क्या आप जानते हैं नोएडा ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों ने बॉयर्स को कैसे लूटा

Builders looted buyers in Noida and Greater Noida:  नोएडा और ग्रेटर नोएडा शहर आधुनिक भारत के सुनियोजित शहरी विकास के प्रतीक माने जाते हैं। इन शहरों में रहने का सपना संजोए लोगों ने फ्लैट बुक करए लेकिन उन्हें जीवन भर की कमाई दांव पर लगाने के साथ साथ बैंको का मोटा ब्याज भी देना पड़ा। फ्लैट नहीं मिले यदि मिले तो जिस सुविधा का वादा किया गया वो नाम के लिए रह गई। क्या आप जानते है कि बिल्डरों ने आमजन को कैसे लूटा। चलिए बताते है कि बिल्डर लूटते रहे प्राधिकरण और पुलिस मौन रहे।
अफसरों की संदिग्ध भूमिका
फ्लैट बायर्स के साथ बिल्डरों द्वारा बड़े पैमाने पर की गई। धोखाधड़ी और इसमें प्राधिकरण के अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका रही। पिछले कुछ वर्षों में हजारों फ्लैट खरीदार अपने जीवन भर की कमाई खो चुके हैं या फंसे हुए हैं और उन्हें न्याय के लिए दर.दर भटकना पड़ रहा ंहै।
धोखाधड़ी का जाल: बिल्डरों की कार्यप्रणाली पर सवाल
बिल्डरों ने फ्लैट खरीदारों को लुभाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया, जिनमें से कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं।

  • अधूरी परियोजनाएं और देरी: सबसे आम शिकायत है कि बिल्डरों ने समय पर परियोजनाओं को पूरा नहीं किया। कई परियोजनाएं सालों से अधूरी पड़ी हैं, और कुछ तो पूरी तरह से रुक चुकी हैं। खरीदारों को “पजेशन” का इंतजार करते-करते सालों बीत गए हैं, जबकि उन्हें अपनी मासिक किस्तें (EMIs) भी भरनी पड़ रही हैं।
  • एक ही फ्लैट कई लोगों को बेचना: कुछ मामलों में बिल्डरों ने एक ही फ्लैट कई खरीदारों को बेच दिया। जब खरीदारों को इस धोखाधड़ी का पता चला तो वे सदमे में आ गए।
  • गुणवत्ता से समझौता: जिन परियोजनाओं को पूरा किया गया है, उनमें अक्सर निर्माण की गुणवत्ता से समझौता किया गया है। घटिया सामग्री का उपयोग, खराब फिनिशिंग और सुरक्षा मानकों की अनदेखी आम शिकायतें हैं।
  • गुमराह करने वाले वादे और विज्ञापन: बिल्डरों ने भव्य ब्रोशर, आकर्षक विज्ञापन और लुभावने वादे किए, जैसे कि क्लब हाउस, स्विमिंग पूल, जिम, और पार्क जैसी विश्व-स्तरीय सुविधाएं। लेकिन अक्सर ये वादे कभी पूरे नहीं हुए या केवल नाममात्र के लिए ही मौजूद थे।
  • आवंटन पत्र में बदलाव: कई बार बिल्डरों ने खरीदारों को बताए बिना या उनकी सहमति के बिना आवंटन पत्र (Allotment Letter) और बिक्री समझौते (Sale Agreement) की शर्तों में बदलाव किए।
  • अतिरिक्त शुल्क की वसूली: पजेशन के समय या बाद में विभिन्न मदों के तहत अनुचित और अतिरिक्त शुल्क की मांग करना भी एक आम शिकायत रही है।
  • रेरा (RERA) का उल्लंघन: रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA) के लागू होने के बाद भी, कई बिल्डरों ने इसके प्रावधानों का उल्लंघन किया, जैसे कि परियोजनाओं को पंजीकृत न कराना, जानकारी छिपाना या समय-सीमा का पालन न करना।

प्राधिकरण की मिलीभगत: सवालों के घेरे में अफसर

नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का मुख्य कार्य क्षेत्र के विकास को नियंत्रित करना और यह सुनिश्चित करना है कि बिल्डर नियमों का पालन करें। हालांकि, कई मामलों में प्राधिकरण के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध रही है, जिससे उन्हें बिल्डरों के साथ मिलीभगत का आरोप लगा है:

