मोकामा का खूनी सियासी अखाड़ा: भूमिहार वर्चस्व की जंग में दुलारचंद की हत्या से गर्माया चुनावी माहौल

Mokama/Bihar Assembly Election News: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण से ठीक पहले पटना जिले के मोकामा विधानसभा क्षेत्र में खूनखराबे ने एक बार फिर ‘जंगलराज’ की पुरानी बहस को हवा दे दी है।

यहां भूमिहार समुदाय का पारंपरिक वर्चस्व यादव, धानुक और कुर्मी जैसे पिछड़े वर्गों से खूनी संघर्ष में बदल गया है। गुरुवार को जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी (धानुक समुदाय से) के प्रचार के दौरान RJD नेता दुलारचंद यादव (76 वर्ष) की गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी गई। इस घटना ने न सिर्फ चुनावी समीकरणों को हिला दिया है, बल्कि अनंत सिंह और सूरजभान सिंह जैसे बाहुबलियों के बीच की पुरानी दुश्मनी को फिर से सुलगा दिया है। सवाल उठ रहा है- मोकामा का युवराज कौन बनेगा: अनंत सिंह या सूरजभान का परिवार?

टाल क्षेत्र में वर्चस्व की पुरानी लड़ाई
मोकामा का टाल इलाका गंगा की उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ सियासी हिंसा की खाद से सींचा हुआ है। यहां करीब 3 लाख मतदाताओं में भूमिहारों की संख्या 25% (लगभग 75 हजार) है, जो पारंपरिक रूप से वर्चस्व रखते हैं। यादव 24% (73 हजार), कुर्मी-धानुक मिलाकर 20-25%, दलित 15-20% और मुस्लिम 3-4% हैं। 80 के दशक से दुलारचंद यादव का इस क्षेत्र में दबदबा रहा। वे राइफल के दम पर कुर्मी-धानुक किसानों की सैकड़ों बिघा जमीन हड़पने के आरोपों से घिरे थे। 1990 में उन्होंने अनंत सिंह के भाई के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन मामूली अंतर से हार गए। 2009 के चुनाव में भी बूथ कब्जे और गोलीबारी के आरोप उन पर लगे।

भूमिहार बनाम यादव-धानुक का संघर्ष बिहार की राजनीति का पुराना अध्याय है। 1925 के लाखोचक नरसंहार से लेकर हाल के कटिहार दियारा गैंगवार तक, जमीन और वर्चस्व की ये लड़ाई खूनी रही। मोकामा में अनंत सिंह (भूमिहार) ने 2005 से पांच बार विधायक रहकर OBC वोटों (कुर्मी-धानुक) को अपनी ओर किया, जबकि सूरजभान सिंह (भी भूमिहार) का परिवार यादव और मुस्लिम वोटों पर नजर रखता है। जन सुराज के पीयूष प्रियदर्शी ने धानुक-कुर्मी वोटों को एकजुट कर अनंत के किले को भेदने की कोशिश की, लेकिन दुलारचंद की हत्या ने ये प्रयास धूल चटा दिया।

हत्याकांड का खौफनाक मंजर: प्रचार काफिले पर हमला
घोसवारी थाना क्षेत्र के तारतर गांव में दोपहर करीब 2 बजे घटना घटी। पीयूष प्रियदर्शी का काफिला (40 गाड़ियां) अनंत सिंह के काफिले से टकराया। शुरुआत गाली-गलौज से हुई, फिर ईंट-पत्थर चले, गाड़ियों के शीशे टूटे और अचानक गोलीबारी शुरू हो गई। दुलारचंद यादव को उनके पोते नीरज ने भागने को कहा, लेकिन कथित तौर पर अनंत सिंह के करीबी ‘करमवीर’ और ‘राजवीर’ (भूमिहार) ने उन्हें पकड़ लिया। वीडियो फुटेज में दिखा कि दुलारचंद को अनंत सिंह के पास घसीटा गया, जहां गोली मार दी गई। उनकी गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त किया गया।

परिजनों ने FIR में अनंत सिंह समेत पांच नामजद किए। दुलारचंद के पोते रविरंजन ने कहा, “हम पढ़े-लिखे हैं, AK-47 नहीं रखते। अनंत सिंह ने ही दादा को मरवाया।” अनंत सिंह ने इसे साजिश बताते हुए सूरजभान सिंह पर इल्जाम लगाया: “ये सारा खेल सूरजभान का है। दुलारचंद उनके साथ रहता था। हमारे काफिले की गाड़ियां भी तोड़ी गईं।” सूरजभान की पत्नी वीणा देवी (RJD उम्मीदवार) ने इनकार किया: “हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं।” जन सुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ करार दिया, जबकि तेजस्वी यादव ने ‘सत्ता संरक्षित गुंडों’ पर निशाना साधा। पप्पू यादव ने मोकामा पहुंचकर ‘बाहुबलियों को फांसी दो’ के नारे लगवाए।

अनंत या सूरजभान: युवराज की कुर्सी पर खूनी दांव
मोकामा की सियासत हमेशा बाहुबलियों के इर्द-गिर्द घूमती रही। अनंत सिंह (JDU) को ‘छोटे सरकार’ कहा जाता है। 2005 में नीतीश कुमार ने उन्हें टिकट देकर बिहार की राजनीति हिला दी। बाढ़ में भूमिहार रक्षक बने, लेकिन अपराध की लंबी कुंडली (हत्या, रंगदारी, अवैध हथियार) ने उन्हें जेल की हवा भी खिला दी। जेल से बाहर आकर उन्होंने OBC वोटों पर कब्जा जमाया। दूसरी ओर, सूरजभान सिंह (पूर्व सांसद) का परिवार 20-25 साल से अनंत से टकराता रहा। वे कहते हैं, “अनंत कौन हैं, मैं नहीं जानता।” उनकी पत्नी वीणा देवी (RJD) यादव-मुस्लिम वोटों पर भरोसा कर रही हैं।

X (पूर्व ट्विटर) पर बहस गर्म है। कुछ यूजर्स अनंत को ‘भूमिहारों का शेर’ बता रहे, तो कुछ यादव-धानुक एकता की अपील कर रहे। एक पोस्ट में लिखा, “दुलारचंद की हत्या से अनंत को फायदा, लेकिन यादव पलटवार करेंगे जैसे 90 के दशक में बारा-सोनारी गांवों में हुआ।” अनंत ने सूरजभान को खुली चुनौती दी: “20-25 साल से लड़ रहा हूं, वे हर बार हारे। इस बार भी हारेंगे।” सूरजभान ने कहा, “हमारी लड़ाई जनता से है।”

जंगलराज का साया: क्या बदलेगा समीकरण?
हत्या के बाद मोकामा में सन्नाटा पसर गया। दुकानें बंद, हजारों ने अंतिम यात्रा में ‘बाहुबली को फांसी दो’ के नारे लगाए। DM त्यागराजन ने भारी पुलिस तैनाती की। FSL टीम जांच कर रही, लेकिन विपक्ष ‘NDA का महाजंगलराज’ चिल्ला रहा।

अनालिस्टों का मानना है कि दुलारचंद की मौत से यादव वोट RJD की ओर सिमटेंगे, लेकिन धानुक-कुर्मी अनंत की शरण में लौट आएंगे। भूमिहार वोट बंटेगा, जो सूरजभान के लिए नुकसान। पहले चरण की वोटिंग (3 नवंबर) से पहले ये घटना बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही। क्या मोकामा फिर ‘बाहुबली का किला’ बनेगा, या पिछड़े वर्गों का पलटवार होगा? वक्त ही बताएगा।

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