जेएनयू कैंपस में सुबह 9 बजे से शुरू हुई वोटिंग दो चरणों में हो रही है—सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 2:30 से शाम 5:30 बजे तक। लगभग 9,000 पात्र मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं। वोटों की गिनती आज रात 9 बजे से शुरू होगी और नतीजे 6 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। यह चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक ध्रुवीकरण का प्रतिबिंब माने जा रहे हैं, जहां लेफ्ट यूनिटी (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन-एआईएसए, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया-एसएफआई और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन-डीएसएफ का गठबंधन) का मुकाबला मुख्य रूप से आरएसएस समर्थित एबीवीपी से है।
एबीवीपी पर गोपिका का हमला
एक मीडिया चैनल को दिए एक बयान में गोपिका बाबू ने कहा, “एबीवीपी की आरक्षण-विरोधी, महिलाविरोधी, पितृसत्तात्मक और इस्लामोफोबिक रुख छात्र समुदाय के सामने बेनकाब हो चुका है। हम चारों सीटें जीतेंगे।” उनका यह बयान चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में आया है, जब कैंपस में वैचारिक बहस चरम पर पहुंच चुकी है। लेफ्ट यूनिटी ने एबीवीपी को “अखिल भारतीय वायलेंस परिषद” तक करार दिया है, जबकि एबीवीपी ने लेफ्ट पर कैंपस में हिंसा और भ्रष्टाचार फैलाने का आरोप लगाया है।
गोपिका बाबू, जो स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की पीएचडी छात्रा हैं, ने प्रचार के दौरान छात्रों के बीच समावेशिता, पहुंच और कल्याण पर जोर दिया। लेफ्ट यूनिटी का पैनल इस बार संयुक्त रूप से मैदान में है—अध्यक्ष पद पर अदिति मिश्रा, महासचिव पर सुनील यादव और संयुक्त सचिव पर दानिश अली। अदिति मिश्रा ने भी प्रचार के दौरान कहा कि “ये चुनाव असहमति और समानता के संकट के समय हो रहे हैं, हमें समावेशी जेएनयू की रक्षा करनी होगी।”
मुख्य दावेदार और मुकाबला
इस चुनाव में चार केंद्रीय पदों के लिए कुल 20 से अधिक उम्मीदवार मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला लेफ्ट यूनिटी और एबीवीपी के बीच है:
• अध्यक्ष पद: लेफ्ट यूनिटी से अदिति मिश्रा बनाम एबीवीपी से विकास पटेल। अन्य दावेदारों में एनएसयूआई के विकास, पीएसए के शिंदे विजयलक्ष्मी व्यंक्त राव, स्वतंत्र उम्मीदवार अंगद सिंह आदि शामिल हैं।
• उपाध्यक्ष पद: गोपिका बाबू (लेफ्ट) बनाम तन्या कुमारी (एबीवीपी) और शेख शाहनवाज आलम (एनएसयूआई)।
• महासचिव पद: सुनील यादव (लेफ्ट) बनाम राजेश्वर कांत दुबे (एबीवीपी)।
• संयुक्त सचिव पद: दानिश अली (लेफ्ट) बनाम अनुज (एबीवीपी)।
एबीवीपी ने अपने प्रचार में “प्रदर्शन और राष्ट्रवाद” का नारा दिया है। उनके उम्मीदवार विकास पटेल ने लेफ्ट पर “पांच दशकों से जेएनयू को बर्बाद करने” का आरोप लगाया और कहा कि छात्र अब “जवाबदेही और समाधान-उन्मुख राजनीति” चाहते हैं। एबीवीपी की तन्या कुमारी ने लेफ्ट पर विदेशी मुद्दों (जैसे फिलिस्तीन) पर बोलने लेकिन कैंपस की समस्याओं (जैसे हॉस्टल की खराब स्थिति) पर चुप रहने का ताना कसा।
पृष्ठभूमि और विवाद
जेएनयू चुनाव हमेशा से राष्ट्रीय राजनीति का आईना रहा है। पिछले साल (2024-25) लेफ्ट ने तीन केंद्रीय पद जीते थे, जबकि एबीवीपी ने दस साल के सूखे के बाद संयुक्त सचिव पद हासिल किया। इस बार प्रचार के दौरान हिंसा के आरोप भी लगे—लेफ्ट ने एबीवीपी पर हमले का इल्जाम लगाया, तो एबीवीपी ने लेफ्ट-प्रशासन गठजोड़ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जैसे 56 करोड़ रुपये के कैंपस नवीनीकरण घोटाले का।
राष्ट्रपति बहस (2 नवंबर) में उम्मीदवारों के बीच गाजा से लेकर हॉस्टल शुल्क तक मुद्दों पर तीखी बहस हुई। एनएसयूआई, प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन (पीएसए), दिशा स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (डीएसओ) और स्वतंत्र उम्मीदवार भी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य लड़ाई लेफ्ट बनाम एबीवीपी की है।
वोटिंग के बीच कैंपस में उत्साह है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि महिला प्रतिनिधित्व बढ़ने और युवा मतदाताओं के बीच बदलते रुझानों से नतीजे रोचक होंगे। लेफ्ट यूनिटी की गोपिका बाबू का बयान चुनावी माहौल को और गर्म कर रहा है, जबकि एबीवीपी “शांतिपूर्ण और छात्र-अनुकूल जेएनयू” का वादा कर रही है। नतीजे आने तक कैंपस की नजरें टिकी रहेंगी।

