सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज से संबंधित आदेश को वापस लिया, जस्टिस प्रशांत कुमार फिर से सुन सकेंगे आपराधिक मामले

Judiciary Dispute News: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकने के अपने हालिया आदेश को वापस ले लिया है। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि उनका इरादा इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करना था। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 4 अगस्त 2025 के उस आदेश के बाद आया, जिसमें जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाने और उन्हें वरिष्ठ जज के साथ डिवीजन बेंच में बैठाने का निर्देश दिया था।

मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब जस्टिस प्रशांत कुमार ने एक व्यावसायिक लेन-देन से जुड़े दीवानी विवाद में आपराधिक कार्यवाही को उचित ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को “त्रुटिपूर्ण” और “न्याय का मखौल” करार देते हुए कड़ी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि दीवानी मामलों में आपराधिक कार्यवाही शुरू करना विधिसंगत नहीं है और जस्टिस कुमार की न्यायिक समझ पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने तब इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि जस्टिस कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति तक आपराधिक मामलों से दूर रखा जाए और उन्हें केवल गैर-आपराधिक मामलों में एकल पीठ या वरिष्ठ जज के साथ डिवीजन बेंच में बैठाया जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों का विरोध
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के कम से कम 13 मौजूदा जजों ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भाषा और लहजे पर सवाल उठाए और फुल कोर्ट बैठक बुलाने की मांग की। उनका तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट के प्रशासनिक कार्यों, जैसे जजों के रोस्टर निर्धारण, में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का यू-टर्न
8 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की दोबारा सुनवाई की और अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया। जस्टिस पारदीवाला की पीठ ने कहा, “हमारी मंशा इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक अधिकारों में दखल देना नहीं था। हमारा उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना था कि न्यायिक प्रक्रिया में त्रुटियों से बचा जाए।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं थी, बल्कि उनका आदेश कानूनी रूप से गलत था। इस फैसले के बाद जस्टिस कुमार अब फिर से आपराधिक मामलों की सुनवाई कर सकेंगे।

मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए भेजा गया
सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले को, जिसमें जस्टिस कुमार ने आपराधिक कार्यवाही को उचित ठहराया था, दोबारा सुनवाई के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की दूसरी एकल पीठ को भेज दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों में यह प्रथम दृष्टया जांच करना जरूरी है कि विवाद दीवानी है या आपराधिक, ताकि निजी प्रतिशोध के लिए आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।

न्यायिक जवाबदेही पर चर्चा
इस पूरे प्रकरण ने न्यायिक जवाबदेही और हाईकोर्ट के प्रशासनिक स्वायत्तता के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना कुछ लोगों ने हाईकोर्ट की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के रूप में की थी, जबकि अन्य ने इसे न्यायिक गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम माना। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजों के पत्र ने भी इस बहस को और हवा दी।

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