Ladakh/Leh: लद्दाख के लेह में 24 सितंबर को हुई हिंसक झड़पों ने न केवल क्षेत्र की शांति को भंग किया, बल्कि एक देशभक्त सैनिक की जिंदगी भी छीन ली। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई इस झड़प में चार लोगों की मौत हो गई, जिनमें पूर्व सैनिक त्सेवांग थारचिन (Tsewang Tharchin) भी शामिल थे। थारचिन, जो 1996 से 2017 तक लद्दाख स्काउट्स में हवलदार के पद पर तैनात रहे, ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला था। लेकिन दुर्भाग्य से, वही थारचिन, जो दुश्मन की गोली से बच निकले थे, अपनी ही मातृभूमि की पुलिस की गोली का शिकार हो गए। उनके पिता, रिटायर्ड कैप्टन स्टैनजिन नामग्याल (Stanzin Namgyal), का दर्द भरा बयान पूरे देश को झकझोर रहा है: “मेरे बेटे को पाकिस्तानी नहीं मार पाए, लेकिन हमारी पुलिस ने मार दिया।”
पृष्ठभूमि: लद्दाख का आंदोलन और हिंसा का दौर
लद्दाख में पिछले कई महीनों से स्थानीय लोग पूर्ण राज्य (Full Statehood) की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन का उद्देश्य केंद्र सरकार से विशेष दर्जा, नौकरियों में स्थानीय आरक्षण और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा कराना है। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक के नेतृत्व में चले जल सत्याग्रह के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया। 24 सितंबर को लेह बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों ने शहर के मुख्य मार्गों पर जुलूस निकाला, लेकिन बातचीत के लिए बुलाई गई एक्सपर्ट कमिटी के बहिष्कार की मांग पर विवाद बढ़ गया।
लद्दाख में पिछले कई महीनों से स्थानीय लोग पूर्ण राज्य (Full Statehood) की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन का उद्देश्य केंद्र सरकार से विशेष दर्जा, नौकरियों में स्थानीय आरक्षण और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा कराना है। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक के नेतृत्व में चले जल सत्याग्रह के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया। 24 सितंबर को लेह बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों ने शहर के मुख्य मार्गों पर जुलूस निकाला, लेकिन बातचीत के लिए बुलाई गई एक्सपर्ट कमिटी के बहिष्कार की मांग पर विवाद बढ़ गया।
सुरक्षा बलों ने प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज, आंसू गैस और अंततः गोली चलाई। इस हिंसा में थारचिन सहित चार लोग मारे गए, जबकि दर्जनों घायल हुए। लेह प्रशासन ने तुरंत कर्फ्यू लगा दिया और उपराज्यपाल के. रविंद्र कुमार ने मृतकों के परिवारों को संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि “और जानें बचाने के लिए सभी कदम उठाए जाएंगे।” लेकिन परिवारों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा।
थारचिन की कहानी: कारगिल का शेर, जो घर लौट आया था
त्सेवांग थारचिन का जन्म लेह के एक साधारण परिवार में हुआ था। 1996 में भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद वे लद्दाख स्काउट्स रेजिमेंट का हिस्सा बने। 1999 के कारगिल युद्ध में वे तोलोलिंग और दाह टॉप सेक्टर में तैनात थे, जहां उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ कठिन लड़ाई लड़ी। तीन महीने तक मोर्चे पर डटे रहने के बावजूद वे सुरक्षित लौटे। 2017 में रिटायरमेंट के बाद थारचिन ने लेह में एक कपड़ों की दुकान खोली और शांतिपूर्ण जीवन जिया। उनके चार बच्चे हैं, जिनकी पढ़ाई अभी अधर में लटक रही है।
त्सेवांग थारचिन का जन्म लेह के एक साधारण परिवार में हुआ था। 1996 में भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद वे लद्दाख स्काउट्स रेजिमेंट का हिस्सा बने। 1999 के कारगिल युद्ध में वे तोलोलिंग और दाह टॉप सेक्टर में तैनात थे, जहां उन्होंने पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ कठिन लड़ाई लड़ी। तीन महीने तक मोर्चे पर डटे रहने के बावजूद वे सुरक्षित लौटे। 2017 में रिटायरमेंट के बाद थारचिन ने लेह में एक कपड़ों की दुकान खोली और शांतिपूर्ण जीवन जिया। उनके चार बच्चे हैं, जिनकी पढ़ाई अभी अधर में लटक रही है।
परिवार के अनुसार, थारचिन आंदोलन के समर्थक थे। वे मानते थे कि लद्दाख के लोगों को उनके अधिकार मिलने चाहिए। 24 सितंबर को प्रदर्शन के दौरान उन्हें कथित तौर पर पुलिस ने घसीटा, लाठियों से पीटा और फिर गोली मार दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके शरीर पर लाठी के निशान मिले, जो परिवार को और आहत कर रहे हैं। थारचिन की पत्नी रिगजिन डोल्कर ने दर्द भरे लहजे में कहा, “मेरा बेटा देशभक्त था।
कारगिल में पाकिस्तानियों से लड़ा, लेकिन यहां अपनी ही फोर्स ने उसकी जान ले ली। गोली चलाने का आदेश किसने दिया? रबर बुलेट या आंसू गैस से भीड़ को क्यों नहीं रोका गया? हमें निष्पक्ष जांच चाहिए।”
पिता का आक्रोश: ‘हमारे जैसे देशभक्तों के साथ ऐसा बर्ताव?’
