दिल्ली में पुलिस थानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाही के आदेश पर मच गया बवाल, वकीलों की हड़ताल, मामला अब हाईकोर्ट में 

LG vs Advocate News: दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना द्वारा 13 अगस्त 2025 को जारी एक अधिसूचना ने राजधानी में सियासी और कानूनी तूफान खड़ा कर दिया है। इस अधिसूचना में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को थानों से ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में गवाही देने की अनुमति दी गई है। इस फैसले के खिलाफ दिल्ली के वकीलों ने तीखा विरोध शुरू कर दिया है, जिसके चलते 22 अगस्त से दिल्ली की सभी जिला अदालतों में न्यायिक कार्य ठप हैं। वकीलों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए, कोर्ट परिसरों में पुलिसकर्मियों और सरकारी वकीलों के प्रवेश पर रोक लगाई, और उपराज्यपाल कार्यालय के घेराव की चेतावनी दी है। इस मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच भी तीखी बयानबाजी देखने को मिल रही है।
वकीलों का विरोध
दिल्ली की सभी जिला अदालतों की बार एसोसिएशंस की समन्वय समिति (कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ ऑल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट बार एसोसिएशंस) ने इस अधिसूचना को “न्याय-विरोधी” करार देते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है। समिति ने 20 अगस्त को उपराज्यपाल, केंद्रीय गृह मंत्री, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री, और दिल्ली के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपना विरोध दर्ज किया था, लेकिन कोई जवाब न मिलने पर 22 और 23 अगस्त को न्यायिक कार्यों का बहिष्कार शुरू किया।
वकीलों का कहना है कि पुलिस थानों से गवाही देने की अनुमति से न्यायिक प्रक्रिया कमजोर होगी।
तीस हजारी कोर्ट बार एसोसिएशन के अतिरिक्त सचिव धर्मेंद्र बैसोया ने कहा, “पुलिस थानों का माहौल गवाही के लिए उपयुक्त नहीं है। इससे वकीलों को पुलिस अधिकारियों से आमने-सामने जिरह करने में दिक्कत होगी, जो न्याय के लिए जरूरी है।”
कड़कड़डूमा कोर्ट की शाहदरा बार एसोसिएशन के सचिव नरवीर डबास ने घोषणा की कि किसी भी पुलिसकर्मी या सरकारी वकील को कोर्ट परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। साकेत बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजपाल कसाना ने चेतावनी दी कि यदि आदेश वापस नहीं लिया गया तो वकील उपराज्यपाल कार्यालय का घेराव करेंगे।
22 अगस्त से शुरू हुई हड़ताल के दौरान तीस हजारी, साकेत, और रोहिणी कोर्ट में वकीलों ने सड़क जाम कर नारेबाजी की, जिससे कोर्ट का कामकाज पूरी तरह ठप हो गया। साकेत कोर्ट में 100 से ज्यादा मामले प्रभावित हुए, और अधिकांश मामलों में अगली तारीख देनी पड़ी।
विपक्ष का हमला
आम आदमी पार्टी (आप) ने इस अधिसूचना को “न्याय व्यवस्था का मखौल” करार देते हुए इसका तीखा विरोध किया है। आप के दिल्ली प्रदेश संयोजक सौरभ भारद्वाज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “एलजी का यह आदेश पूरी तरह अवैध और गैरकानूनी है। पुलिस पर पहले से ही सरकार के दबाव में झूठे मुकदमे दर्ज करने के आरोप लगते हैं। अब अगर पुलिस अधिकारी थाने से गवाही देंगे, तो उनकी मनमानी और बढ़ेगी। अगर गवाही कमजोर पड़ रही हो, तो वे कैमरा बंद कर देंगे और कहेंगे कि इंटरनेट चला गया। यह न्याय व्यवस्था को ध्वस्त करने की साजिश है।”
आप की एडवोकेट विंग के दिल्ली अध्यक्ष संजीव नासियार ने कहा कि जब केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) पेश की थी, तब वकीलों ने इसका विरोध किया था और गृह मंत्रालय ने लिखित आश्वासन दिया था कि पुलिस थानों से कोई गवाही नहीं दी जाएगी। नासियार ने सवाल उठाया, “13 अगस्त को जारी यह अधिसूचना बीएनएस के प्रावधानों से भी आगे जाकर पुलिस को अतिरिक्त शक्तियां देती है। जब तक गवाह अदालत में शपथ लेकर बयान नहीं देगा, तब तक न्याय प्रणाली मजबूत नहीं हो सकती।”
दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इस आदेश का विरोध करते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।
सत्तापक्ष का पक्ष
दूसरी ओर, उपराज्यपाल कार्यालय ने इस फैसले को पुलिस कार्यप्रणाली में सुधार और समय की बचत का कदम बताया है। कार्यालय के मुताबिक, दिल्ली के सभी 226 पुलिस थानों को गवाही के लिए नामित स्थल घोषित किया गया है, ताकि पुलिसकर्मियों को बार-बार अदालतों में जाने की जरूरत न पड़े। इससे समय, संसाधन, और मानवशक्ति की बचत होगी, जिससे जांच और अन्य प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी।
यह फैसला भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत बने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ड्राफ्ट मॉडल नियमों के अनुरूप बताया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में एक समीक्षा बैठक में पुलिस और अदालतों के बीच बेहतर तालमेल के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं को बढ़ाने का निर्देश दिया था। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया था कि यह सुविधा केवल पुलिसकर्मियों के लिए होगी, अन्य गवाहों के लिए नहीं।
आगे क्या?
वकीलों का कहना है कि जब तक अधिसूचना वापस नहीं ली जाती, उनका आंदोलन जारी रहेगा। समन्वय समिति ने 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया था, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर हड़ताल को और तेज करने की योजना है। दूसरी ओर, उपराज्यपाल कार्यालय ने अभी तक इस मांग पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
यह विवाद दिल्ली की न्यायिक और सियासी हलकों में लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रह सकता है। जहां वकील और विपक्ष इसे न्याय व्यवस्था के लिए खतरा बता रहे हैं, वहीं सत्तापक्ष इसे प्रशासनिक सुधार का हिस्सा मान रहा है। इस टकराव का नतीजा क्या होगा, यह आने वाले दिनों में साफ होगा।
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