क्यो जनता मुख्य चुनाव आयुक्त पर उठा रही सवाल, क्या जनता का भरोसा जीतने में हो रही कमी?

New Delhi News: भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति और उनके हाल के बयानों ने राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस हो रही है। विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, ने उन पर निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया है। ज्ञानेश कुमार जनता का भरोसा जीतने में नाकाम रहे हैं, जिससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।

ज्ञानेश कुमार का सफर और विवाद
ज्ञानेश कुमार, 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी, 19 फरवरी 2025 से भारत के 26वें मुख्य चुनाव आयुक्त हैं। उनकी नियुक्ति नए कानून, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 के तहत हुई, जिसे लेकर विपक्ष ने पहले ही आपत्ति जताई थी। इस कानून ने सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले को बदल दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को चयन समिति में शामिल करने का प्रावधान था।
कुमार ने गृह मंत्रालय में जम्मू-कश्मीर डेस्क के इंचार्ज के रूप में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी इन उपलब्धियों को सत्तारूढ़ दल के करीबी होने के रूप में देखा जाता है, जिसके कारण विपक्ष ने उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।

वोट चोरी और मतदाता सूची विवाद
हाल ही में, बिहार में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) अभियान और मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं को लेकर विपक्ष ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 7 अगस्त 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया, जिसमें कर्नाटक के महादेवपुरा और 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेराफेरी का दावा किया गया।
17 अगस्त 2025 को अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में, ज्ञानेश कुमार ने इन आरोपों को ‘निराधार’ बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची को शुद्ध करना एक साझा जिम्मेदारी है और बिना हलफनामे के ऐसे गंभीर आरोपों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। उन्होंने राहुल गांधी को 7 दिनों में सबूत पेश करने या माफी मांगने की चुनौती दी, जिसे विपक्ष ने ‘धमकी’ करार दिया। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पलटवार करते हुए कहा, “क्या गुप्ता जी यही दलील अदालत में शपथ पत्र पर लिखकर देंगे?”
विपक्षी नेताओं, जैसे आरजेडी सांसद मनोज झा और डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन, ने भी ज्ञानेश कुमार के बयानों को संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ बताया। कुछ नेताओं ने तो उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की बात भी उठाई, हालांकि यह प्रक्रिया संसद में विशेष बहुमत के बिना संभव नहीं है।

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल
ज्ञानेश कुमार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनकी टिप्पणियां एक निष्पक्ष संवैधानिक अधिकारी की बजाय सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता जैसी थीं। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी कहा, “उन्होंने राहुल गांधी और विपक्ष के सवालों का जवाब देने के बजाय बीजेपी के नेता की तरह बात की।”
विपक्ष का आरोप है कि मतदाता सूची की सॉफ्ट कॉपी सत्तारूढ़ बीजेपी के पास उपलब्ध है, लेकिन विपक्षी दलों को यह नहीं दी जा रही। पवन खेड़ा ने सवाल उठाया कि बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर के पास छह लोकसभा सीटों की डिजिटल मतदाता सूची कैसे पहुंची।

क्या है जनता का भरोसा खोने का कारण?
चुनाव आयोग पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि वह मतदाता सूची में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है। बिहार में एसआईआर अभियान के तहत 28,370 आपत्तियां दर्ज की गईं, लेकिन विपक्ष का कहना है कि मृत और डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाने की प्रक्रिया में हेराफेरी हो रही है।
बिहार की जानता का मानना है कि ज्ञानेश कुमार ने इन आरोपों का जवाब देने के बजाय आक्रामक रुख अपनाया, जिससे जनता में यह धारणा बनी कि वह निष्पक्षता के बजाय सत्तारूढ़ दल के पक्ष में काम कर रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी कई यूजर्स ने उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस को ‘अहंकारी’ और ‘संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ’ बताया।

आगे की राह
ज्ञानेश कुमार का कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक है, जिसमें बिहार, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी होगी। हालांकि, विपक्ष की नाराजगी और सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाएं उनके लिए चुनौतियां बढ़ा रही हैं।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मांग की है कि मतदाता सूची की सॉफ्ट कॉपी सभी दलों को उपलब्ध कराई जाए और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में नए कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का फैसला भी इस विवाद को नई दिशा दे सकता है।

निष्कर्ष
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता और विपक्ष का भरोसा जीतना है। उनकी नियुक्ति से लेकर हाल के बयानों तक, हर कदम पर सवाल उठ रहे हैं। सांघवी का मानना है कि अगर चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और पारदर्शिता को साबित नहीं करता, तो लोकतंत्र का यह स्तंभ कमजोर हो सकता है।
जब तक ठोस सबूतों और खुले संवाद के जरिए ये सवाल हल नहीं होते, तब तक ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयोग पर विवादों का साया बना रहेगा। क्या वे जनता का भरोसा जीत पाएंगे, यह आने वाला समय बताएगा।

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