Noida Hospital Health Service News। नोएडा प्राधिकरण अपने स्थापना के बाद से शहर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जिसमें आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक भूखंडों के साथ.साथ सामाजिक और सार्वजनिक सुविधाओं के लिए भी भूमि का आवंटन शामिल है। किसी भी शहर में अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएँ एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। जिससे की जनता का भला हो सके। हालांकि हाल के दिनों में यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या प्राधिकरण का यह कर्तव्य है कि वह रियायती दरों पर भूमि आवंटित कर सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएँ सुनिश्चित करे या यह केवल एक व्यापारिक निर्णय है। क्योकि नोएडा के ज्यादातर अस्पतालों में अब रियायती दरों पर इलाज होता नही दिखाई देता। अस्पताल पूरी तरह व्यापार करने लगें है। इस मामले को जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह ने सीएम योगी के समक्ष रखा है। उन्होंने यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में अस्पतालों की दी जा रही जमीन पर अस्पताल तो बने लेकिन गरीबों को सस्ती स्वास्थय सेवा उपलब्ध करने को आग्रह किया।
चलिए अब बताते है कि प्राधिकरण के नियम क्या कहते है।
आवंटन नीति और उद्देश्य
नोएडा प्राधिकरण की भूमि आवंटन नीति के तहत, अस्पतालों के लिए भूखंडों का आवंटन मुख्य रूप से दो तरीकों से किया जाता है:
- ई-नीलामी/नीलामी: इस प्रक्रिया में, सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को भूमि आवंटित की जाती है। इस पद्धति का उद्देश्य राजस्व अर्जित करना है।
- रियायती आवंटन (Concessional Allotment): यह नीति प्राधिकरण द्वारा सामाजिक और कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए अपनाई जाती है। इसके तहत, भूमि को बाज़ार दर से कम कीमत पर आवंटित किया जाता है, ताकि आवंटितकर्ता समाज को कम लागत पर सेवाएँ प्रदान कर सकें।
क्या है प्राधिकरण की ज़िम्मेदारी
इस प्रश्न का उत्तर देना जटिल है। एक ओर, प्राधिकरण एक सरकारी संस्था है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण सुनिश्चित करना है। इस दृष्टिकोण से, यह उनका नैतिक और कानूनी कर्तव्य है कि वे नागरिकों को बुनियादी सुविधाएँ, जिसमें स्वास्थ्य सेवाएँ भी शामिल हैं, प्रदान करें। भूमि को रियायती दरों पर आवंटित करने का उद्देश्य यही होता है कि अस्पताल उन रियायतों का लाभ सीधे जनता को सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में दें।
दूसरी ओर, प्राधिकरण का तर्क है कि वे एक विकास-उन्मुख संगठन हैं, न कि सीधे तौर पर स्वास्थ्य सेवा प्रदाता। उनका काम भूमि और बुनियादी ढांचा प्रदान करना है। इसके बाद, अस्पताल को संचालित करना और सेवाओं की गुणवत्ता और लागत तय करना अस्पताल प्रबंधन की ज़िम्मेदारी है। हालांकि, इस तर्क पर सवाल उठते हैं जब कई अस्पताल अत्यधिक शुल्क लेते हैं, जिससे आम जनता के लिए चिकित्सा सुविधाएँ महंगी हो जाती हैं।
आवंटन में शर्तें और उनका उल्लंघन
प्राधिकरण जब भी रियायती दरों पर भूमि आवंटित करता है, तो कुछ शर्तें लागू करता है। इन शर्तों में अक्सर कुछ प्रतिशत बिस्तर गरीबों और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान होता है। साथ ही, कुछ मामलों में, इन मरीज़ों का मुफ़्त या रियायती दरों पर इलाज करने की भी शर्त होती है।
हालांकि, अक्सर यह देखा गया है कि ये शर्तें केवल कागज़ों पर ही रह जाती हैं। कई अस्पताल या तो इन शर्तों का पालन नहीं करते, या फिर मरीज़ों को बहाने बनाकर वापस भेज देते हैं। इस पर निगरानी रखने और उल्लंघन होने पर कार्रवाई करने की ज़िम्मेदारी प्राधिकरण की होती है, लेकिन प्रभावी निगरानी तंत्र की कमी के कारण, यह समस्या बनी रहती है।
आगे की राह
इस समस्या के समाधान के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:
- पारदर्शिता और जवाबदेही: प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रियायती दरों पर आवंटित भूमि का उपयोग वास्तव में जनता के हित में हो रहा है। इसके लिए, एक पारदर्शी ऑनलाइन पोर्टल बनाया जा सकता है जहाँ आम नागरिक यह देख सकें कि किन अस्पतालों को रियायत मिली है और उन पर क्या शर्तें लागू हैं।
- सख्त निगरानी: प्राधिकरण को एक प्रभावी निगरानी तंत्र स्थापित करना चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि अस्पताल आवंटित शर्तों का पालन कर रहे हैं। उल्लंघन करने वाले अस्पतालों पर जुर्माना, और अगर ज़रूरी हो तो, आवंटन रद्द करने जैसे सख्त कदम उठाए जाने चाहिए।
- नीति में बदलाव: भविष्य में, प्राधिकरण को अपनी नीतियों में यह प्रावधान स्पष्ट रूप से जोड़ना चाहिए कि रियायती आवंटन केवल उन्हीं संस्थानों को दिया जाएगा जो सस्ती और गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ ही, शर्तों का उल्लंघन करने पर दंड की मात्रा और प्रक्रिया को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए।

