भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की जीडीपी में भले ही कृषि का योगदान कम हो लेकिन रोजगार देने में प्रथम स्थान है। संवहनीय व्यवसायों और विकास माॅडल में तीन कारक अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। ‘प्लेनेट’ मतलब हमारी पृथ्वी, ‘पीपुल’ मतलब लोग और ‘प्रॉफिट’ यानी कारोबारी मुनाफा। संवहनीयता के लिये कृषि और ग्रामीण पारितंत्र सेवाएँ, विशेष रूप से कृषि-पर्यटन अधिक मूल्यह्रास या मूल्य क्षरण के बिना ‘ग्रीनफील्ड’ (जहां पहले काम न किया हो ) बनी हुई हैं। कृषि-पर्यटन, जो पहले एक छोटा क्षेत्र रहा था, अब तेजी से विस्तार कर रहा है और इसे पर्यटन मंत्रालय की ओर सेवृहत प्रोत्साहन मिल रहा है। कृषि-पर्यटन के फलने-फूलने के लिये एक सक्षम वातावरण की आवश्यकता है और यह पर्यटन उद्योग में कम से कम 15-20 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है।
क्या होता है कृषि-पर्यटन ?
कृषि-पर्यटन को वाणिज्यिक उद्यम के एक प्रकार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कृषि उत्पादन और या प्रसंस्करण को पर्यटन के साथ जोड़ता है, जहाँ आने वालों को मनोरंजन देने और या शिक्षित करने के उद्देश्य से एक फार्म, रैंच या अन्य कृषि व्यवसाय स्थलों की ओर आकर्षित करता है और इस प्रकार आय का सृजन किया जाता है।कृषि-पर्यटन को पर्यटन और कृषि का चैराहा कहा जा सकता है। यह एक गैर-शहरी आतिथ्य उत्पाद है जो प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के साथ कृषि जीवन शैली, संस्कृति और विरासत की पूर्ति करता है। कृषि-पर्यटन ने पर्यटन उद्योग में पर्याप्त आकर्षण प्राप्त किया है। कृषि-पर्यटन उद्योग का विकास दर परिदृश्य कृषि-पर्यटन पर्यटन उद्योग का एक अलग और उभरता बाजार खंड है। वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर कृषि-पर्यटन बाजार का मूल्य46 बिलियन डॉलर था और वर्ष 2020-27 के बीच 13.4 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ वर्ष 2027 तक इसके 62.98 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाने की उम्मीद है। भारत में कृषि-पर्यटन की नींव सर्वप्रथम महाराष्ट्र के बारामती में स्थित कृषि पर्यटन विकास निगम के गठन के साथ पड़ी थी।
एटीडीसी की स्थापना वर्ष 2004 में कृषक समुदाय के एक उद्यमी पांडुरंग तवारे ने की थी। वर्तमान में कृषि-पर्यटन से भारत का राजस्व 20 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। कृषि-पर्यटन का महत्त्व क्यों बढ़ रहा है? पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन, जलवायु परिवर्तन की तेज गति और पर्यटन प्रेरित प्रदूषण स्तर एवं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के परिणाम स्वरूप पर्यटन आकर्षण के रूप में प्राकृतिक एवं ग्रामीण स्थलों की मांग बढ़ रही है और यह कृषि-पर्यटन जैसे पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन अनुभवों को मुख्यधारा व्यवसाय बना सकता है। वही ग्रामीण ‘पतन’ को संबोधित करने की क्षमतारू बढ़ती हुई इनपुट लागत, अस्थिर रिटर्न, जलवायु प्रतिकूलता, भूमि विखंडन आदि के कारण भारतीय कृषि तनाव में है। यद्यपि यह अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है, किसान वैकल्पिक आजीविका और आय विविधीकरण की तलाश में अन्य उद्योगों की ओर पलायन कर रहे हैं। कृषि-पर्यटन ग्रामीण पतन के ‘होलोइंग आउट इफेक्ट’ को दूर कर सकता है और कृषि एवं पारिस्थितिकी तंत्र आधारित सेवाओं में किसानों के भरोसे को पुनर्बहाल कर सकता है। किसानों को कई गुना लाभ, कृषि-पर्यटन किसानों के आय समर्थन में मदद करता है। यह कृषि के प्रति किसानों के दृष्टिकोण या प्राथमिकताओं को बदलने के लिये एक प्रोत्साहक और एक अवरोधक दोनों के ही रूप में कार्य करता है। यह किसानों को उस भूमि का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करता है जिसे अन्यथा परती या बंजर छोड़ दिया जाएगा। इसके विपरीत, यह कृषि -पर्यटन में लगे किसान को उपलब्ध कृषि भूमि के एक हिस्से पर खेती करने से रोकता भी है और खेती के बजाय इसका उपयोग पर्यटन गतिविधियों के लिये करने हेतु प्रोत्साहित करता है। समुदायों के लिये लाभरू सामुदायिक दृष्टिकोण से कृषि पर्यटन निम्नलिखित विषयों में एक साधन की तरह कार्य कर सकता है।