क्रांति की क्रिकेट यात्रा की शुरुआत बेहद साधारण और प्रेरणादायक है। गांव में लड़कों को खेलते देखकर उन्होंने दूर से ही गेंद फेंकना सीखा। जब गेंद उनके दरवाजे पर आती, तो वे उसे वापस फेंक देतीं। एक दिन लड़कों की टीम में एक खिलाड़ी कम पड़ गया, और मजबूरी में उन्हें टीम में शामिल कर लिया गया। यहीं से उनका सफर शुरू हुआ।
गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात से पहले पीटीआई वीडियो को दिए इंटरव्यू में क्रांति ने कहा, “मुझे तो यह भी नहीं पता था कि महिला क्रिकेट टीम भी है। यहीं से क्रिकेट में मेरा सफर शुरू हुआ था। मेरे घर के आगे एक मैदान था, जहां लड़के खेलते थे। मैं दूर से देखती थी। जब मैंने उनके साथ खेलना शुरू किया, तो वे मुझे सिर्फ क्षेत्ररक्षक बनाते थे, लेकिन धीरे-धीरे मैंने खेलना सीख लिया। मुझे स्पिन गेंदबाजी का पता ही नहीं था, इसलिए लड़कों को देखकर मैंने तेज गेंदबाजी शुरू कर दी।”
यह उनका पहला विश्व कप था, और जीत पर क्रांति गद्गद हैं। उन्होंने कहा, “मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि यह मेरा पहला विश्व कप था और अब हम विश्व चैंपियन हैं। यह मेरे, मेरे परिवार और पूरे देश के लिए गर्व की बात है।”
क्रांति की कहानी ग्रामीण भारत की उन लड़कियों के लिए मिसाल है, जो सपनों को हकीकत में बदलने की जिद रखती हैं। स्टेडियम की रोशनी से दूर शुरू हुई यह यात्रा अब पूरे देश को प्रेरित कर रही है। भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने भी उनकी उपलब्धि पर बधाई दी है, और मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें सम्मानित करने की घोषणा की है।

