यह प्रदर्शन “जुलाई ओइक्यो मंचो” नामक समूह द्वारा आयोजित किया जाना था, जो पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को “फासीवादी” बताते हुए उनकी वापसी और अन्य मुद्दों पर विरोध जताने वाला था। समूह ने भारत पर बांग्लादेशी राजनीति में हस्तक्षेप का आरोप लगाया। प्रदर्शन की घोषणा के तुरंत बाद, ढाका में भारतीय वीजा आवेदन केंद्र (IVAC) ने सुरक्षा कारणों से दोपहर 2 बजे से अपनी सेवाएं बंद कर दीं।
विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि बांग्लादेश के अंतरिम सरकार से भारतीय मिशनों और वीजा सुविधाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद है, जो राजनयिक दायित्वों के अनुरूप है। मंत्रालय ने कट्टरपंथी तत्वों द्वारा बनाई जा रही “झूठी कहानी” को पूरी तरह खारिज किया और अफसोस जताया कि अंतरिम सरकार ने हाल की घटनाओं की गहन जांच नहीं की न ही भारत के साथ कोई ठोस सबूत साझा किए।
यह घटना ऐसे समय में हुई जब दोनों देशों के बीच तनाव पहले से ही बढ़ा हुआ है। हाल ही में बांग्लादेश के नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) नेता हसनत अब्दुल्लाह ने सार्वजनिक भाषण में भारत को “शत्रुतापूर्ण देश” बताते हुए उत्तर-पूर्वी भारत को अलग करने और अलगाववादी ताकतों को शरण देने की धमकी दी थी। इसी तरह, छात्र नेता महफूज आलम ने भी भारत विरोधी बयान दिए। इन बयानों की भारत ने कड़ी निंदा की है।
पृष्ठभूमि में 12 दिसंबर को ढाका में कट्टरपंथी छात्र नेता शरीफ ओसमान हादी पर जानलेवा हमला हुआ, जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गए। बांग्लादेश सरकार ने इस हमले के लिए शेख हसीना और अवामी लीग को जिम्मेदार ठहराया और भारत से हमलावरों को रोकने की मांग की, जिसे भारत ने खारिज कर दिया।
भारत ने स्पष्ट किया कि वह बांग्लादेश के लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है, जो 1971 के मुक्ति संग्राम पर आधारित है, और शांतिपूर्ण, निष्पक्ष चुनावों का समर्थन करता है। हालांकि, हाल की घटनाएं दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को और बढ़ावा दे रही हैं।

