को उल्टा लटका कर मार दिया जाता है। हम लोगों से अपील करते हैं कि वे स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन चुनें, जो हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर के जोखिम को कम करता है। साथ ही, यह भविष्य की महामारियों—जैसे सार्स, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला और एचआईवी—को रोकने में भी मदद करता है, जो ज्यादातर पशुओं के शोषण से ही फैलीं।”
यह प्रदर्शन लखनऊ के एक व्यस्त चौराहे पर आयोजित किया गया, जहां सैकड़ों राहगीरों ने रुककर तस्वीरें खींचीं और बहस छेड़ दी। कुछ लोगों ने इसे ‘अत्यधिक ग्रिसली’ बताते हुए आलोचना की, जबकि युवा कार्यकर्ताओं ने इसे प्रभावी बताया। पीईटीए के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष अरबों पशु मांस के लिए मारे जाते हैं, और शाकाहार अपनाने से पर्यावरण संरक्षण भी संभव है।
पीईटीए इंडिया ने इस अवसर पर लोगों को वीगन रेसिपी और टिप्स भी वितरित किए। संगठन का कहना है कि यह अभियान देशभर में जारी रहेगा, ताकि ‘मीट इज मर्डर’ का संदेश हर घर तक पहुंचे। अधिक जानकारी के लिए पीईटीए इंडिया की वेबसाइट पर जाएं।

