DND Hoarding Scam: होर्डिग माफिया के साथ मिलकर अफसर काट रहे चांदी, प्राधिकरण को हो रहा भारी नुकसान

DND Hoarding Scam: सुप्रीम कोर्ट के वो वाक्य आज भी याद आते हैं, जब कोर्ट ने कहा था कि आपके आंख, नाक, कान और मुँह से भ्रष्टाचार बहता है। ऐसा ही नोएडा प्राधिकरण में देखने को मिल रहा है। होल्डिंग माफियाओं के साथ साठगांठ कर अफसर चांदी काट रहे हैं, जबकि प्राधिकरण को राजस्व की भारी हानि हो रही है। ताजा मामला प्राधिकरण के आउटडोर मीडिया डिपार्टमेंट से प्रकाश में आया है, जिसमें नियमों को ताक पर रखकर डीएनडी फ्लाई वे पर नोएडा टोल ब्रिज कंपनी से एंड कराया जा रहा है। जबकि 22 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने डीएनडी से पूरी नोएडा टोल ब्रिज कंपनी का अधिकार समाप्त कर नोएडा प्राधिकरण को सौंप दिया था। बताया जा रहा है कि इस पर किसी भी प्रकार का विज्ञापन भी होगा, तो उसका पूरा राइट नोएडा प्राधिकरण के पास सुरक्षित है, लेकिन प्राधिकरण के आउटडोर मीडिया डिपार्टमेंट में तैनात अफसरों की मनमानी से यह प्राधिकरण को तीन माह बाद में हासिल नहीं हो सका। जिससे राजस्व की बड़ी हानि हो रही है। डीएनडी पर विज्ञापनों को लगवा दिया वो भी अधिकारियों की सह पर। इतना ही नही ये विज्ञापन नोएडा प्राधिकरण की आउटडोर मीडिया पालिसी के बायलाज में शामिल नहीं है। ऐसे पूरे डीएनडी पर पोल के जरिये एलईडी क्योस्क का विज्ञापन कराया जा रहा है, जो पूरी तरह से अवैध है। बता दें कि विज्ञापन के लिए टोल ब्रिज के आगे गेंट्री संचालित कराई जा रही है, यह नोएडा में पूर्णतरू प्रतिबंधित है, लेकिन उस पर रोक लगाने की बजाए अधिकारियों की ओर से सह दी जा रही है।

ये है पूरा मामला
ब्ताया जा रहा है कि नोएडा प्राधिकरण ने वर्ष 2022 में डीएनडी पर विज्ञापन को लेकर रोक लगाने का प्रयास किया, कार्रवाई के बाद आउटडोर मीडिया डिपार्टमेंट में तैनात अधिकारियों की सह पर नोएडा टोल ब्रिज कंपनी सुप्रीम कोर्ट चली गई, उस समय डीएनडी टोल ब्रिज का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था।
वहां पहुंचकर कंपनी ने डीएनडी रोड की सरफेसिंग और स्ट्रीट लाइट लगाने का हवाला दिया। कहा कि यदि फंडिंग बंद हो जाएगी तो जनता का असुविधा होगी। इसलिए विज्ञापन के अधिकार दिया जाए, जिससे सड़क की सरफेसिंग व स्ट्रीट लाइट को लगाने में सहूलियत मिले।

सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को ये दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को प्रति माह 28 लाख रुपये (22400 वर्ग फिट एरिया) विज्ञापन के रूप में डीएनडी टोल ब्रिज कंपनी को आदेश दिया। यह दर प्रति वर्ग मीटर 125 रुपये की थी, जिसे प्राधिकरण के खाते में जमा करने का आदेश था, लेकिन कंपनी की ओर से हर महीने महज 20 से 22 लाख रुपये ही जमा कराया गया।
जबकि कंपनी के पास विज्ञापन की बिलिंग उस समय प्रति माह तीन करोड़ रुपये से अधिक की थी। बताया जा रहा है कि जिस दर को दिखाकर सुप्रीम कोर्ट से यह आदेश कराया गया, वह दर नोएडा प्राधिकरण में विज्ञापन पॉलिसी बनने के समय की थी, यानी 20 से 25 वर्ष पुरानी दर से यहां पर विज्ञापन शुल्क लेने का फैसला हुआ।

आंख बंद करके बैठे रहे अफसर

आउटडोर मीडिया पॉलिसी जानने के बाद भी प्राधिकरण के अफसर आंख बंद करके बैठे रहे। किसी ने भी यह समझने की जहमत नहीं उठाई कि इससे प्राधिकरण को कितना बड़ा नुकसान हो रहा है।

 

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