मद्रास हाईकोर्ट ने एनडीपीएस मामले में झूठे सबूत पेश करने पर 3 पुलिसकर्मियों पर लगा 10 लाख रुपये का जुर्माना

Chennai/Madras High Court News: मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटैंसेस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत 24 किलोग्राम गंजा रखने के आरोप में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी करते हुए, मामले की जांच करने वाले तीन पुलिसकर्मियों पर झूठे सबूत गढ़ने और गलत गवाही देने के लिए 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति केके रामकृष्णन की एकलपीठ ने इस फैसले में पुलिस अधिकारियों को आरोपी विग्नेश को मुआवजे के रूप में यह राशि एक महीने के अंदर चुकाने का निर्देश दिया है।

मामला विग्नेश बनाम राज्य (Vignesh Vs State) शीर्षक से हाईकोर्ट में अपील के रूप में आया था। विशेष अदालत ने विग्नेश को 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने जांच के दौरान सामने आए विरोधाभासों और जाली दस्तावेजों के आधार पर अभियोजन की पूरी कहानी को झूठा करार दिया।

अदालत ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने साजिश रचकर आरोपी को किसी भी हाल में दोषी साबित करने का प्रयास किया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष जांच और सुनवाई के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।

मामले की मुख्य कड़ियां
• आरोप: 2022 में, एक सब-इंस्पेक्टर को गुप्त सूचना मिली थी कि विग्नेश के पास 24 किलोग्राम गंजा है। पुलिस ने छापा मारा और उसे गिरफ्तार कर लिया।
• विरोधाभास: अदालत ने पाया कि सब-इंस्पेक्टर द्वारा हस्तलिखित गुप्त सूचना रिपोर्ट को कोर्ट में टाइप्ड संस्करण से बदल दिया गया। एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर का दावा करने वाले अधिकारी का नाम वास्तविक हस्ताक्षरकर्ता से अलग पाया गया।
• एनडीपीएस एक्ट का उल्लंघन: अभियोजन पक्ष एनडीपीएस एक्ट की धारा 42 का अनुपालन साबित करने में विफल रहा, जो खुफिया सूचना पर छापेमारी के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है।

न्यायमूर्ति रामकृष्णन ने फैसले में कहा, “यह दर्शाता है कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष झूठा सबूत पेश किया गया।” उन्होंने आगे जोड़ा, “अभियोजन पक्ष ने न केवल धारा 42 का अनुपालन साबित करने में विफलता दिखाई, बल्कि झूठे सबूतों के माध्यम से दोषसिद्धि हासिल करने का प्रयास किया।” अदालत ने तीनों अधिकारियों को “गवाहों के बीच अशुद्ध गठबंधन” का दोषी ठहराते हुए, उनके आचरण को गंभीर माना।

अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश
हाईकोर्ट ने चेन्नई के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया है कि तीनों अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करें। यह जांच स्वतंत्र होनी चाहिए और फैसले के निष्कर्षों से प्रभावित न हो। डीजीपी को एक महीने के अंदर इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है। अधिकारियों के नाम फैसले में उल्लिखित नहीं हैं, लेकिन वे जांच टीम के सदस्य थे।

वकीलों की भूमिका
अभियोजन पक्ष की ओर से एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर आर. मीनाक्षी सुंदरम ने पक्ष रखा, जबकि विग्नेश का प्रतिनिधित्व एडवोकेट जी. करुपासामी पांडियन ने किया। पांडियन ने अदालत में पुलिस की साजिश और सबूतों की जालसाजी पर जोर दिया।

यह फैसला पुलिस की जवाबदेही पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है, जो दर्शाता है कि झूठे मामलों से निर्दोषों को नुकसान पहुंचाने वाले अधिकारियों को सजा मिलनी चाहिए। विग्नेश को अब तत्काल रिहा करने का आदेश भी जारी किया गया है।

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