थारचिन के पिता स्टैनजिन नामग्याल खुद एक वीर सैनिक हैं। उन्होंने भी कारगिल युद्ध लड़ा और 2002 में सूबेदार मेजर व मानद कैप्टन के पद से रिटायर हुए। इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मेरा बेटा देशभक्त था। उसने कारगिल में तीन महीने मोर्चे पर बिताए।
पिता का आक्रोश: ‘हमारे जैसे देशभक्तों के साथ ऐसा बर्ताव?’
थारचिन के पिता स्टैनजिन नामग्याल खुद एक वीर सैनिक हैं। उन्होंने भी कारगिल युद्ध लड़ा और 2002 में सूबेदार मेजर व मानद कैप्टन के पद से रिटायर हुए। इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मेरा बेटा देशभक्त था। उसने कारगिल में तीन महीने मोर्चे पर बिताए।
पाकिस्तानी उसे मार नहीं पाए, लेकिन हमारी अपनी फोर्स ने उसकी जान ले ली। जो काम पाकिस्तान और चीन नहीं कर पाए, वो हमारी पुलिस ने कर दिया। क्या हमारे जैसे देशभक्तों के साथ ऐसा बर्ताव होना चाहिए?” नामग्याल ने आगे कहा कि लद्दाखी हमेशा सेना के साथ खड़े रहते हैं—युद्ध में कुली, मार्गदर्शक और सैनिक बनकर। लेकिन अब उन्हें “देशद्रोही” कहा जा रहा है, जो असहनीय है।
रेड माइक न्यूज को दिए एक वीडियो इंटरव्यू में नामग्याल ने भावुक होकर बताया, “मेरे बेटे को घसीटा, पीटा फिर गोली मारी। पाकिस्तान से लड़े, चीन से लड़े, और हमें देशद्रोही कह रहे हैं।” यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जहां हजारों लोग #SaveLadakh, #FreeSonamWangchuk और #IAmWithLadakhis जैसे हैशटैग के साथ समर्थन जता रहे हैं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: जांच की मांग तेज
इस घटना पर विपक्ष ने केंद्र सरकार को घेरा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “पिता फौजी, बेटा भी फौजी, फिर भी बीजेपी सरकार ने गोली मार दी। लद्दाख में हुई इन हत्याओं की निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी चाहिए। मोदी जी, आपने लद्दाख के लोगों को धोखा दिया है।” कांग्रेस कार्य समिति की सदस्य सुप्रिया श्रीनेट ने ट्वीट किया, “कारगिल की जंग लड़ने वाले थारचिन को पुलिस की बर्बर लाठियां और गोली—इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा?”
इस घटना पर विपक्ष ने केंद्र सरकार को घेरा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “पिता फौजी, बेटा भी फौजी, फिर भी बीजेपी सरकार ने गोली मार दी। लद्दाख में हुई इन हत्याओं की निष्पक्ष न्यायिक जांच होनी चाहिए। मोदी जी, आपने लद्दाख के लोगों को धोखा दिया है।” कांग्रेस कार्य समिति की सदस्य सुप्रिया श्रीनेट ने ट्वीट किया, “कारगिल की जंग लड़ने वाले थारचिन को पुलिस की बर्बर लाठियां और गोली—इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा?”
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक, मृतकों के परिजन चारों मौतों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक करने और गोली चलाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। लेह एपेक्स बॉडी ने भी जांच समिति गठित करने की अपील की है।
आगे की राह: शांति और न्याय की उम्मीद
लद्दाख का यह आंदोलन अब राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। थारचिन जैसे सैनिक की मौत ने न केवल परिवार को तोड़ा, बल्कि पूरे क्षेत्र में आक्रोश पैदा कर दिया। सरकार को अब न केवल हिंसा की जांच करानी होगी, बल्कि लद्दाखियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना होगा। जैसा कि थारचिन के छोटे भाई ने कहा, “जब भी युद्ध होता है, हम लद्दाखी ही सेना को पूरा सहयोग देते हैं। लेकिन अब सहयोग की बजाय दमन हो रहा है।”
लद्दाख का यह आंदोलन अब राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। थारचिन जैसे सैनिक की मौत ने न केवल परिवार को तोड़ा, बल्कि पूरे क्षेत्र में आक्रोश पैदा कर दिया। सरकार को अब न केवल हिंसा की जांच करानी होगी, बल्कि लद्दाखियों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना होगा। जैसा कि थारचिन के छोटे भाई ने कहा, “जब भी युद्ध होता है, हम लद्दाखी ही सेना को पूरा सहयोग देते हैं। लेकिन अब सहयोग की बजाय दमन हो रहा है।”
यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र में आवाज उठाना अपराध नहीं, बल्कि अधिकार है। थारचिन की कुर्बानी व्यर्थ न जाए—इसकी उम्मीद ही परिवार और लद्दाख के लोगों की एकमात्र तसल्ली है।

