नेहरू चाहते थे बाबरी मस्जिद के लिए सरकारी ख़ज़ाने का पैसा लगे

Defense Minister Rajnath Singh: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को गुजरात के वडोदरा ज़िले के साधली गाँव में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा,
“जब पंडित नेहरू ने बाबरी मस्जिद पर सरकारी ख़ज़ाने से पैसा ख़र्च करने की बात उठाई थी, तो इसका विरोध अगर किसी ने किया था तो वह गुजराती माँ का बेटा सरदार वल्लभभाई पटेल था। उस वक़्त सरदार पटेल ने बाबरी मस्जिद को सरकारी पैसे से बनने नहीं दिया।”

राजनाथ सिंह के इस बयान पर तुरंत कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने इसे “सरासर झूठ” करार दिया। उन्होंने कहा कि नेहरू और पटेल दोनों ही अयोध्या में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने के सख़्त ख़िलाफ़ थे।

ऐतिहासिक दस्तावेज़ क्या कहते हैं?
1949 में 22-23 दिसंबर की रात को कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद के अंदरूनी हिस्से में राम और सीता की मूर्तियाँ रख दी थीं। इसके बाद मस्जिद को ताला लगा दिया गया और विवाद शुरू हो गया।

नेहरू और पटेल के उपलब्ध पत्रों (Nehru Archive और Sardar Patel’s Correspondence) में कहीं भी यह उल्लेख नहीं मिलता कि नेहरू बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण या रखरखाव के लिए सरकारी पैसा ख़र्च करना चाहते थे और पटेल ने उसका विरोध किया।
उल्टा, दोनों नेता इस घटना से बेहद चिंतित थे और इसे सांप्रदायिक सद्भाव के लिए ख़तरा मानते थे।

नेहरू के पत्रों से कुछ प्रमुख अंश:
• 26 दिसंबर 1949 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जीबी पंत को टेलीग्राम: “मैं अयोध्या की घटनाओं से बहुत व्यथित हूँ। उम्मीद है आप ख़ुद इस मामले में दिलचस्पी लेंगे। वहाँ जो उदाहरण पेश किया जा रहा है, उसके बहुत गंभीर परिणाम होंगे।”
• 1950 में कई पत्रों में नेहरू ने बार-बार कहा कि अयोध्या का मामला पूरे देश की नीति, कश्मीर और भारत-पाकिस्तान संबंधों पर असर डालेगा।
• उन्होंने यूपी में कांग्रेस के भीतर बढ़ते सांप्रदायिक रुझान पर गहरी नाराज़गी जताई और कहा कि यूपी उन्हें “विदेश जैसा” लगने लगा है।

सरदार पटेल का पत्र (जनवरी 1950, जीबी पंत को):
पटेल ने लिखा,
“यह विवाद सबसे अनुपयुक्त समय पर उठाया गया है… मुस्लिम समुदाय अभी-अभी नई निष्ठा के साथ बस रहा है। इस मुद्दे को आपसी सहमति और सद्भावना से सुलझाना चाहिए। बलप्रयोग से कोई हल नहीं निकल सकता… एकतरफ़ा आक्रामक कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जा सकती।”
यानी पटेल भी शांति और मुस्लिम समुदाय की सहमति पर ज़ोर दे रहे थे, न कि सरकारी पैसा रोकने की बात कर रहे थे।

निष्कर्ष

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दावे का समर्थन करने वाला कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज़ अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है। उपलब्ध नेहरू-पटेल पत्राचार में दोनों नेता एक ही लाइन पर दिखते हैं; बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखे जाने की घटना को गलत ठहराते हैं और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की बात करते हैं। सरकारी पैसा ख़र्च करने या उसे रोकने का कोई ज़िक्र इन पत्रों में नहीं है।

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