Maratha Reservation/Manoj Jarange News: मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कोटे में 10 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल मुंबई के आजाद मैदान में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर डटे हुए हैं। आज, 1 सितंबर 2025, उनके अनशन का चौथा दिन है, और उन्होंने पानी पीना भी बंद कर दिया है, जिससे उनकी सेहत को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। इस बीच, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर रविवार को एक उच्चस्तरीय बैठक की, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने आंदोलन के कारण आम लोगों को हो रही परेशानियों पर नाराजगी जताई है।
जरांगे की मांग और आंदोलन की तीव्रता
मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा समुदाय को ओबीसी श्रेणी के तहत कुनबी जाति के रूप में मान्यता देने और 10% आरक्षण प्रदान करने की मांग की है। उनका कहना है कि मराठा समुदाय आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा है, और कुनबी प्रमाणपत्र के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। जरांगे ने स्पष्ट किया कि वे पूरे ओबीसी कोटे की मांग नहीं कर रहे, बल्कि कुनबी श्रेणी के तहत पात्रता के आधार पर हिस्सा चाहते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि मराठा समुदाय का धैर्य न परखा जाए और आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं।
शनिवार को जरांगे की तबीयत बिगड़ने के बाद डॉक्टरों को आजाद मैदान बुलाया गया था। चिकित्सकों ने चेतावनी दी कि लंबे समय तक भूख हड़ताल जारी रखने से उनकी सेहत पर गंभीर असर पड़ सकता है। इसके बावजूद, जरांगे ने कहा कि वे “गोली खाने” को तैयार हैं, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे। महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों, खासकर मराठवाड़ा से हजारों समर्थक उनके साथ आजाद मैदान में डटे हैं, जिससे दक्षिण मुंबई में भारी भीड़ और ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी हुई है।
सरकारी रुख और उच्चस्तरीय बैठक
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार मराठा समुदाय को संवैधानिक दायरे में 10% आरक्षण पहले ही दे चुकी है, जिसे कोर्ट ने भी मंजूरी दी है। हालांकि, जरांगे इसे अपर्याप्त मानते हैं और ओबीसी कोटे में शामिल होने की मांग कर रहे हैं। रविवार को मराठा आरक्षण उपसमिति की बैठक राधाकृष्ण विखे पाटिल के नेतृत्व में हुई, जिसमें कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर चर्चा की गई। फडणवीस ने आश्वासन दिया कि सरकार मराठा समुदाय के हित में काम कर रही है, लेकिन ओबीसी समुदाय के अधिकारों से समझौता नहीं किया जाएगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट की नाराजगी
आंदोलन के कारण दक्षिण मुंबई में ट्रैफिक और आम जनजीवन पर पड़ रहे असर को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों को सड़कों पर अवरोध न करने की सलाह दी और कहा कि इससे आम नागरिकों को भारी असुविधा हो रही है। मुंबई पुलिस ने जरांगे को सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ ने इन शर्तों को नजरअंदाज कर दिया। पुलिस ने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए 1,500 से अधिक जवानों को तैनात किया है।
ओबीसी समुदाय का विरोध
मराठा आरक्षण की मांग ने ओबीसी समुदाय में भी बेचैनी पैदा की है। एनसीपी नेता और ओबीसी चेहरा छगन भुजबल ने सोमवार को मुंबई में ओबीसी नेताओं की बैठक बुलाई है, जिसमें इस मुद्दे पर रणनीति तय की जाएगी। ओबीसी नेता लक्ष्मण हाके ने जरांगे के आंदोलन को “असंवैधानिक” करार दिया और चेतावनी दी कि मराठों को ओबीसी कोटे में शामिल करने पर ओबीसी समुदाय भी सड़कों पर उतरेगा।
कानूनी स्थिति
कानूनी विशेषज्ञ उल्हास बापट के अनुसार, मराठा समुदाय की मांग जायज है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंद्रा साहनी केस के फैसले के अनुसार, आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती। ओबीसी को पहले से 27% आरक्षण प्राप्त है, और मराठा समुदाय को इसमें शामिल करने के लिए दोनों समुदायों के नेताओं को आपस में बैठकर कोटा बंटवारे पर सहमति बनानी होगी।
आंदोलन का प्रभाव
आंदोलन के कारण दक्षिण मुंबई में ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई है, और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) के आसपास यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर ट्रक और डिवाइडरों पर डेरा डाला है, जिससे शहर की अर्थव्यवस्था और दैनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। मराठा समुदाय के समर्थकों का कहना है कि यह उनकी “आखिरी लड़ाई” है, और वे तब तक नहीं हटेंगे, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
विपक्षी नेता उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने जरांगे के आंदोलन का समर्थन किया है। ठाकरे ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया, जबकि पवार ने संविधान संशोधन की जरूरत पर जोर दिया। दूसरी ओर, फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि उनकी सरकार मराठा समुदाय के लिए प्रतिबद्ध है।
आगे की राह
मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र की सियासत में उबाल ला दिया है। जरांगे की भूख हड़ताल और समर्थकों की भारी भीड़ ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। आज की उच्चस्तरीय बैठक और ओबीसी नेताओं की प्रतिक्रिया इस मुद्दे के समाधान में अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि, कानूनी और संवैधानिक बाधाओं के बीच यह देखना बाकी है कि सरकार और आंदोलनकारी इस गतिरोध को कैसे सुलझाते हैं।

