राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष, सरसंघचालकों की पूरी सूची, पढ़िये पूरी खबर

Nagpur News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इस वर्ष अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के शुभ अवसर पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में इस संगठन की नींव रखी थी। तब से लेकर अब तक, संघ ने भारतीय समाज, संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन 100 वर्षों में, संघ का नेतृत्व छह सरसंघचालकों ने संभाला, जिन्होंने अपने दृष्टिकोण और समर्पण से संगठन को नई दिशा प्रदान की।

आइए, जानते हैं इन सरसंघचालकों की पूरी सूची और उनके योगदान के बारे में
1. डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (1925-1940)
उपाख्य: डॉक्टर जी
संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने हिंदू समाज को संगठित करने और हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए 1925 में आरएसएस की शुरुआत की। उन्होंने छोटे-छोटे समूहों में स्वयंसेवकों को जोड़कर शाखाओं की नींव रखी। उनकी सादगी और समर्पण ने संगठन को मजबूत आधार दिया। स्वास्थ्य खराब होने पर उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में माधव सदाशिव गोलवलकर को चुना।
2. माधव सदाशिव गोलवलकर (1940-1973)
उपाख्य: श्री गुरुजी
श्री गुरुजी ने 33 वर्षों तक संघ का नेतृत्व किया, जो संगठन के इतिहास में सबसे लंबा कार्यकाल है। उनके कार्यकाल में संघ ने पूरे देश में अपनी शाखाओं का विस्तार किया और हिंदुत्व की विचारधारा को मजबूत किया। उन्होंने स्वयंसेवकों से क्षमा मांगते हुए स्मारक न बनाने की इच्छा जताई थी। उनके निधन के बाद नागपुर में एक स्मृति चिन्ह बनाया गया, जिसमें संत तुकाराम की पंक्तियां उत्कीर्ण हैं।
3. मधुकर दत्तात्रय देवरस (1973-1993)
उपाख्य: बालासाहब देवरस
बालासाहब ने संघ को सामाजिक सेवा और संगठनात्मक विस्तार की दिशा में आगे बढ़ाया। उनके कार्यकाल में संघ ने आपातकाल (1975-77) के दौरान लोकतंत्र की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने रेशीम बाग को श्मशान स्थल न बनाने की इच्छा जताई, और उनका अंतिम संस्कार नागपुर के गंगाबाई घाट पर किया गया।
4. प्रो. राजेंद्र सिंह (1993-2000)
उपाख्य: रज्जू भैया
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर रहे रज्जू भैया ने संघ को आधुनिक दृष्टिकोण दिया। स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने 2000 में दायित्व छोड़ दिया, हालांकि वे प्रवास करने में सक्षम थे। उनके कार्यकाल में संघ ने सामाजिक समरसता पर जोर दिया।
5. कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन (2000-2009)
उपाख्य: सुदर्शन जी
सुदर्शन जी पहले गैर-महाराष्ट्रीयन और दक्षिण भारतीय सरसंघचालक थे। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की स्थापना हुई और एकात्मता मंत्र को प्रचलित किया गया। स्वास्थ्य ठीक होने के बावजूद उन्होंने मोहन भागवत को दायित्व सौंपा, जो डॉ. हेडगेवार की परंपरा को आगे बढ़ाया।
6. डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत (2009-वर्तमान)
वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत सबसे कम उम्र में इस दायित्व को संभालने वाले नेता हैं। उनके नेतृत्व में संघ ने सामाजिक समावेश, पर्यावरण संरक्षण और डिजिटल युग में संगठन के विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी अगुवाई में संघ ने अपनी शताब्दी के अवसर पर देशभर में हिंदू सम्मेलनों की योजना बनाई है।

संघ की शताब्दी और परंपरा
संघ की सरसंघचालक परंपरा में एक खास विशेषता यह है कि प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी का चयन स्वयं करता है, जिसे प्रतिनिधि सभा की बैठक में स्वीकृति मिलती है। डॉ. हेडगेवार ने कहा था कि जब भी उनसे योग्य व्यक्ति मिले, उसे यह दायित्व सौंप दिया जाए, और वे स्वयंसेवक की तरह काम करेंगे। यह परंपरा आज भी कायम है, जो संघ की जीवंतता और लचीलेपन को दिखती है।

100 साल का सफर
1925 में 5 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ यह संगठन आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है। देशभर में 50,000 से अधिक शाखाएं और लाखों स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े हैं। आपदा प्रबंधन, सामाजिक सेवा और राष्ट्र निर्माण में संघ का योगदान उल्लेखनीय रहा है। शताब्दी वर्ष में संघ ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में हिंदू सम्मेलनों के आयोजन की योजना बनाई है, ताकि समाज के सभी वर्गों को जोड़ा जा सके।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह शताब्दी वर्ष न केवल इसके गौरवशाली इतिहास को रेखांकित करता है, बल्कि भविष्य में राष्ट्र निर्माण के लिए इसके संकल्प को भी मजबूत करता है।

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