लद्दाख हिंसा: केंद्र ने गठित किया न्यायिक आयोग, रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान को सौंपी जांच की कमान

Ladakh violence/New Delhi News: लद्दाख में राज्यत्व और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर भड़की हिंसा के मामले में केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग गठित कर दिया। यह आयोग 24 सितंबर को हुई हिंसा की घटनाओं, पुलिस कार्रवाई और उसके पूर्ववर्ती कारणों की गहन जांच करेगा, जिसमें चार नागरिकों की मौत और 90 से अधिक लोगों के घायल होने की घटना शामिल है।

आयोग का गठन ऐसे समय पर हुआ है जब लद्दाख में शांति मार्च और ब्लैकआउट का आह्वान किया गया था, जो मृतकों, घायलों और गिरफ्तार लोगों के लिए न्याय की मांग कर रहा है। गृह मंत्रालय के अनुसार, आयोग की रिपोर्ट से घटनाक्रम की पूरी सच्चाई सामने आएगी और जिम्मेदारों पर कार्रवाई सुनिश्चित होगी। जस्टिस चौहान, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हैं, को इस जांच की कमान सौंपी गई है, जो चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने की उम्मीद है।

हिंसा का पृष्ठभूमि: राज्यत्व की मांग से भड़का विवाद
लद्दाख, जो अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बना, शुरू में इस बदलाव से उत्साहित था। लेकिन जल्द ही स्थानीय लोगों को लगा कि विकास और स्वायत्तता की उम्मीदें पूरी नहीं हो रही हैं। Leh Apex Body (LAB) और Kargil Democratic Alliance (KDA) जैसे संगठनों ने राज्यत्व और छठी अनुसूची (जो आदिवासी क्षेत्रों को विशेष संरक्षण देती है) की मांग तेज कर दी।

24 सितंबर को लेह में एक बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसका नेतृत्व जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक कर रहे थे। वांगचुक, जो SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh) के संस्थापक हैं, ने 10 सितंबर से 14 दिनों का अनशन शुरू किया था। अनशन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पीएम मोदी के BJP कार्यालय पर हमला किया, पुलिस वाहनों को आग लगाई और झड़पें हुईं। पुलिस ने सेल्फ-डिफेंस में गोलीबारी की, जिसमें चार लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हो गए।

प्रदर्शन में युवाओं की बड़ी भूमिका थी, जिन्हें वांगचुक ने “जनरेशन जेड क्रांति” कहा था। उन्होंने अरब स्प्रिंग और नेपाल के हालिया आंदोलनों का जिक्र किया, जिसे सरकार ने उकसावे वाला बताया। हिंसा के बाद लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया, मोबाइल इंटरनेट निलंबित कर दिया गया और 70 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी: एनएसए के तहत जोधपुर जेल में बंद
हिंसा के दो दिन बाद, 26 सितंबर को सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। लेह प्रशासन ने उन्हें हिंसा भड़काने, भीड़ को उकसाने और “राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा” बताते हुए NSA लगाया।

वांगचुक को लेह से राजस्थान के जोधपुर सेंट्रल जेल स्थानांतरित कर दिया गया। सरकार ने उनके भाषणों को “उत्तेजक” करार दिया, जिसमें नेपाल और अरब स्प्रिंग के संदर्भ थे। इसके अलावा, उनके एनजीओ SECMOL का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया गया, जिसमें विदेशी फंड के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया।

वांगचुक की पत्नी गितांजली आंगमो ने सुप्रीम कोर्ट में हेबियस कॉर्पस याचिका दायर की, जिसमें उनकी तत्काल रिहाई की मांग की गई। सुप्रीम कोर्ट ने 6 अक्टूबर को केंद्र और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी किया। 14 अक्टूबर को सुनवाई स्थगित कर 15 अक्टूबर के लिए टाल दी गई। लेह डीएम ने कोर्ट में शपथ-पत्र में कहा कि वांगचुक ने “राज्य सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और आवश्यक सेवाओं के लिए हानिकारक गतिविधियां” कीं।

विरोधियों का आरोप: ‘विच-हंट’ और दमनकारी कार्रवाई
LAB और KDA ने वांगचुक की गिरफ्तारी को “विच-हंट” करार दिया। उन्होंने कहा कि वांगचुक शांतिप्रिय गांधीवादी हैं और हिंसा में उनका कोई हाथ नहीं। संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट जज की अगुवाई में न्यायिक जांच, मृतकों के परिवारों को मुआवजा, सभी गिरफ्तारियों को रद्द करने और लेफ्टिनेंट गवर्नर व डीजीपी के इस्तीफे की मांग की। 6 अक्टूबर को निर्धारित केंद्र के साथ वार्ता को भी स्थगित कर दिया गया।

दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिमालयी क्षेत्रों के नेताओं ने पुलिस फायरिंग की निंदा की और वांगचुक पर पाकिस्तान से जुड़े आरोपों को बकवास बताया। CPI(ML) लिबरेशन ने इसे “सरकारी दमन” कहा। सोशल मीडिया पर #ReleaseSonamWangchuk ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग लद्दाख की मांगों को संवैधानिक बताते हुए समर्थन जता रहे हैं।

सोशल मीडिया पर बहस: फर्जी वीडियो और राजनीतिक आरोप
X (पूर्व ट्विटर) पर इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है। महाराष्ट्र कांग्रेस ने लेह एडीसी का एक फर्जी वीडियो शेयर किया, जिसमें दावा किया गया कि अमित शाह के आदेश पर वांगचुक की गिरफ्तारी हुई। फैक्ट-चेकर अल्ट न्यूज ने इसे डिजिटली एडिटेड बताया। ADGP लेह का एक अन्य वीडियो भी वायरल हुआ, जो साबित करता है कि गिरफ्तारी सबूतों पर आधारित थी। यूजर्स में से कुछ वांगचुक को नायक बता रहे हैं, तो कुछ सरकार के पक्ष में बोल रहे हैं।

आगे की राह: शांति मार्च और आयोग की रिपोर्ट
आज (17 अक्टूबर) को लेह में शांति मार्च होने वाला है, जहां लोग न्याय की मांग करेंगे। आयोग के गठन से उम्मीद है कि विवाद सुलझेगा। लद्दाख के लोग विकास, नौकरियां और सांस्कृतिक संरक्षण चाहते हैं। केंद्र ने कुछ प्रतिबंध हटा दिए हैं, लेकिन LAB-KDA का कहना है कि “सामान्यता” का दावा गलत है।

यह घटना हिमालयी क्षेत्रों में स्वायत्तता की बढ़ती मांग को रेखांकित करती है। क्या न्यायिक आयोग से सच्चाई सामने आएगी और लद्दाख को उसका हक मिलेगा? आने वाले दिनों में इसका जवाब मिलेगा।

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