सऊदी अरब और परमाणु-सशस्त्र पाकिस्तान के बीच पारस्परिक रक्षा समझौता, एक नया सामरिक गठबंधन

Riyadh/Islamabad News: सऊदी अरब और पाकिस्तान ने बुधवार को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत दोनों देशों ने पारस्परिक रक्षा की प्रतिबद्धता जताई है। ‘स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट’ (एसएमडीए) नामक इस समझौते में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी एक देश पर आक्रमण को दूसरे देश पर आक्रमण माना जाएगा। पाकिस्तान, जो दुनिया का एकमात्र परमाणु हथियार संपन्न मुस्लिम देश है, के साथ यह गठबंधन क्षेत्रीय सुरक्षा और पवित्र स्थलों की रक्षा के लिए एक मजबूत ढाल के रूप में देखा जा रहा है।

यह समझौता पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सऊदी यात्रा के दौरान सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की मौजूदगी में हस्ताक्षरित हुआ। पाकिस्तान सरकार के एक बयान के अनुसार, एसएमडीए न केवल रक्षा सहयोग को मजबूत करेगा, बल्कि खुफिया जानकारी साझा करने, संयुक्त सैन्य अभ्यासों और रक्षा उद्योग में सहयोग को भी बढ़ावा देगा। विशेष रूप से, यह समझौता सऊदी अरब के दो पवित्र मस्जिदों—मक्का और मदीना—की सुरक्षा में पाकिस्तान की भूमिका को औपचारिक रूप देता है, जिसे एक ‘दिव्य जिम्मेदारी’ के रूप में वर्णित किया गया है।

दशकों पुराने भाईचारे को मजबूत करने वाले इस समझौते का ऐतिहासिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण है। 1970 के दशक से सऊदी अरब ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को वित्तीय सहायता प्रदान की है, और विशेषज्ञों का मानना है कि यह गठबंधन सऊदी अरब को अप्रत्यक्ष रूप से परमाणु प्रतिरोध प्रदान कर सकता है। बीबीसी और अन्य स्रोतों के अनुसार, सऊदी अरब ने लंबे समय से पाकिस्तान के परमाणु हथियारों तक पहुंच की संभावना पर विचार किया है, खासकर ईरान के बढ़ते परमाणु खतरे के बीच। हालांकि, आधिकारिक तौर पर सऊदी अरब परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का सदस्य है और परमाणु हथियारों का विरोध करता है, लेकिन यह समझौता क्षेत्रीय शक्तियों जैसे ईरान और इजरायल के प्रति एक रणनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

विश्लेषकों का कहना है कि एसएमडीए मध्य पूर्व में बदलाव ला सकता है। कतर में हाल ही में हुए अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान ने इजरायल के क्षेत्रीय डिजाइनों पर नजर रखने के लिए संयुक्त टास्क फोर्स की मांग की थी, जिसमें सऊदी अरब को प्रमुख भूमिका दी गई। इस समझौते से गल्फ सहयोग परिषद (जीसीसी) के संयुक्त रक्षा समझौते को मजबूती मिलेगी, और संभावित रूप से यूएई और बहरीन जैसे देशों को इसमें शामिल किया जा सकता है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं कि यह गठबंधन क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा सकता है, खासकर यदि परमाणु साझेदारी की अफवाहें सत्य साबित हों।

पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच संबंध हमेशा से मजबूत रहे हैं। 1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद से दोनों देशों ने सैन्य, आर्थिक और धार्मिक स्तर पर सहयोग किया है। पाकिस्तान ने 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान सऊदी अरब में 20,000 सैनिक तैनात किए थे, और सऊदी ने पाकिस्तान को तेल सब्सिडी प्रदान की है। यह नया समझौता इन संबंधों को नई ऊंचाई देगा, जो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए सकारात्मक कदम माना जा रहा है।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें अब इस समझौते के कार्यान्वयन पर टिकी हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियां इसे ईरान के परमाणु कार्यक्रम के संदर्भ में देख रही हैं, जबकि भारत जैसे पड़ोसी देश क्षेत्रीय संतुलन पर इसके प्रभाव की चिंता कर रहे हैं। कुल मिलाकर, यह समझौता मुस्लिम दुनिया की एकता का प्रतीक माना जा रहा है, जो बाहरी आक्रमणों के खिलाफ एकजुट खड़े होने का संकल्प दर्शाता है।

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