नोएडा और ग्रेटर नोएडा कहने के लिए औद्योगिक नगरी लेकिन कामगारों के रहने के लिए कोई योजना नहीं

नोएडा और ग्रेटर नोएडा की प्रदेश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अलग ही पहचान है। खासतौर से दोनों शहरों को औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाता है, लेकिन आज कल नोएडा और ग्रेटर नोएडा में केवल और केवल अमीर लोगों के लिए ही जमीन बची है। एक वक्त था जब नोएडा प्राधिकरण औद्योगिक, संस्थागत, वाणिज्यिक योजनाओं के साथ साथ अलग अलग फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों के लिए भी स्कीम लाता था। अब कई दशक भी चुकें हैं कामगारों के लिए कोई स्कीम नहीं आई है। ऐसे में सवाल यही है कि क्या दोनों शहर पैसे वालों के लिए ही रह जाएंगे और जो कर्मचारी फैक्ट्रियों में काम करते हैं वो केवल किराये पर ही रह पाएंगे। नोएडा प्राधिकरण एलआईजी और ईडब्ल्यूएस फ्लैट्स की भी स्कीम लाया करता था। मगर अब केवल कम आय वाले लोगों को प्राधिकरण की स्कीम का ही इंतजार है। इन दोनों प्राधिकरणों के नक्शे कदम पर ही यमुना प्राधिकरण चल रहा है। वहाँ भी कम पैसे वालों के लिए जगह नहीं है।

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एक तरफ तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गरीबों के उत्थान की बात करते हैं, लेकिन यूपी के गौतमबुद्ध नगर में गरीबों का रहना बेहद मुश्किल हो रहा है। अपना मकान नहीं है ज्यादा किराया देकर किसी गांव में या फिर किसी पीजी गेस्ट हाउस जैसे विकल्पों में ही उन्हें रहना करना पड़ रहा है। बता दें कि नोएडा प्राधिकरण औद्योगिक योजनाओं के साथ साथ उद्यमियों को प्रोत्साहित करता था कि वे अपने कामगारों के लिए सस्ती दरों में फ्लैट खरीदने और फ्लैट अलग अलग सेक्टरों में दिए जाते थे, लेकिन अब किसी उद्योगपति को अपने काम का विस्तार करना है तो उसे बहुत अधिक धन चाहिए। तब जाकर वो अपनी फैक्टरी का विस्तार कर सकता है। ई ऑक्शन के जरिये प्राधिकरणों में जमीन के रेट सातवें आसमान पर पहुंचा दिए। अधिक रेट पर ऐसे लोग जमीन खरीद लेते हैं जो उसे मार्केट रेट पर सेल करते हैं। जिससे असली उद्यमियों जमीन खरीदने में ही दम तोड़ देते है।

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