Jayanti : Ghaziabad news : भारतीय किसान यूनियन(भाकियू) आज किसान मसीहा स्व महेंद्र सिंह टिकैत जयंती मोदीनगर तहसील में मनाएगी। किसानों के मसीहा महात्मा महेंद्र सिंह टिकैत का 88 वा जन्मदिवस सिसौली से लेकर देश भर में भाकियू किसान जागृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
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भाकियू के राष्ट्रीय सचिव ओमपाल सिंह एवं गाजियाबाद जिला अध्यक्ष चौधरी बिजेंद्र सिंह ने बताया कि किसानों के मसीहा महात्मा टिकैत का जन्म 6 अक्टूबर 1935 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव में जाट परिवार में हुआ था। 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के खिलाफ मुजफ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरू किया था। जिसमे मार्च 1987 में प्रशासन और राजनीतिक लापरवाही से बड़ा संघर्ष हुआ। और दो किसानो और पीएसी के जवान की मौत हो गयी थी। इसके बाद से ही किसान मसीहा महात्मा महेंद्र सिंह टिकैत राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओ में आ गये। बाबा टिकेत की अगुवाई में आन्दोलन इस कदर मजबूत हुआ कि प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को खुद सिसौली में आकर पंचायत को संबोधित करना पड़ा। और तत्काल किसानों को राहत दी गई । उन्होंने कई बार किसानों की समस्याओं को लेकर राजधानी दिल्ली में भी धरने प्रदर्शन किये। उनके आन्दोलन राजनीति से दूर होते थे। उन्होंने 17 अक्?टूबर 1986 को किसानों के हितों की रक्षा के लिए एक गैर राजनीतिक संगठन भारतीय किसान यूनियन की स्थापना की।
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.. और जब टिकैत बोले, इंडिया वालों खबरदार! अब भारत दिल्ली में आ गया है
किसानो के लिए लड़ाई लड़ते हुए अपने पूरे जीवन में टिकैत करीब 20 बार से ज्यादा जेल भी गये। उन्होंने विभिन्न सामाजिक बुराइयों, दहेज , म्रत्युभोज , अशिक्षा और भ्रूण हत्या जैसे मुद्दों पर भी बखूबी आवाज उठाई। कभी भी बाबा टिकैत की पंचायत और संगठन में जाति ,धर्म को लेकर भेदभाव नहीं दिखा। जाट समाज के साथ ही अन्य किसान बिरादरी भी उनके साथ समर्थन में होती थी। खाद पानी बिजली की समस्याओं को लेकर जब किसान सरकारी दफ्तरों में जाते तो उनकी समस्याओं को सरकारी अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते थे। टिकैत ने किसानों की समस्याओं को जोरदार तरीके से रखना शुरू किया।
1988 में दिल्ली में वोट क्लब में दिए जा रहे एक बड़े धरने को संबोधित करते हुए टिकैत ने कहा था। इंडिया वालों खबरदार, अब भारत दिल्ली में आ गया है। उनका मात्र हल्का सा इशारा चुनाव की दिशा और दशा दोनों बदल देता था। उनके लिए किसानो की समस्याए और लड़ाई राजनीति से ऊपर रही। बाबा टिकैत किसानो की न सुनने वाले नेताओं और अफसरों के खिलाफ सीधे पहनी की ठुड्डी लगाने की बात करते थे।
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अंतिम समय में कोर्ट की टिप्पणी पर बोले थे टिकैत
अपने अंतिम समय में जब उनका स्वास्थ्य बेहद खराब था। तो खाप के खिलाफ की गयी सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी पर उन्होंने कहा था, इल्जाम भी उनके, हाकिम भी वह और ठंडे बंद कमरे में सुनाया गया फैंसला भी उनका.लेकिन एक बार परमात्मा मुझे बिस्तर से उठा दे तो मैं इन्हें सबक सिखा दूंगा कि किसान के स्वाभिमान से खिलबाड़ का क्या मतलब होता है। उनका कहना था कि खाप पंचायते किसानो के हक की लड़ाई लडती है उनकी मांग उठाती है , राजनितिक कारणों से उनकी आवाज को दबाया जा रहा है।
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महात्मा टिकैत के अंतिम शब्द
वह अंतिम समय तक किसानो के हितो के लिए संघर्ष करते रहे। बिमारी की अवस्था में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें सरकारी खर्च पर दिल्ली में इलाज कराने को कहा तो वो ठहाके लगाकर हस पड़े। और प्रधानमंत्री से कहा कि उनकी हालत ठीक नहीं है और पता नहीं कब क्या हो जाए ,लेकिन उनके जीते जी अगर केंद्र सरकार किसानों की भलाई के लिए कुछ ठोस कर दे तो आखिरी समय में वह राहत महसूस कर सकेंगे और उन्हें दिल से धन्यवाद देंगे।
किसानों की चिंता करते हुए पंचतत्व में विलीन हुए महात्मा टिकैत
15 मई 2011 को 76 वर्ष की उम्र में कैंसर के कारण महेंद्र सिंह टिकैत का देहांत हो गया और किसानो की लड़ाई लड़ने वाला ये वीर योद्दा हमेशा के लिए शांत हो गया। लेकिन अफसोस कि अपने जीवन भर किसानो के हक की लड़ाई लड़ने वाले टिकेत के जाने के बाद भी सरकारे किसानो के लिए ठोस कदम नहीं उठा पायी।
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