अंतरराष्ट्रीय व्यापार स्वेच्छा से होना चाहिए, न की किसी के दबाव में, RSS प्रमुख मोहन भागवत

New Delhi/RSS News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को स्वेच्छा और सहमति के आधार पर होना चाहिए, न कि किसी दबाव या जबरदस्ती के तहत। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने की जोरदार वकालत की। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है, खासकर अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतिरिक्त 25% शुल्क के बाद, जिससे कुल शुल्क 50% हो गया है।

मोहन भागवत ने दिल्ली में आयोजित व्याख्यानमाला श्रृंखला में बोलते हुए कहा, “अंतरराष्ट्रीय व्यापार चलता रहेगा, लेकिन यह दबाव से मुक्त और स्वैच्छिक होना चाहिए। इसलिए हमें स्वदेशी का उपयोग बढ़ाना होगा। देश की व्यापार नीति सहमति पर आधारित होनी चाहिए, न कि जबरदस्ती पर।” उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनाने पर बल देते हुए कहा कि देश को अपनी शर्तों पर व्यापार करना चाहिए, न कि बाहरी दबाव में।

उन्होंने स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए कहा, “जो कुछ हम अपने देश में बना सकते हैं, उसे बाहर से नहीं लाना चाहिए। हमें गुणवत्तापूर्ण उत्पादन पर ध्यान देना चाहिए और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।” भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि स्वदेशी का मतलब केवल विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार भारत की शर्तों पर हो।

यह बयान भारत-अमेरिका व्यापार विवाद के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में भारत पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क ने कई क्षेत्रों, विशेष रूप से कपड़ा, रत्न और आभूषण, और चमड़ा उद्योगों को प्रभावित किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह शुल्क लागू रहता है, तो भारत के निर्यात और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

RSS से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। मंच ने सुझाव दिया है कि भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कुछ “शोषणकारी” समझौतों, जैसे TRIPS और TRIMS, से बाहर निकलने की रणनीति पर विचार करना चाहिए और द्विपक्षीय समझौतों पर ध्यान देना चाहिए।

मोहन भागवत ने अपने भाषण में हिंदुत्व की परिभाषा पर भी प्रकाश डाला और कहा कि यह एक सांस्कृतिक और सभ्यतागत अवधारणा है, जो सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है। उन्होंने भारत को विश्वगुरु बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि देश को अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए आर्थिक और सामाजिक प्रगति करनी चाहिए।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी व्यापार रणनीति को नए सिरे से तैयार करने और वैश्विक मंच पर अपनी शर्तों पर खड़ा होने की आवश्यकता है।

यहां से शेयर करें