पनाही के वकील मुस्तफा नीली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस फैसले की जानकारी साझा की। उन्होंने कहा कि वे इस सजा के खिलाफ उच्च अदालत में अपील दायर करेंगे। नीली ने आरोपों का विस्तार से खुलासा नहीं किया, लेकिन बताया कि यह ‘राज्य के खिलाफ प्रोपेगैंडा’ से जुड़ा है। 65 वर्षीय पनाही ने अभी तक इस सजा पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है, हालांकि हाल ही में एक साक्षात्कार में उन्होंने ईरान लौटने की अपनी योजना जाहिर की थी।
जाफर पनाही ईरानी सिनेमा के सबसे प्रमुख नामों में से एक हैं, जिन्होंने पिछले दो दशकों में सरकार की आलोचना करने वाली फिल्मों के कारण कई बार गिरफ्तारी, नजरबंदी और यात्रा प्रतिबंध का सामना किया है। उनकी पहली फिल्म ‘द वाइट बलून’ ने 1995 में कान फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता था। 2010 में, 2009 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद हुए बड़े विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करने और आधुनिक ईरान की स्थिति पर आलोचनात्मक फिल्में बनाने के कारण उन्हें छह साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, जमानत पर केवल दो महीने जेल में रहने के बाद वे रिहा हो गए। उसी साल उन्हें फिल्म निर्माण और देश छोड़ने पर 20 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया।
बावजूद इन प्रतिबंधों के, पनाही ने अपनी रचनात्मकता नहीं छोड़ी। 2011 में उन्होंने अपनी डॉक्यूमेंट्री ‘दिस इज़ नॉट अ फिल्म’ को एक केक में छिपाकर फ्लैश ड्राइव के जरिए कान फेस्टिवल भेजी। 2015 में रिलीज हुई ‘टैक्सी’ फिल्म को उन्होंने एक टैक्सी के अंदर ही शूट किया और खुद टैक्सी ड्राइवर की भूमिका निभाई। 2022 में, दो साथी फिल्म निर्माताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया, और सात महीने बाद भूख हड़ताल के बाद रिहा किया गया।
उनकी हालिया फिल्म ‘इट वॉज जस्ट ऐन एक्सिडेंट’ को मई 2025 में कान फिल्म फेस्टिवल में पाल्म डी’ओर का सर्वोच्च सम्मान मिला। यह थ्रिलर फिल्म पांच पूर्व कैदियों की कहानी पर आधारित है, जो अपने कथित जेलर से बदला लेने पर विचार करते हैं। यह फिल्म पनाही की जेल अनुभवों और अन्य कैदियों की कहानियों से प्रेरित है। फ्रांस ने इसे ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नामित किया है, और विदेश मंत्री जीन-नोएल बर्रो ने इसे ‘ईरानी शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक’ बताया। यूरोपीय फिल्म फेस्टिवल्स में भी पनाही को कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
यह सजा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बनी हुई है। द गार्डियन, बीबीसी, हॉलीवुड रिपोर्टर और वेरायटी जैसी मीडिया रिपोर्ट्स में इसे ईरानी सरकार की कलाकारों पर बढ़ती सेंसरशिप के रूप में देखा जा रहा है। पनाही की फिल्में अक्सर सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दों को उजागर करती रही हैं। फिलहाल, यह स्पष्ट नहीं है कि पनाही ईरान लौटेंगे या नहीं, लेकिन उनकी अपील पर अदालत का फैसला भविष्य की दिशा तय करेगा।
ईरानी सिनेमा के इस दिग्गज निर्देशक की यह सजा न केवल उनकी व्यक्तिगत लड़ाई को उजागर कर रही है, बल्कि व्यापक स्तर पर कलाकारों की अभिव्यक्ति की आजादी पर सवाल खड़े करती है। दुनिया भर के फिल्म समुदाय इस पर नजर रखे हुए हैं।

