सिद्धारमैया-डीकेएस बैठक से बढ़ी अनिश्चितता, क्या माँ बेटे में तनातनी ?

Congress Power Struggle News: कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी सत्ता संघर्ष ने शनिवार को नया मोड़ ले लिया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार (डीकेएस) को नाश्ते पर बुलाकर बातचीत की, लेकिन यह बैठक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची। कांग्रेस हाईकमान ने दोनों नेताओं को निर्देश दिया था कि वे आपस में मिलें और मुद्दे को सुलझाएं। सूत्रों के अनुसार, रविवार (30 नवंबर) को दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाया जा सकता है, जहां पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ चर्चा होगी।

सिद्धारमैया ने बैठक के बाद कहा, “हाईकमान ने हमें बात करने को कहा है। मैं जो भी फैसला लेंगे, उसे मानूंगा। डीकेएस भी यही कह रहे हैं।” वहीं, डीकेएस ने संवाददाताओं से कहा, “पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित हैं, लेकिन मैं जल्दबाजी में नहीं हूं। हाईकमान सब तय करेगा।” यह बैठक इडली-सम्बर के साथ हुई, जो कर्नाटक की राजनीति में एक प्रतीकात्मक संकेत के रूप में देखी जा रही है।

यह विवाद 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद से चला आ रहा है, जब कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी। तब कथित तौर पर सिद्धारमैया और डीकेएस के बीच 2.5 साल का सत्ता-साझाकरण समझौता हुआ था। सिद्धारमैया (कुरुबा समुदाय से) को पहले दो साल के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि डीकेएस (वोकालिगा समुदाय से) को बाद में पद सौंपने का वादा था। अब सरकार के कार्यकाल के आधे समय (20 नवंबर को) बीत चुके हैं, जिसके बाद डीकेएस के समर्थक जोर-शोर से मांग कर रहे हैं।

डीकेएस ने हाल ही में एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा था, “वादा निभाना दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है।” यह स्पष्ट संकेत था हाईकमान की ओर। दूसरी ओर, सिद्धारमैया पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने पर अड़े हैं। उन्होंने कहा, “लोगों ने हमें पूर्ण बहुमत दिया है, और हमारी गारंटी योजनाएं पूरी करनी हैं।”

जातिगत आयाम भी जोर पकड़ चुका है। वोकालिगा संतों ने डीकेएस का समर्थन किया है, जबकि कुरुबा संत सिद्धारमैया के पक्ष में हैं। गृह मंत्री जी. परमेश्वरा भी मैदान में उतर आए हैं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित दिख रहा है।

कांग्रेस हाईकमान में भी मतभेद उजागर हो रहे हैं। सोनिया गांधी कथित रूप से डीकेएस के पक्ष में हैं, क्योंकि उन्होंने 2004 में मुख्यमंत्री पद का त्याग कर पार्टी को एकजुट किया था। डीकेएस ने इसकी तुलना अपनी स्थिति से की है। वहीं, राहुल गांधी सिद्धारमैया को जारी रखना चाहते हैं, क्योंकि वे सरकार की स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं। खड़गे ने कहा, “हम सीनियर लीडर्स के साथ बैठक करेंगे और फैसला लेंगे।”
पार्टी के अंदर से आवाजें उठ रही हैं। सिद्धारमैया के समर्थन में 100 से अधिक विधायक हैं, जबकि डीकेएस के पास 20-30 विधायकों का ग्रुप है। हाल ही में डीकेएस समर्थक छह विधायकों ने दिल्ली जाकर हाईकमान से मुलाकात की। पूर्व मंत्री के.एन. राजन्ना ने तो यहां तक कह दिया कि अगर विवाद न सुलझा तो विधानसभा भंग कर चुनाव लड़ें।

भाजपा का तंज
विपक्षी भाजपा ने इस बैठक को “ऑप्टिकल इल्यूजन” और “नकली नाटक” करार दिया। भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवान ने कहा, “यह कर्नाटक की जनता को बेवकूफ बनाने का प्रयास है। कांग्रेस की दिशाहीन राजनीति और राहुल गांधी का नेतृत्व असफल साबित हो रहा है। सोशल मीडिया पर दोनों गुटों की जंग सरकार की अस्थिरता दिखा रही है।” पूर्व मुख्यमंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने संकेत दिया कि अगर नेतृत्व परिवर्तन हुआ तो भाजपा डीकेएस को बाहरी समर्थन दे सकती है।

आगे क्या?
संसद के शीतकालीन सत्र (1 दिसंबर से) से ठीक पहले यह विवाद कर्नाटक कांग्रेस के लिए चुनौती बन गया है। अगर हाईकमान डीकेएस को मुख्यमंत्री बनाता है, तो सिद्धारमैया गुट में विद्रोह हो सकता है। वहीं, सिद्धारमैया को जारी रखने से डीकेएस के वोकालिगा वोट बैंक पर असर पड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह संकट 2026 के उपचुनावों को प्रभावित कर सकता है।

कर्नाटक की सियासत में यह ‘कुर्सी का किला’ जारी है, लेकिन अंतिम फैसला हाईकमान का ही होगा। क्या नाश्ते की यह बैठक ब्रेकथ्रू साबित होगी या विवाद को और भड़काएगी? आने वाले घंटे बताएंगे।

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