पर्यटकों के माध्यम से स्थानीय व्यवसायों और सेवाओं के लिये अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करना या निवासियों और आने वाले लोगों के लिये सामुदायिक सुविधाओं का उन्नयन,पुनरुद्धार करना, पर्यटकों और निवासियों के लिये ग्रामीण भू-दृश्य और प्राकृतिक वातावरण का सुरक्षा कवच मजबूत, स्थानीय परंपराओं, कला और शिल्प को संरक्षित एवं पुनर्जीवित करनेमें मदद करना, अंतर-क्षेत्रीय, अंतर-सांस्कृतिक संचार और समझ को बढ़ावा देना। पर्यटन संचालकों के लिये लाभरू पर्यटन उद्योग के दृष्टिकोण से कृषि पर्यटन निम्नलिखित रूप में में योगदान कर सकता है।आगंतुकों के लिये उपलब्ध पर्यटन उत्पादों और सेवाओं के मिश्रण में विविधता लाना, आकर्षक ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पर्यटन प्रवाह की वृद्धि करना, परंपरागत रूप से ऑफ-पीक व्यावसायिक अवधि के दौरान पर्यटन मौसम का विस्तार करना, प्रमुख पर्यटन बाजारों में ग्रामीण क्षेत्रों की विशिष्ट स्थिति का निर्माण, स्थानीय व्यवसायों के लिये अधिकाधिक बाह्य मुद्राओं का प्रवेश।
चुनौतियाँ
कृषि सेसंलग्न किसान कृषि गतिविधियों की अनदेखी कर सकते हैं यदि कृषि-पर्यटन की ओर उनका ध्यान बढ़ जाए और यह उनके लिये आय का अधिक बहेतर स्रोत बन जाए।पर्यटक उन कृषि-पर्यटन केंद्रों का दौरा करना पसंद करते हैं जो आकार में बड़े हों और जहाँ कई मनोरंजक एवं अन्य गतिविधियों का अवसर हो। यह कृषि-पर्यटन के मूल उद्देश्य के विपरीत है जो छोटे एवं सीमांत किसानों के समर्थन का लक्ष्य रखता है। वे विभिन्न सुविधाओं और बड़े आकार वाले कृषि-पर्यटन केंद्र की पेशकश कर सकनेमें अक्षम होते हैं। भाषाई चुनौतियों को पर्यटन क्षमता की वृद्धि में एक बाधा पाया गया है। पर्यटकों के साथ बातचीत कर सकने के लिये लोगों में हिंदी, अंग्रेजी या यहाँ तक कि स्थानीय बोली में भी उचित प्रवाह की कमी पाई जाती है। अपर्याप्त वित्तीय सहायता क्षेत्र की पर्यटन क्षमता को बाधित कर सकती है, जिससे लोगों को स्थानीय संस्कृति, परंपराओं, विरासत, कला-रूपों आदि को संरक्षित कर सकने में मदद मिलती। ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन की पूरी अवधारणा ही बेहद देशी है। यद्यपि स्थानीय युवाओं द्वारा आरंभिक प्रयास किये गए हैं, फिर भी व्यावसायिकता की कमी है।
कृषि-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये क्या क्या हो सकता है ?
नीतिगत ध्यान, कृषि-पर्यटन विकासशील देशों में अधिक नीतिगत ध्यान की आवश्यकता रखता है जहाँ अधिकांश आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। अनिश्चित नकदी प्रवाह, आवर्ती ऋण जाल और अप्रत्याशित जलवायु जैसी सतत प्रतिकूलताओं के साथ कृषि-पर्यटन को किसानों के लिये आय-सृजन गतिविधि के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है और इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक प्रत्यास्थता को सुदृढ़ किया जा सकता है। अनुसंधान किसी भी विषय में विकास के प्रमुख कारकों में से एक होता है क्योंकि यह छात्रों और इसके अभ्यास सेसंलग्न लोगों को उनकी रुचि के क्षेत्रों में शामिल होने और स्थानीय समुदायों के लाभ के लियेसभी संभावित समाधानों की खोज क्रने में मदद करता है।
वही कृषि-पर्यटन के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये किसानों को चाहिये कि अखबारों, टीवी आदि के माध्यम से अपने पर्यटन केन्द्र का व्यापक प्रचार-प्रसार करें तथा विद्यालयों, महाविद्यालयों, गैर-सरकारी संगठनों, क्लबों, संघों, संगठनों आदि से संपर्क विकसित करें।