Mumbai News: भारतीय रुपया हाल ही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले दबाव में नजर आ रहा है। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और अमेरिकी टैरिफ नीतियों के कारण रुपये में गिरावट देखी गई है। 5 फरवरी 2025 को रुपया 87.0675 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ, जो पिछले सत्र के 87.1850 के रिकॉर्ड निचले स्तर से मामूली सुधार हुआ है। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट वैश्विक व्यापार नीतियों और अमेरिकी डॉलर की मजबूती का परिणाम है।
अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन पर नए टैरिफ लगाए जाने की घोषणा के बाद उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दबाव बढ़ा है। इन टैरिफ्स ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता पैदा की है, जिसका असर भारतीय रुपये पर भी पड़ा है। विशेष रूप से, भारत के चावल और कपड़ा निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ का असर देखा जा सकता है। इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन के अनुसार, टैरिफ अस्थायी बाधा हैं, लेकिन इनका अल्पकालिक प्रभाव हो सकता है। इसके अलावा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में अस्थिरता ने भी रुपये की कमजोरी को बढ़ावा दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप कर रहा है। आरबीआई की “प्रबंधित फ्लोट” नीति के तहत, यह मुद्रा बाजार में सक्रिय रूप से व्यापार करता है ताकि रुपये की विनिमय दर को नियंत्रित किया जा सके। हाल ही में, 1 अगस्त 2025 को रुपये में 40 पैसे की बढ़त देखी गई, जो आरबीआई के हस्तक्षेप और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण थी।
हालांकि, आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने अक्टूबर 2024 में रेपो रेट को 6.5% पर यथावत रखा और अपने रुख को “न्यूट्रल” कर लिया। यह निर्णय अमेरिकी केंद्रीय बैंक की ब्याज दर कटौती के उलट है, जिसने वैश्विक बाजारों में डॉलर की स्थिति को प्रभावित किया है। विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई की सतर्क नीति रुपये को और अधिक गिरावट से बचाने में मदद कर सकती है।
आर्थिक विशेषज्ञों की राय
बैंक ऑफ बड़ौदा और जेएम फाइनेंशियल की रिपोर्ट्स के अनुसार, 2025 में रुपये के 85.5 से 87.5 प्रति डॉलर के बीच रहने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी डॉलर इंडेक्स के 109 तक पहुंचने से रुपये पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों द्वारा भारी बिकवाली, जैसे कि 5,588 करोड़ रुपये के शेयरों की बिक्री, ने भी बाजार में अस्थिरता बढ़ाई है।
आगे की राह
वित्त मंत्रालय ने रुपये की गिरावट को वैश्विक अस्थिरता का हिस्सा बताया है और इसे नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने की बात कही है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि आरबीआई अपनी नीतियों में लचीलापन बनाए रखता है और वैश्विक व्यापार नीतियों में सुधार होता है, तो रुपये में स्थिरता आ सकती है। हालांकि, अमेरिका-भारत व्यापार समझौते पर अनिश्चितता और टैरिफ की चिंताएँ निकट भविष्य में रुपये पर दबाव बनाए रख सकती हैं।
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