kairana loksabha :अक्सर चुनाव में नेताओं से लोग यही कहते नजर आते हैं कि जीतोगे तो क्या करोगे। क्या वादे हैं, क्या इरादे हैं लेकिन सबके बीच जो उम्मीदवार की जीत का सबसे बड़ा फैक्टर होता है। जाति और धर्म आज जमकर माना जा रहा है। चुनाव हार रहे हैं तो हिंदू मुसलमान की बात करो और विकास को भूल जाओ। लोगों को दूसरी बातों में उलझाओ और अपना उल्लू सीधा कर ले जाओ लेकिन कोई कोई उम्मीदवार ऐसे होते हैं जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर राजनीति करते हैं। लोगों के दिलों में घर कर लेते हैं। आजकल ऐसा ही चुनाव में देखने को मिल रहा है। पढ़ी लिखी विदेश से पढ़ कर आई इकरा हसन अपने इलाके में लोगों का प्यार और दुलार पा रही है। सवाल यही है कि क्या इकरा हसन इस प्यार दुलार को वोट में तब्दील कर पाएंगी? यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन क्षेत्र में अपनी मृदुल भाषा और हर धर्म जाति के लोगों के बीच पहुंच रही है।
उनकी समस्याएं जानकर निदान का वादा भी कर रही है। इकरा हसन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक ऐसी उम्मीदवार के रूप में उभर रही है, जिसने हिंदू मुसलमान टॉपिक छोड़ दिया है। किसी की बेटी किसी की बहन बनकर क्षेत्र में भले ही पहली बार चुनावी मैदान में उतरी है। मझे हुए खिलाड़ी की तरह खेल रही है। बड़ों का आशीर्वाद छोटों का प्यार मांगते हुए सुबह से शाम तक क्षेत्र में घूमती है। मुनव्वर हसन के इंतकाल के बाद उनके भाई नाहिद हसन को क्षेत्र वासियों ने विधायक के रूप में चुन लिया। कानून के हाथों ने सलाखों के पीछे डाल दिया। जिंदगी में इकरा ने उतार चढ़ाव काफी देखें इसीलिए उन्होंने हिंदू मुसलमान को पीछे छोड़ आगे निकलाने का फैसला किया। जयंत चैधरी पर भी वह हमेशा उन्हें इज्जत देती है और कहती है कि उनकी पार्टी का पार्टी से गठबंधन है लेकिन हमारा तो दिल से दिल का बंधन है। प्रचार में प्रत्याशियों ने ताकत झोंकी है। देखना यह है कि किस पार्टी का उम्मीदवार परचमम लहराएगा।