Indian cinema in 2025: पैन-इंडिया फॉर्मूला को नए सिरे से लिखा, क्षेत्रीय फ़िल्मों का दबदबा

Indian cinema in 2025: साल 2025 भारतीय सिनेमा के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। ‘पैन-इंडिया’ अब सिर्फ़ एक शब्द नहीं रहा, बल्कि हक़ीक़त बन गया। क्षेत्रीय भाषाओं की फ़िल्में भाषा और सीमाओं को पार कर पूरी दुनिया में दर्शकों तक पहुँचीं। ‘कांतारा: चैप्टर 1’, ‘लोकाह’ और ‘कूली’ जैसी फ़िल्मों ने साबित किया कि अच्छी कहानी और मज़बूत प्रस्तुति के सामने भाषा कोई बाधा नहीं। इसी साल बड़े पैमाने की तकनीकी और AI-सहायता वाली फ़िल्मों के साथ-साथ छोटी, जड़ों से जुड़ी कहानियाँ भी ख़ूब चलीं।
यहाँ 2025 की प्रमुख भाषाई सिनेमाओं का संक्षिप्त जायज़ा:

तमिल सिनेमा
तमिल इंडस्ट्री के लिए साल मिश्रित रहा। ‘ड्रैगन’, ‘कूली’ और ‘बाइसन’ जैसी बड़ी फ़िल्मों ने धूम मचाई और थिएटर में वीकेंड कल्चर की वापसी कराई। निर्माता एसआर प्रभु के अनुसार, थिएटर और स्ट्रीमिंग फ़िल्मों के बीच का फ़र्क़ अब और साफ़ हो गया है। इस साल लगभग 290-300 फ़िल्में रिलीज़ हुईं, जिनमें से 28 ने अच्छा कारोबार किया।

हालाँकि बड़े सितारों की फ़िल्में उम्मीदों पर पूरी तरह खरी नहीं उतरीं—कमल हासन की ‘थग लाइफ़’, अजित कुमार की ‘विदामुयर्ची’ और ‘गुड बैड अग्ली’, और राजिनीकांत की ‘कूली’ (जो ₹500 करोड़ से ज़्यादा कमाने के बावजूद प्रशंसकों की पूरी उम्मीदें पूरी नहीं कर पाई)। विजय की कोई फ़िल्म नहीं आई, जो 1992 के बाद पहली बार हुआ। मिडिल-क्लास संघर्ष को दिखाने वाली फ़िल्में जैसे ‘कुडुंबस्थान’, ‘3BHK’ और ‘परंथु पो’ सराही गईं। सामाजिक मुद्दों वाली जॉनर फ़िल्में भी आईं, लेकिन सिर्फ़ कुछ ही हिट रहीं।

मलयालम सिनेमा
मलयालम ने बिज़नेस के लिहाज़ से शानदार प्रदर्शन किया। टॉप ग्रॉसर रहीं ‘लोकाह चैप्टर 1: चंद्रा’ (₹300 करोड़+), ‘L2: एंपुरान’ (₹268 करोड़) और ‘थुडारुम’ (₹237 करोड़)। ‘लोकाह’ ने सुपरहीरो फैंटसी का नया मानक स्थापित किया। छोटी फ़िल्में जैसे ‘अलप्पुझा जिमख़ाना’, ‘पोनमन’, ‘मरनामास’ और ‘एकॉ’ ने भी ज़बरदस्त कमाई और तारीफ़ बटोरी। बेसिल जोसेफ़ और नए डायरेक्टर्स ने विविधता भरी कहानियाँ पेश कीं। साल अभी ख़त्म नहीं हुआ—मम्मूट्टी की ‘कलमकवल’ और निविन पॉली की ‘सर्वम माया’ आने वाली हैं।

तेलुगु सिनेमा
तेलुगु में पैन-इंडिया एक्शन ड्रामों की थकान साफ़ दिखी। स्टार फ़िल्में जल्दी पिट गईं। हिट रहीं ‘दे कॉल हिम OG’, ‘हिट: द थर्ड केस’, ‘डाकू महाराज’, ‘थांडेल’ और सोशल ड्रामा ‘कुबेरा’। कॉमेडी फ़िल्में जैसे ‘”संक्रांति की वस्थूनम”’, ‘MAD स्क्वेयर’ और ‘द ग्रेट प्री-वेडिंग शो’ ख़ूब चलीं। छोटे बजट की ‘लिटिल हार्ट्स’ (₹2 करोड़ में बनी, ₹35 करोड़+ कमाई) और ‘कोर्ट’ सबसे बड़ी सरप्राइज़ रहीं। महिला-केंद्रित ‘द गर्लफ़्रेंड’ ने भी मिथक तोड़े।

कन्नड़ा सिनेमा
कन्नड़ा ने लगातार बड़ी हिट देने की समस्या से जूझते हुए भी सुधार दिखाया। ‘कांतारा: चैप्टर 1’ ने VFX और एक्शन से थिएटर हिला दिया। सरप्राइज़ पैकेज रहीं ‘सु फ्रॉम सो’ (हॉरर कॉमेडी) और ‘एलुमाले’ (रोमांटिक थ्रिलर)। नए डायरेक्टर्स की फ़िल्में सराही गईं। साल का अंत दर्शन की ‘डेविल’, सुदीप की ‘मार्क’ और ‘45’ जैसी बड़ी फ़िल्मों के क्लैश से होगा।

हिंदी सिनेमा
हिंदी में पुराने ज़माने की रोमांस की वापसी हुई। मोहित सूरी की ‘सैयारा’ ने बॉक्स ऑफ़िस पर तहलका मचाया। री-रिलीज़ ट्रेंड चला, ख़ासकर रोमांटिक ड्रामों का। बड़े एक्शन फ़िल्में जैसे ‘वार 2’ और ‘सिकंदर’ फ्लॉप रहीं। हॉरर जॉनर भी कमज़ोर रहा। जाति के चित्रण में बदलाव आया—‘धड़क 2’ और ‘होमबाउंड’ ने व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों को गहराई से छुआ। इंडी फ़िल्में जैसे ‘जुगनुमा’, ‘ह्यूमन्स इन द लूप’ और ‘आगरा’ ने अपनी अलग पहचान बनाई।

कुल मिलाकर, 2025 ने साबित किया कि दर्शक अब सिर्फ़ सितारों नहीं, बल्कि अच्छी कहानी, विविधता और सच्चाई चाहते हैं। भारतीय सिनेमा अब सचमुच ‘पैन-इंडिया’ और उससे आगे बढ़ चुका है।

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