…और जब भारत ने सदियों की गुलामी की जंजीर तोड़कर देखा एक नया सवेरा

Independent India Story: 15 अगस्त 1947, यह सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि यह वह दिन है जब भारत ने सदियों की गुलामी की जंजीर तोड़कर एक नया सवेरे देखा था। अब शुरुआत हुई थी आजाद भारत की। यह वह दिन था जब हमारे पूर्वजों के बलिदान, संघर्ष और अटूट संकल्प ने एक राष्ट्र को उसकी पहचान वापस दिलाई।
स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत
भारत में ब्रिटिश राज की जड़ें 18वीं सदी में प्लासी के युद्ध ;1757 के बाद से गहरी होने लगीं। ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के बहाने पूरे देश पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। लेकिन भारतीयों ने कभी इस गुलामी को स्वीकार नहीं किया। लगातार प्रयास होते रहे आजद होने के लिए।
भारत का पहला संगठित विद्रोह 1857 का विद्रोह था, जिसे ष्सिपाही विद्रोहष् या ष्प्रथम स्वतंत्रता संग्रामष् भी कहा जाता है। हालाँकि यह विद्रोह दबा दिया गया, लेकिन इसने भारतीयों के मन में आज़ादी की लौ को और तेज़ कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, तात्या टोपे और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को एक नई दिशा दी। इसके बाद भारत के कई उत्साहित लोग आंदोलन चलाते रहे और एक दिन वो आया जिसका पूरे देश को इंतजार था।

 

प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और उनके योगदान

1. महात्मा गांधी: अहिंसा के पुजारी

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें हम बापू के नाम से जानते हैं, ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। उनका मानना था कि हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा और सत्याग्रह (सत्य के लिए आग्रह) के माध्यम से आज़ादी मिल सकती है। उन्होंने कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया, जैसे:

  • असहयोग आंदोलन (1920-1922): गांधीजी ने अंग्रेजों के साथ सहयोग न करने का आह्वान किया।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930): इस आंदोलन की शुरुआत दांडी मार्च से हुई, जहाँ गांधीजी ने नमक कानून तोड़कर ब्रिटिश राज को चुनौती दी।
  • भारत छोड़ो आंदोलन (1942): दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा दिया और अंग्रेजों से भारत छोड़ने की मांग की।

2. सुभाष चंद्र बोस: ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि आज़ादी के लिए सैन्य संघर्ष भी ज़रूरी है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) या आज़ाद हिंद फ़ौज का गठन किया और जापान की मदद से ब्रिटिश सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका दिया नारा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा”, आज भी हर भारतीय को प्रेरित करता है।

3. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु: क्रांतिकारी बलिदान

ये तीन युवा क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने ब्रिटिश सरकार की क्रूरता के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने हिंसा का रास्ता अपनाया, लेकिन उनका उद्देश्य अंग्रेजों को यह दिखाना था कि भारतीय युवा अपनी आज़ादी के लिए जान देने से भी नहीं डरते। 23 मार्च, 1931 को उन्हें फाँसी दी गई, और वे हमेशा के लिए अमर हो गए।

4. पंडित जवाहरलाल नेहरू: स्वतंत्र भारत के शिल्पकार

पंडित नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के साथ मिलकर काम किया और वे भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। 15 अगस्त, 1947 की रात को, उन्होंने “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” (नियति के साथ एक साक्षात्कार) नामक अपना ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने एक नए भारत के जन्म की घोषणा की।

5. सरदार वल्लभभाई पटेल: भारत के लौह पुरुष

आज़ादी के बाद, सरदार पटेल ने 500 से अधिक रियासतों को एक साथ मिलाकर एक अखंड भारत का निर्माण किया। उनके इस असाधारण योगदान के कारण उन्हें ‘भारत का बिस्मार्क’ या ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है।

आज़ादी और विभाजन का दर्द

ब्रिटिश सरकार ने जब भारत छोड़ने का फैसला किया, तो उन्होंने देश को धर्म के आधार पर दो भागों में विभाजित करने की योजना बनाई: भारत और पाकिस्तान। इस विभाजन ने लाखों लोगों के जीवन में भारी उथल-पुथल मचाई और बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। एक तरफ आज़ादी का जश्न था, तो दूसरी तरफ विभाजन का दर्द।

15 अगस्त, 1947: आज़ादी का सुनहरा दिन

आख़िरकार, 15 अगस्त, 1947 की रात को ब्रिटिश सरकार का शासन समाप्त हुआ। पंडित नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया और आज़ादी की घोषणा की। यह सिर्फ एक राजनीतिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह एक राष्ट्र की आत्मा का पुनर्जन्म था। आज, जब हम 15 अगस्त मनाते हैं, तो हम उन सभी अनगिनत शहीदों को याद करते हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि आज़ादी कोई तोहफा नहीं है, बल्कि यह एक अनमोल विरासत है जिसे हमें संभालकर रखना है।

 

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