India/America News: भारत और अमेरिका के बीच राजनयिक और राजनीतिक रिश्तों में भले ही उतार-चढ़ाव आए हों, लेकिन दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों, भारतीय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) और अमेरिकी सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) के बीच सहयोग ने हर मुश्किल दौर में रिश्तों को मजबूती प्रदान की है। शीतयुद्ध के दौरान भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के बावजूद दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों ने रणनीतिक संवाद और सहयोग को बनाए रखा, जो आज भी आतंकवाद विरोधी और रक्षा सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
शीतयुद्ध में भी मजबूत रहे खुफिया रिश्ते
शीतयुद्ध के दौर में, जब भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई थी, तब भी रॉ और CIA के बीच गहरे रिश्ते बन रहे थे। इतिहासकार पॉल मैकगार के अनुसार, 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भारत और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था। निक्सन ने भारत को आर्थिक सहायता के बदले “घोर निराशा” देने वाला देश करार दिया था और इंदिरा गांधी को अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद, रॉ और CIA के बीच सहयोग कम नहीं हुआ। 1973 में, इंदिरा गांधी के कार्यालय के प्रमुख पृथ्वीनाथ धर और रॉ के तत्कालीन प्रमुख रामेश्वर नाथ काव ने CIA के निदेशक विलियम कोलबी के भारत दौरे की पैरवी की थी, जिसने दोनों एजेंसियों के बीच रिश्तों को और मजबूत किया।
तेलंगाना विद्रोह और प्रारंभिक सहयोग
1949 में, भारत आजादी के बाद तेलंगाना में कम्युनिस्ट विद्रोह से जूझ रहा था। इस संकट से निपटने के लिए भारतीय खुफिया ब्यूरो (आईबी) के निदेशक टी.जी. संजीवी को वाशिंगटन भेजा गया। हालांकि, संजीवी को FBI के निदेशक जे. एडगार हूवर के रवैये से निराशा हुई, लेकिन CIA के साथ उनकी बैठकें सकारात्मक रहीं। इस दौरान भारत ने ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी MI5 से भी सहायता ली, लेकिन धीरे-धीरे अमेरिका के साथ खुफिया सहयोग को बढ़ाने पर ध्यान दिया गया।
आतंकवाद विरोधी सहयोग और आधुनिक दौर
हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच खुफिया सहयोग आतंकवाद विरोधी प्रयासों में महत्वपूर्ण साबित हुआ है। 2008 के मुंबई हमलों (26/11) के बाद, CIA ने भारत को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी प्रदान की, जिससे लश्कर-ए-तैय्यबा के आतंकवादी डेविड हेडली की जांच में मदद मिली। इसके अलावा, काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले में CIA ने जिहादी सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी और पाकिस्तान की ISI के बीच संबंधों की जानकारी साझा की थी।
मार्च 2025 में, अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड की भारत यात्रा ने इस सहयोग को और मजबूती दी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ उनकी बैठकों में रक्षा, प्रौद्योगिकी, समुद्री सुरक्षा और सूचना साझाकरण पर चर्चा हुई। गबार्ड ने रायसीना डायलॉग में कहा कि भारत और अमेरिका साझा मूल्यों और सुरक्षा हितों के आधार पर अपने रिश्तों को और गहरा करेंगे।
चुनौतियां और भविष्य की राह
डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में भारत-अमेरिका संबंधों में व्यापारिक तनाव और टैरिफ जैसे मुद्दों ने चुनौतियां पैदा की हैं। फिर भी, खुफिया एजेंसियों के बीच गहरे रिश्ते इन तनावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि रॉ और CIA के बीच स्थापित संबंध स्थायी हैं और ये दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने में मददगार साबित होंगे।
हालांकि, व्यापक राजनयिक और आर्थिक संकट का समाधान केवल खुफिया सहयोग से संभव नहीं है। फिर भी, यह मजबूत आधार प्रदान करता है, जो भविष्य में अधिक समझदार राजनीतिक नेतृत्व के लिए रास्ता तैयार कर सकता है। भारत और अमेरिका के बीच यह खुफिया सहयोग न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए, बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

