Maharashtra Election: क्या आप जानते है कि शिवसेना का गठन कैसे हुआ और क्या है पार्टी का एजेंडा…
Maharashtra Election:महाराष्ट्र चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है कौन जीतेगा कौन हारेगा किस पार्टी का मेलमिलाप कामयाब रहेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा एग्ज़िट पोल की पोल भी खुल चुकी है इसलिए इन पर भरोसा मत करिएगा महाराष्ट्र चुनाव हो और शिवसेना की बात ना हो तो सब कुछ अधूरा लगता चलिए बताते हैं सिर्फ सेना की स्थापना और किस तरह से पार्टी का मुंबई के बाद पूरे महाराष्ट्र में उदय होता चला। दरअसल, शिवसेना की स्थापना और उसके बाद के घटनाक्रम को समझना महाराष्ट्र की राजनीति की एक महत्वपूर्ण कहानी है। आइए इसे विस्तार से देखते हैं। शिवसेना का गठन 19 जून 1966 को बाला साहब ठाकरे ने किया था। उस समय, महाराष्ट्र में स्थानीय मराठी लोगों को नौकरियों और अवसरों में बाहरी लोगों के वर्चस्व से परेशानी हो रही थी। ठाकरे ने मराठी मानुस (मराठी लोगों) के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और एक मजबूत राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व किया।
पार्टी का मूल उद्देश्य
पार्टी का ’’मूल उद्देश्य’’ शुरुआत में मुंबई और महाराष्ट्र के मराठी लोगों के हितों की रक्षा करना था। शिवसेना का फोकस मराठी अस्मिता और क्षेत्रीयता पर पूरी तरह केन्दीत था। धीरे-धीरे, पार्टी ने हिंदुत्व का समर्थन करते हुए अपना विस्तार किया और राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बनाई। बाला साहब ठाकरे का नेतृत्व करिश्माई था। वे अपने जोशीले भाषणों के लिए जाने जाते थे, जो आम आदमी को सीधे तौर पर अपील करते थे। उनका एक अद्वितीय व्यक्तित्व था, जो उन्हें महाराष्ट्र की जनता के बीच एक लोकप्रिय नेता बनाता चला गया। हालांकि उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन वे पार्टी की विचारधारा और नीतियों के प्रमुख मार्गदर्शक बने रहे।
आप सोच रहे होगे कि ’’शिवसेना का विस्तार इतना कैसे हो गया।
दरअसल, ’’बीजेपी के साथ शिवसेना का गठबंधन काफी कारगर रहा। 1980 और 1990 के दशक में, शिवसेना ने हिंदुत्व की विचारधारा को अपनाया और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में महत्वपूर्ण साबित हुआ और दोनों पार्टियों ने मिलकर 1995 में महाराष्ट्र में पहली बार सरकार बनाई, जिसमें मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने।
इस समय तक, शिवसेना ने मुंबई महानगर पालिका और महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। बाला साहब ठाकरे की विचारधारा ने पार्टी को एक आक्रामक हिंदुत्व की छवि दी, जिससे पार्टी के समर्थक बढ़े। पार्टी इतनी आगे आई कि उसके बिना दूसरे दलों को सरकार बनाना भी आसान नही रह गया। बाला साहब ठाकरे सीएम न रहते हुए भी सीएम की तरह माने जाते थे।
बाला साहब ठाकरे के बाद पार्टी का नेतृत्व कैसे रहा आए बताते है
बाला साहब ठाकरे के निधन के बाद, उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने पार्टी की कमान संभाली। हालांकि, उद्धव का नेतृत्व उनके पिता की तरह आक्रामक नहीं था। उन्होंने पार्टी की छवि को थोड़ा नरम और अधिक समावेशी बनाने का प्रयास किया, जिससे पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह कुछ असंतोष भी हुआ। सबसे पहले उन्हे आपने चचेरे भाई राज ठाकरे को ही एक चैलेज के रूप में लेना पड़ा। शरूआत में राज ठाकरे को ही मजबूत माना जाता था लेकिन पार्टी की शक्ति उद्वव ठााकरे के पास आई तो समीकरण उन्ही के पक्ष में बनते चले गए। एक उद्वव सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए। लेकिन बीजेपी से दूर होते चले गए।
बीजेपी के रिश्तों से खटास आई
2014 के विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना और बीजेपी से रिश्तों में खटास आई, जब दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। हालांकि, बाद में शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ। शिवसेना ने बीजेपी से अलग होकर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, और उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने।
एकनाथ शिंदे का विद्रोह
इसी बीच एकनाथ शिंदे का विद्रोह शुरू हो गया। जून 2022 में, एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के कई विधायकों के साथ बगावत कर दी और पार्टी के खिलाफ खड़े हो गए। शिंदे ने आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे ने बालासाहेब की हिंदुत्ववादी विचारधारा से समझौता किया है और एनसीपी-कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, जो शिवसेना की मूल विचारधारा के खिलाफ है। ’’सरकार का गिरना और नई सरकार का गठन की प्रक्रिया तेज हो गई। कुछ दिनों में ही शिंदे के बगावत के बाद उद्धव ठाकरे की सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके चलते उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के समर्थन से नई सरकार बनाई और खुद मुख्यमंत्री बने, जबकि देवेंद्र फडणवीस उपमुख्यमंत्री बने।
अब एकनाथ शिंदे गुट ने खुद को असली शिवसेना बताया और चुनाव आयोग से पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न (धनुष-बाण) पर दावा किया। इसके बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई। एक उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में और दूसरा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में। विभाजन के बाद शिवसेना की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है, क्योंकि पार्टी के कई प्रमुख नेता शिंदे गुट में चले गए हैं। हालांकि, उद्धव ठाकरे अभी भी पार्टी के एक बड़े हिस्से का नेतृत्व कर रहे हैं और अपनी विरासत को पुनः स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में शिवसेना (उद्धव गुट) और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच मुकाबला कैसे होता है और महाराष्ट्र की जनता किसे समर्थन देती है।