Lok Sabha News: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज लोकसभा में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 पेश किया। इस विधेयक के साथ-साथ संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025 और केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025 भी सदन में प्रस्तुत किए गए। यह विधेयक जम्मू और कश्मीर के प्रशासनिक और विधायी ढांचे में बदलाव लाने के उद्देश्य से लाया गया है, लेकिन इसे लेकर सदन में तीखी बहस और विरोध देखने को मिल रहा है।
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 का उद्देश्य जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन करना है, जिसके तहत जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किया गया था। इस विधेयक के तहत विधानसभा और प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ बदलाव प्रस्तावित हैं, हालांकि इसकी बारीकियों को लेकर अभी विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है।
विपक्ष का विरोध और हंगामा
विधेयक पेश होते ही विपक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद मुस्लिमीन (AIMIM) के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक को पेश करने के खिलाफ नोटिस दिया और इसे शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन बताया। ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है और जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों का हनन करता है।
सदन में तनाव तब और बढ़ गया जब कुछ सांसदों ने विधेयक की प्रतियां फाड़कर गृह मंत्री अमित शाह की ओर फेंकी। इस घटना के बाद लोकसभा की कार्यवाही को अपराह्न 3 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत, 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू और कश्मीर (विधानसभा के साथ) और लद्दाख (विधानसभा के बिना)—में विभाजित किया गया था। इसके बाद से केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में कई प्रशासनिक और विधायी बदलाव किए हैं। 2023 में भी जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक पारित किया गया था, जिसमें विधानसभा सीटों की संख्या को 83 से बढ़ाकर 90 किया गया और अनुसूचित जाति के लिए सात तथा अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई थीं।
विवाद और आलोचना
विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक जम्मू और कश्मीर के लोगों की सहमति के बिना लाया गया है और यह क्षेत्र की स्वायत्तता को और कमजोर करता है। कुछ नेताओं ने इसे केंद्र सरकार की एकतरफा नीति का हिस्सा बताया। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि ये बदलाव जम्मू और कश्मीर में विकास और समावेशी शासन को बढ़ावा देंगे।
आगे की राह
यह विधेयक अब लोकसभा में चर्चा और मतदान के लिए जाएगा, जिसके बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। विधेयक के प्रावधानों और इसके प्रभाव को लेकर आने वाले दिनों में और बहस होने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक जम्मू और कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
जम्मू और कश्मीर के लोगों और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया पर नजर रखने के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के निरसन से संबंधित मामले का फैसला भी इस विधेयक के संदर्भ में महत्वपूर्ण होगा।
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