Ladakh News: केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर तनाव और बेचैनी बढ़ती जा रही है। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के नेतृत्व में स्थानीय लोग अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। पर्यावरणविद् और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक ने भी इस आंदोलन का समर्थन करते हुए सरकार से जल्द कार्रवाई की मांग की है।
पृष्ठभूमि और मांगें
2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। हालांकि, यह दर्जा बिना विधानसभा वाला है, जिसके कारण स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। उनकी प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं:
1. पूर्ण राज्य का दर्जा: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर अधिक राजनीतिक स्वायत्तता और निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की जाए।
2. छठी अनुसूची: संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को शामिल कर जनजातीय क्षेत्रों की सांस्कृतिक, भाषाई और भूमि संबंधी पहचान की रक्षा की जाए।
3. नौकरियों में आरक्षण: स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार में आरक्षण और एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना।
4. अलग संसदीय सीटें: लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग संसदीय निर्वाचन क्षेत्र दिए जाये।
तनाव का कारण
हाल ही में गृह मंत्रालय के साथ लद्दाख के प्रतिनिधियों की बातचीत रुक गई है। लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, “पिछले आठ महीनों में केवल दो बार बातचीत हुई है, और मुख्य मुद्दों—राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची—पर कोई प्रगति नहीं हुई।” इस देरी से लोगों में नाराजगी बढ़ रही है। सोनम वांगचुक ने कारगिल में तीन दिवसीय भूख हड़ताल में हिस्सा लिया और कहा, “हम शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें उठा रहे हैं, लेकिन अगर सरकार नहीं सुनती, तो हमें दिल्ली तक मार्च करना पड़ेगा, चाहे दस बार क्यों न जाना पड़े।”
स्थानीय चिंताएँ
लद्दाख की 97% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों से है, और लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान, भूमि और रोजगार के अधिकारों की रक्षा चाहते हैं। वांगचुक ने एक विशाल सौर संयंत्र के लिए 40,000 एकड़ जमीन के आवंटन पर भी सवाल उठाए, जिससे हजारों चरवाहों के विस्थापन का खतरा है। उन्होंने इसे स्थानीय समुदायों के लिए खतरा बताया और नौकरशाही भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।
सरकार का रुख
केंद्र सरकार ने 2023 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अध्यक्षता में एक उच्च शक्ति प्राप्त समिति गठित की थी, जिसका उद्देश्य लद्दाख की मांगों पर विचार करना था। सरकार ने 85% नौकरियों में आरक्षण, डोमिसाइल नीति, और लेह व कारगिल की स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों (LAHDCs) में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने जैसे कदम उठाए हैं। हाल ही में, केंद्र ने लद्दाख को छठी अनुसूची और पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर विचार करने का आश्वासन दिया है, लेकिन इस मुद्दे पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है और कमी से लोग नाराज हो रहे हैं।
जनता का गुस्सा
लद्दाख में हाल के विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग शामिल हुए हैं, जिनमें महिलाएँ भी बड़ी संख्या में थीं। फरवरी 2024 में, लेह में लगभग 20,000 लोगों ने विशाल रैली निकाली थी। सांसद मोहम्मद हनीफा ने कहा, “लद्दाख के लोग शांतिपूर्ण हैं, लेकिन उनका धैर्य जवाब दे रहा है। हमारी सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहचान को संरक्षित करने के लिए छठी अनुसूची और पूर्ण राज्य का दर्जा जरूरी है।”
आगे की राह
लद्दाख के लोग अपनी मांगों को लेकर एकजुट हैं, और लेह व कारगिल के बीच एकता का संदेश दे रहे हैं। वांगचुक ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती, तो लंबी भूख हड़ताल या दिल्ली तक मार्च जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। केंद्र सरकार के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि लद्दाख की सामरिक स्थिति और जनजातीय पहचान इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण बनाती है।
लद्दाख के लोगों की मांगें न केवल उनकी सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहचान की रक्षा से जुड़ी हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि विकास के साथ-साथ लोकतांत्रिक स्वायत्तता कितनी जरूरी है। सरकार और स्थानीय नेताओं के बीच जल्द बातचीत शुरू होने की उम्मीद है, लेकिन तब तक लद्दाख में तनाव और बेचैनी बनी रहेगी।

