बिहार के ‘नहर मैन’ लौंगी भुइयां: 35 साल की एकाकी मेहनत ने बदलडाली सूखाग्रस्त गांव की किस्मत, सरकार कर रही उपेक्षा

Gaya/Bihar News: बिहार के गया जिले के कोठिलावा गांव में स्थित दूरस्थ पहाड़ियों में एक व्यक्ति ने अपनी हठधर्मिता से न केवल अपना गांव बचाया, बल्कि पूरे इलाके को हरा-भरा बना दिया।

लौंगी भुइयां, जिन्हें ‘बिहार का नहर मैन’ के नाम से जाना जाता है, ने बिना किसी मशीन, बिना पैसे और बिना किसी सहायता के 35 साल तक अकेले पहाड़ काटे। उनका एकमात्र उद्देश्य: सूखे से त्रस्त अपने गांव तक पानी पहुंचाना। आज उनकी बनाई नहर न केवल पानी का स्रोत बनी हुई है, बल्कि गांव की अर्थव्यवस्था और जीवन को नई जान फूंक चुकी है।

लौंगी भुइयां का जन्म गया जिले के लहठुआ क्षेत्र के कोठिलावा गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। 70 वर्षीय लौंगी बचपन से ही गरीबी और पानी की किल्लत से जूझते रहे। 1990 के दशक में, जब वे जंगल में बकरियों को चराने जाते थे, तो पहाड़ों से बहता वर्षा का पानी नदी में मिल जाता था, जिससे गांव की खेती बर्बाद हो जाती। किसान केवल रबी फसलें ही उगा पाते, जिसके कारण युवा पलायन को मजबूर हो जाता था। लौंगी ने ठान लिया कि वे इस समस्या का स्थायी समाधान निकालेंगे। 1998 में उन्होंने अकेले ही नहर खोदना शुरू किया। कुल्हाड़ी, फावड़ा और हथौड़े जैसे साधारण औजारों से वे रोजाना काम करते। कई बार ग्रामीणों ने उन्हें पागल ठहराया, लेकिन लौंगी रुके नहीं। लगभग 30-35 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद 2020 में लगभग 3-5 किलोमीटर लंबी नहर तैयार हो गई, जो पहाड़ों के पानी को सीधे गांव के तालाब तक पहुंचाती है।

इस नहर ने गांव की तस्वीर ही बदल दी है। पहले सूखा पड़ा मैदान अब उपजाऊ खेतों में तब्दील हो चुका है। किसान धान और गेहूं जैसी फसलों की दो-तीन फसलें उगा रहे हैं, जो पहले असंभव था। हैंडपंपों में अब पानी की कमी नहीं होती, जिससे पशुओं और घरेलू उपयोग के लिए भी राहत मिली है। इमामगंज और बांके बाजार ब्लॉक के पांच गांवों में अब पानी की उपलब्धता बढ़ गई है, जिससे पलायन रुक गया। युवा अब गांव में ही मत्स्य पालन और खेती जैसे रोजगार अपनाने लगे हैं।

स्थानीय शिक्षक राम विलास सिंह कहते हैं, “लौंगी जी का यह कार्य गांव के सैकड़ों परिवारों के लिए वरदान साबित हुआ है। पहले लोग शहरों की ओर पलायन करते थे, लेकिन अब गांव ही उनकी कमाई का केंद्र बन गया है।”

लौंगी की कहानी 2020 में सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जब एक ट्विटर यूजर ने उनकी मेहनत की तस्वीरें शेयर कीं। उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने इसे देखा और तुरंत एक ट्रैक्टर दान करने का वादा किया। महिंद्रा ने ट्वीट किया, “यह नहर ताजमहल या पिरामिड जितनी ही प्रभावशाली है। लौंगी जी को ट्रैक्टर देना मेरा सौभाग्य होगा।” हालांकि, सरकारी स्तर पर अभी भी उनकी मांगें अधर में लटकी हैं। लौंगी अब एक जेसीबी मशीन और नहर को पक्का करने की मांग कर रहे हैं। जुलाई 2024 में आउटलुक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मैं दशरथ मांझी की तरह ही हूं, लेकिन सरकार को अब विकास पर ध्यान देना चाहिए। सड़कें, अस्पताल और नहर का रखरखाव जरूरी है।”
आज भी लौंगी भुइयां अपनी झोपड़ी में पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला था, लेकिन घर अभी भी अधूरा है। वन विभाग से नहर के लिए क्लियरेंस का इंतजार है, जिसके कारण कार्य रुका हुआ है।

फिर भी, उनकी कहानी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। दशरथ मांझी की तरह, जो पहाड़ काटकर रास्ता बनाया, लौंगी ने पानी की राह बनाई। यह साबित करता है कि दृढ़ संकल्प से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है।

गया जिले के इस नायक की कहानी हमें याद दिलाती है कि ग्रामीण भारत की समस्याओं का हल स्थानीय स्तर पर ही खोजा जा सकता है। सरकार को ऐसे असली हीरोज को सम्मानित करने की जरूरत है, ताकि उनकी मेहनत व्यर्थ न जाए। लौंगी भुइयां की तरह, अगर हर कोई अपने इलाके के लिए ऐसा कुछ करे, तो बिहार का पिछड़ापन मिट सकता है।

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