  • लापरवाही और आंखें मूंदना: प्राधिकरण ने अक्सर बिल्डरों द्वारा नियमों के उल्लंघन पर आंखें मूंदी। परियोजनाओं में देरी, अधूरी परियोजनाएं और घटिया निर्माण के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
  • अवैध निर्माण को बढ़ावा: कई बिल्डरों ने स्वीकृत नक्शे (Approved Map) से अधिक निर्माण किया या अवैध रूप से अतिरिक्त मंजिलें बनाईं। प्राधिकरण ने अक्सर इस पर रोक नहीं लगाई, या जब लगाई भी तो बहुत देर हो चुकी थी।
  • अधूरी परियोजनाओं को NOC देना: कुछ मामलों में प्राधिकरण ने अधूरी परियोजनाओं को भी कब्जा प्रमाण पत्र (Occupancy Certificate) या अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी कर दिए, जिससे बिल्डरों को खरीदारों को अधूरी संपत्ति सौंपने का मौका मिला।
  • कानूनी कार्रवाई में देरी और ढिलाई: जब खरीदारों ने शिकायतें दर्ज कीं, तो प्राधिकरण ने अक्सर उन पर धीमी गति से या बिल्कुल भी कार्रवाई नहीं की। इससे बिल्डरों को अपनी धोखाधड़ी जारी रखने का अवसर मिला।
  • फंड डायवर्जन पर चुप्पी: कई बिल्डरों ने खरीदारों से जुटाए गए धन का उपयोग परियोजना के लिए करने के बजाय अन्य उद्देश्यों के लिए कर दिया। प्राधिकरण ने इस तरह के फंड डायवर्जन पर कोई निगरानी या नियंत्रण नहीं रखा।
  • भ्रष्टाचार के आरोप: कई प्राधिकरण अधिकारियों पर बिल्डरों से रिश्वत लेने और उनके गैर-कानूनी कार्यों को नजरअंदाज करने के आरोप लगे हैं। यह भ्रष्टाचार ही धोखाधड़ी के पनपने का मुख्य कारण बना।

पीड़ितों की दुर्दशा और न्याय की लड़ाई

हजारों फ्लैट खरीदार अपनी गाढ़ी कमाई गंवा चुके हैं। वे न तो अपने घर में रह पा रहे हैं और न ही अपना पैसा वापस पा रहे हैं। कई लोगों ने बैंक से कर्ज लिया है और उन्हें हर महीने EMI का भुगतान करना पड़ रहा है, जबकि उनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है। इससे उन्हें मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

पीड़ितों ने विभिन्न मंचों पर न्याय की गुहार लगाई है:

  • RERA: रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA) इस उम्मीद के साथ स्थापित किया गया था कि यह खरीदारों के हितों की रक्षा करेगा। हालांकि, RERA में भी मामलों के निस्तारण में देरी और बिल्डरों पर प्रभावी कार्रवाई की कमी जैसी शिकायतें सामने आई हैं।
  • उपभोक्ता अदालतें: कई खरीदारों ने उपभोक्ता अदालतों का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन यहां भी मामलों में लंबा समय लगता है।
  • उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय: कुछ मामलों में खरीदारों को उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक जाना पड़ा है, जहां से उन्हें कुछ राहत मिली है, लेकिन यह एक लंबी और महंगी प्रक्रिया है।
  • पुलिस शिकायतें और FIR: धोखाधड़ी के मामलों में पुलिस में शिकायतें और FIR भी दर्ज की गई हैं, लेकिन अक्सर इन पर भी प्रभावी कार्रवाई नहीं होती है।

 क्या हो समाधान

इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए कई मोर्चों पर काम करने की आवश्यकता है, यूपी सरकार ने मंत्रियों की कमेटी भी बनाई मगर रिज्लर्ट शून्य रहा। आगे की लड़ाई इस प्राकर हो सकती है।

  • प्राधिकरण की जवाबदेही: प्राधिकरण के अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
  • RERA को मजबूत बनाना: RERA को और अधिक अधिकार दिए जाएं और यह सुनिश्चित किया जाए कि यह त्वरित और प्रभावी ढंग से काम करे। बिल्डरों पर सख्त दंड लगाया जाए।
  • न्यायपालिका में तेजी: अदालतों में रियल एस्टेट मामलों के त्वरित निपटारे के लिए विशेष पीठें स्थापित की जाएं।
  • पारदर्शिता बढ़ाना: बिल्डरों को अपनी परियोजनाओं के बारे में सभी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए, जिसमें वित्तीय स्थिति, स्वीकृत नक्शे और परियोजना की प्रगति शामिल है।
  • फंड डायवर्जन पर रोक: बिल्डरों द्वारा खरीदारों के पैसे के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।
  • सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा: फ्लैट खरीदारों को एकजुट होकर अपनी आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

नोएडा और ग्रेटर नोएडा में फ्लैट खरीदारों के साथ हुई यह धोखाधड़ी सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह कानून के शासन और सुशासन पर भी एक सवालिया निशान लगाती है। जब तक बिल्डरों और भ्रष्ट अधिकारियों के गठजोड़ को नहीं तोड़ा जाता, तब तक हजारों लोगों के सपनों का यूं ही टूटना जारी रहेगा।”

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