Nepal News: नेपाल में सोशल मीडिया बैन हटने के बाद भी संघर्ष जारी, तख्तापलट की आशंका?

Nepal Gen-Z Protest News: नेपाल की राजधानी काठमांडू और अन्य शहरों में हाल ही में युवाओं का एक बड़ा आंदोलन भड़क उठा है, जिसे ‘जेन-जेड प्रोटेस्ट’ के नाम से जाना जा रहा है। यह आंदोलन मुख्य रूप से भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और सोशल मीडिया पर लगाए गए बैन के खिलाफ शुरू हुआ था। सरकार ने 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, यूट्यूब और एक्स (पूर्व ट्विटर) पर अचानक बैन लगा दिया था, जिससे युवा वर्ग में भारी आक्रोश फैल गया। बैन हटाने के बावजूद आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है, और अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह नेपाल में राजनीतिक तख्तापलट की ओर ले जाएगा? आइए इस मुद्दे पर विस्तार से नजर डालते है।

आंदोलन का बैकग्राउंड
नेपाल सरकार ने अगस्त 2025 के अंत में सोशल मीडिया पर बैन लगाया था, जिसका आधिकारिक कारण ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘फेक न्यूज’ को रोकना बताया गया। लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। जेन-जेड (जन्म 1997-2012 के बीच) पीढ़ी, जो डिजिटल दुनिया में पली-बढ़ी है, ने इसे अपनी आवाज दबाने का प्रयास समझा। आंदोलन की शुरुआत काठमांडू से हुई, जहां हजारों युवा सड़कों पर उतर आए। वे न केवल बैन हटाने की मांग कर रहे थे, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों पर भी सरकार को घेर रहे थे।
यह आंदोलन ‘2025 नेपाली जेन-जेड प्रोटेस्ट’ के रूप में दर्ज हो चुका है, और इसमें युवाओं ने सोशल मीडिया का ही इस्तेमाल करके संगठित होना शुरू किया था, लेकिन बैन लगने के बाद यह भूमिगत हो गया। एक्स (ट्विटर) पर भी कई पोस्ट्स में युवाओं की एकजुटता की तारीफ की जा रही है, जहां एक यूजर ने लिखा, “हक़ सिर्फ़ पोस्ट और लाइक से नहीं मिलता, असली ताक़त सड़कों पर उतरकर आवाज़ बुलंद करने में है।”

हिंसक टकराव और भारी नुकसान
आंदोलन के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भड़क उठीं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 19 लोग मारे गए हैं, जिनमें ज्यादातर युवा शामिल हैं, और 300 से अधिक घायल हुए हैं। पुलिस ने कथित तौर पर गोलीबारी की, जिससे मौतों का आंकड़ा बढ़ा। न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि यह हिंसा भ्रष्टाचार और बैन के खिलाफ गुस्से का नतीजा थी।

रॉयटर्स के अनुसार, मौतों में से कई पुलिस फायरिंग से हुईं, और घायलों की संख्या 100 से अधिक बताई जा रही है। काठमांडू पोस्ट ने इसे ‘राष्ट्रव्यापी युवा विद्रोह’ करार दिया है, जो बैन से शुरू होकर पूरे सिस्टम के खिलाफ बदल गया। एक्स पर एक वीडियो पोस्ट में 17 मौतों का जिक्र है, लेकिन आधिकारिक आंकड़े 19 तक पहुंच चुके हैं। होम मिनिस्टर ने इस्तीफा दे दिया है, जो सरकार पर दबाव का संकेत के रूप में माना जा रहा है।

बैन हटाया, लेकिन आंदोलन जारी
सरकार ने अंतरराष्ट्रीय दबाव और मौतों के बाद झुकना पड़ा। गार्जियन की खबर के अनुसार, 9 सितंबर 2025 को सोशल मीडिया बैन आधिकारिक तौर पर हटा लिया गया। स्काई न्यूज ने इसे ‘जेन-जेड की मांगों का सम्मान’ बताया। इंडिपेंडेंट के मुताबिक, यह कदम घातक प्रोटेस्ट्स के बाद उठाया गया, जिसमें 19 मौतें हुईं।

फिर भी, प्रदर्शनकारी संतुष्ट नहीं हैं। वे अब प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं और व्यापक सुधारों की मांग कर रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि बैन हटने के बावजूद हिंसा जारी है, और 300 से अधिक घायल हैं। अल जजीरा ने भी पुष्टि की कि 19 मौतें हुईं, और मृतकों की पहचान अभी पूरी नहीं हुई।

तख्तापलट की संभावना
आंदोलन की तीव्रता को देखते हुए विशेषज्ञ तख्तापलट की आशंका जता रहे हैं। नेपाल का इतिहास राजनीतिक अस्थिरता से भरा है—2006 में राजशाही का अंत और 2015 में संविधान बनाने के बाद भी सरकारें अक्सर बदलती रहीं। वर्तमान में, जेन-जेड का यह विद्रोह पुरानी पीढ़ी की राजनीति को चुनौती दे रहा है। टेलंगाना टुडे के अनुसार, सरकार ने बैन हटा लिया, लेकिन युवाओं का गुस्सा भ्रष्टाचार पर केंद्रित है, जो बड़े बदलाव की मांग कर सकता है।

न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि होम मिनिस्टर के इस्तीफे से सरकार कमजोर हुई है, और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है। अगर आंदोलन फैलता रहा, तो विपक्षी दल इसका फायदा उठा सकते हैं। हालांकि, अभी कोई स्पष्ट संकेत नहीं है कि तख्तापलट तत्काल होगा, लेकिन युवाओं की भागीदारी (जो नेपाल की आबादी का बड़ा हिस्सा हैं) इसे लंबा खींच सकती है। वाईओएन न्यूज के अनुसार, सरकार ने बैन हटाकर शांति की कोशिश की है, लेकिन सड़कों पर तनाव बरकरार है।

युवा शक्ति का उदय
यह आंदोलन नेपाल में जेन-जेड की राजनीतिक जागृति का प्रतीक है। सोशल मीडिया बैन हटने से राहत मिली, लेकिन 19 मौतें और 300 घायल होने का दर्द गहरा है। सरकार को अब सुधारों पर ध्यान देना होगा, वरना तख्तापलट जैसी स्थिति बन सकती है। युवाओं की एकजुटता ने यह साबित किया है कि डिजिटल युग में आवाज दबाना मुश्किल है। नेपाल की जनता को शांति और न्याय की जरूरत है, ताकि यह संघर्ष रचनात्मक दिशा में मुड़े।

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