बिहार में SIR पर हो रहा विवाद, मृत मां का नाम वोटर लिस्ट में, जिंदा भाई का नाम काटा गया

Patna News: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया में कई चौंकाने वाली गड़बड़ियां सामने आ रही हैं, जिनमें मृत व्यक्तियों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल करना और जीवित लोगों के नाम हटाना शामिल है। एक ऐसी ही घटना भोजपुर जिले के आरा से सामने आई है, जहां मृत मां का नाम मतदाता सूची में दर्ज कर लिया गया, जबकि उनके जीवित भाई का नाम सूची से हटा दिया गया।

जमुई और आरा में अजब-गजब मामले
जमुई के बरहट प्रखंड के पेंघी गांव में चार मृत व्यक्तियों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल किए गए हैं, जिनमें से तीन एक ही परिवार के हैं। तबस्सुम खातून के परिवार के तीन सदस्य—उनके पिता इम्तियाज (मृत्यु: 2022), चाचा अब्दुल (मृत्यु: 2021), और मां जबरा खातून (मृत्यु: 2023)—के नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में मौजूद हैं। इसके अलावा, 2021 में मृत मोहम्मद शनीफ का नाम भी सूची में शामिल है। हैरानी की बात यह है कि इन मृत व्यक्तियों ने कथित तौर पर वोटर रिवीजन फॉर्म भरे और उन पर हस्ताक्षर भी किए, जिसे चुनाव अधिकारियों ने स्वीकार कर लिया।

वहीं, आरा में मिंटू पासवान जैसे कई जीवित लोगों को मृत घोषित कर उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए। मिंटू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ने सत्यापन के लिए उनके घर नहीं पहुंचे और बिना सूचना के उनका नाम हटा दिया गया। उनके वार्ड में 69 वर्षीय फुलझारो देवी, 64 वर्षीय शंकर चौहान, 73 वर्षीय मदन चौहान और 34 वर्षीय सुधा देवी जैसे अन्य जीवित लोगों के नाम भी गलत तरीके से हटाए गए हैं।

ग्राउंड रिपोर्ट से खुलासा
ग्राउंड रिपोर्ट में आरा के तीन लोगों—सुधा देवी, शंकर, और मदन—की कहानी सामने आई है, जिन्हें चुनाव आयोग ने मृत घोषित कर उनकी वोटर पहचान रद्द कर दी। शंकर ने भावुक होकर कहा, “चुनाव आयोग ने हमें भूत बना दिया।” ये लोग पिछड़े समुदाय से हैं और आर्थिक रूप से कमजोर हैं, जिसके कारण उनके लिए इस गलती को सुधारना और भी मुश्किल हो रहा है।

विपक्ष का हंगामा, सुप्रीम कोर्ट में मामला
विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग पर लगातार हमलावर हैं। कांग्रेस और राजद ने इसे “वोट चोरी” और “लोकतंत्र पर हमला” करार दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान कहा था, “SIR एक सुनियोजित साजिश है, जिसके जरिए गरीब, दलित और अल्पसंख्यक वोटरों को उनके मताधिकार से वंचित किया जा रहा है।” राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी आरोप लगाया कि खासकर उन इलाकों में नाम हटाए जा रहे हैं, जहां विपक्ष का प्रभाव है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए चुनाव आयोग से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की सूची कारण सहित सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन जीवित लोगों को मृत घोषित किया गया है, वे आधार कार्ड जैसे दस्तावेज पेश कर अपने नाम पुनः शामिल करा सकते हैं।

चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि SIR प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है। आयोग के अनुसार, 18 लाख मृत, 26 लाख स्थानांतरित, और 7 लाख डुप्लीकेट वोटरों के नाम हटाए गए हैं। आयोग ने दावा किया कि किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना नोटिस, सुनवाई और तर्कपूर्ण आदेश के नहीं हटाया जाएगा। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट 1 अगस्त को जारी की गई थी, और 1 सितंबर तक दावे-आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं। अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी।

लोकतंत्र पर सवाल
बिहार में SIR प्रक्रिया ने मतदाता सूची की विश्वसनीयता और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि लाखों पात्र मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए, तो इसका असर न केवल चुनावी नतीजों पर पड़ेगा, बल्कि जनता का लोकतंत्र पर भरोसा भी कमजोर हो सकता है।

प्रभावित मतदाताओं को सलाह दी जा रही है कि वे अपनी स्थिति की जांच के लिए तुरंत ऑनलाइन पोर्टल पर वोटर लिस्ट चेक करें और दावे-आपत्ति दर्ज करें। बिहार में यह विवाद विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल को और गर्माने वाला है।

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