Parliament Winter Session: संसद के शीतकालीन सत्र के 11वें दिन सोमवार को केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए), 2005 को पूरी तरह बदलने के लिए एक नया विधेयक लाने की घोषणा की है। इस विधेयक का पूरा नाम “विकसित भारत—गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025” है, जिसे संक्षिप्त में “वीबी-जी-राम-जी” (VB-G-Ram-G) कहा जा रहा है। सरकार ने विधेयक को सांसदों के बीच सोमवार को ही प्रसारित कर दिया है और इसे लोकसभा में पेश करने के लिए पूरक कार्रवाई सूची में शामिल किया गया है।
विधेयक में ग्रामीण परिवारों को प्रति वर्ष 100 की जगह 125 दिन के अकुशल श्रम कार्य की गारंटी दी गई है, लेकिन कई महत्वपूर्ण बदलाव भी प्रस्तावित हैं जिन पर विपक्ष ने तीखी आपत्ति जताई है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
1. कार्य दिवसों में वृद्धि लेकिन वित्तीय बोझ राज्यों पर: वर्तमान एमजीएनआरईजीए में मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र वहन करता है। नए विधेयक में उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को छोड़कर बाकी राज्यों के लिए केंद्र-राज्य अनुपात 60:40 कर दिया गया है। यानी राज्यों को कुल व्यय का 40% खुद वहन करना होगा।
2. मांग-आधारित के बजाय निर्धारित बजट: एमजीएनआरईजीए मांग के अनुसार लचीला था, लेकिन नए विधेयक में केंद्र हर साल “नॉर्मेटिव एलोकेशन” (निर्धारित आवंटन) तय करेगा। इससे अधिक खर्च राज्य खुद वहन करेंगे। केंद्र यह भी तय करेगा कि योजना कहाँ और कैसे लागू होगी।
3. कृषि मौसम में कार्य पर रोक: पीक कृषि सीजन (बुवाई-कटाई) में कुल 60 दिनों तक योजना को रोकने का प्रावधान है, ताकि खेती के लिए मजदूर उपलब्ध रहें। राज्य सरकारें अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग अधिसूचना जारी कर सकेंगी।
4. साप्ताहिक मजदूरी भुगतान: वर्तमान में 15 दिनों की समय-सीमा है, नए विधेयक में मजदूरी साप्ताहिक या अधिकतम पखवाड़े में दी जाएगी। देरी पर जुर्माने का प्रावधान बरकरार है।
5. विकसित भारत 2047 से जोड़कर नया दृष्टिकोण: सरकार का कहना है कि ग्रामीण भारत में कनेक्टिविटी, आवास, बिजली, डिजिटल पहुंच और विविध रोजगार के कारण एमजीएनआरईजीए को अपडेट करने की जरूरत है। नया विधेयक “सशक्तिकरण, विकास, अभिसरण और संतृप्ति” पर जोर देता है।
विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद परिसर के बाहर पत्रकारों से कहा, “महात्मा गांधी का नाम हटाने की क्या जरूरत थी? गांधीजी दुनिया के सबसे बड़े नेता हैं। नाम बदलने से सरकारी संसाधनों की बर्बादी होती है—ऑफिस, स्टेशनरी सब बदलना पड़ता है। इसका क्या फायदा है? यह समय और पैसे की बर्बादी है।” उन्होंने इसे “गांधी-विरोधी मानसिकता” करार दिया।
एमजीएनआरईजीए के प्रमुख आर्कीटेक्चर और मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने इसे “काम के अधिकार का अंत” बताया। उन्होंने कहा, “यह एमजीएनआरईजीए की अधिकार-आधारित संरचना को खत्म कर रहा है और राज्यों पर अव्यावहारिक वित्तीय बोझ डाल रहा है।”
सरकार का पक्ष
ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में एमजीएनआरईजीए ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन अब ग्रामीण भारत की बदलती जरूरतों के अनुरूप नया ढांचा जरूरी है।
आज सत्र में विधेयक को औपचारिक रूप से पेश करने की संभावना है, हालांकि अभी तक इस पर विस्तृत चर्चा नहीं हुई है। विपक्ष के विरोध को देखते हुए आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर तीखी बहस होने की उम्मीद है।

