धोखे का जाल: नौकरी का वादा, युद्ध का सच
ये कहानी भारत के उन गरीब परिवारों की है, जहां बेरोजगारी ने युवाओं को विदेश के सपनों की ओर धकेल दिया। पंजाब, हरियाणा, जम्मू, तेलंगाना, गुजरात और कश्मीर से ज्यादातर युवा रूस गए थे। एजेंटों ने यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया के जरिए आकर्षक जॉब्स का लॉरी सुनाया—रूसी सेना में ‘हेल्पर’, ‘कुक’, ‘सिक्योरिटी गार्ड’ या ‘वेयरहाउस वर्कर’। मासिक 2 लाख रुपये तक कमाई और यहां तक कि रूस में स्थायी निवास का वादा किया गया। लेकिन रूस पहुंचते ही सारी हकीकत खुल गई। युवाओं को रूसी भाषा में अनजाने कॉन्ट्रैक्ट साइन कराए गए, ट्रेनिंग के नाम पर हथियार चलाना सिखाया गया और 10-15 दिनों में ही यूक्रेन बॉर्डर पर फेंक दिया गया।
परिवारों ने बताया कि युवाओं ने वीडियो मैसेज भेजे, जिसमें वे रूसी यूनिफॉर्म में रोते हुए मदद मांगते नजर आए। लुधियाना के समरजीत सिंह ने पंजाबी में कहा, “हम 9 लड़के हैं। स्टूडेंट वीजा पर आए थे। खाना नहीं मिल रहा, रोज फ्रंटलाइन पर भेजा जा रहा है।” जम्मू के अजय कुमार गोदारा के परिवार ने दावा किया कि नवंबर 2024 में पढ़ाई के बहाने रूस भेजे गए अजय को जबरन सेना में डाल दिया गया। हरियाणा के कुम्हरिया गांव के अंकित जांगड़ा और विजय पूनिया ने भी वीडियो में बताया कि उन्हें 10 दिनों की ट्रेनिंग के बाद जंगल में ‘कैप्चर’ करने भेजा गया। हैदराबाद के मोहम्मद अहमद का केस तो और दर्दनाक है—पैर में गोली लगने के बावजूद उन्हें धमकी दी गई, “या तो लड़ो या गोली मार देंगे।”
विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक 126 भारतीयों को रूसी सेना में तैनात किया गया। इनमें से 12 की मौत हो चुकी है, जबकि 16 लापता बताए जा रहे हैं। मई 2025 में जंतर-मंतर पर ही एक और धरना हुआ था, जहां परिवारों ने मासिक प्रदर्शनों की चेतावनी दी थी। सितंबर 2025 में राजस्थान के बीकानेर से अजय गोदारा के परिवार ने खुलासा किया कि उनके साथ 30 से ज्यादा युवा फंसे हैं।
परिवारों का दर्द: ‘बेटा लौटा दो, बस यही चाहते हैं’
जंतर-मंतर पर धरने में हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के परिवार प्रमुख थे। एक महिला ने बताया, “मेरा भतीजा तीन-चार महीने से गायब है। एजेंट ने इटली की नौकरी का झांसा दिया, लेकिन यूक्रेन बॉर्डर पर फेंक दिया।” मोहम्मद असफान की मौत (मार्च 2024) के बाद उनके भाई इमरान ने कहा था, “बॉर्डर पर फोन आया कि पासपोर्ट छीन लिया गया, लड़ने को मजबूर किया जा रहा है। मदद मांगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।” गुजरात के हेमिल अश्विनभाई मंगुकिया की मौत (फरवरी 2024) ने पूरे परिवार को तोड़ दिया। उनके पिता ने कहा, “मॉस्को में हेल्पर की नौकरी का वादा था, लेकिन डोनेट्स्क में ड्रोन अटैक में शहीद हो गए।”
कई परिवारों ने रूस जाने का फैसला किया है। वे विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साइन वाले लेटर के साथ मॉस्को एंबेसी जाएंगे। एक परिवार ने कहा, “हम बीमार हो चुके हैं, डिप्रेशन में हैं। बस बेटा लौट आए।”
सरकार की कार्रवाई: चेतावनी और डिप्लोमेसी
भारतीय सरकार ने कई बार चेतावनी जारी की है। MEA ने कहा, “युद्ध क्षेत्र में न जाएं, मुश्किल हालात में फंस सकते हैं।” रूस के साथ लगातार बातचीत चल रही है। अगस्त 2024 में रूसी दूतावास ने घोषणा की कि भारतीयों को सेना में भर्ती नहीं किया जाएगा और डिस्चार्ज में मदद की जाएगी। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने एजेंटों के खिलाफ केस दर्ज किए हैं—ट्रैफिकिंग और धोखाधड़ी के आरोप में। दिल्ली हाईकोर्ट ने नवंबर 2025 में एक भारतीय स्टूडेंट साहिल के केस में केंद्र को फटकार लगाई, जो ड्रग्स के झूठे केस से बचने के लिए रूसी सेना में भर्ती कराया गया था। कोर्ट ने यूक्रेनी सरकार से संपर्क करने का आदेश दिया।
फिर भी परिवार निराश हैं। वे कहते हैं, “एजेंटों पर सख्ती हो, वरना और बेटे खो जाएंगे।” रूस ने भारत को आश्वासन दिया है, लेकिन फ्रंटलाइन पर फंसे युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
निष्कर्ष: एक विदेशी जंग में भारतीय खून
यह मुद्दा भारत की बेरोजगारी और विदेशी एजेंटों की साजिश को उजागर करता है। गरीब परिवारों के सपने चूर-चूर हो रहे हैं, जबकि कोई उनका साथ नहीं दे पा रहा। सरकार की डिप्लोमेसी से कुछ युवा लौटे हैं—जैसे उरगेन तामांग और हर्ष कुमार—लेकिन ज्यादातर अभी भी फंसे हैं। परिवारों की पुकार है: “मोदी जी, अब बचा लो!” क्या यह धरना सरकार को झकझोर पाएगा? समय ही बताएगा।

