2024 के लोकसभा चुनाव से शुरू हुई जाति की लड़ाई अब सरकार बनने के बाद भी जारी है। राहुल गांधी जाति जनगणना की बात करते-करते मोदी सरकार के बजट तक आ गए,और राहुल गांधी ने बजट के हलवे के सहारे संसद में जाति वाला चक्रव्यूह रचने की कोशिश की। जिसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी सांसद ने अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी पर पलटवार करते-करते ऐसे हथियार का इस्तेमाल किया कि जाति पर घमासान और तेज हो गया। दरअसल, अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए कह दिया कि जिसकी जाति का पता नहीं, वो गणना की बात करता है।अनुराग ठाकुर के इस बयान के बाद तभी हंगामा शुरू हो गया।अब संसद का ये जाति विवाद सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पहुंच गया।कांग्रेस और विपक्ष ने मुद्दा बनाते हुए अनुराग ठाकुर के बहाने पूरी बीजेपी को घेरा तो बीजेपी की तरफ से पूछा गया कि जो राहुल गांधी हर किसी की जाति पूछते रहते हैं,उन्हें जाति की वजह से इतनी मिर्ची क्यों लगी? बात यही पर नहीं रूकी जाति की लड़ाई संसद से सोशल मीडिया होते हुए सड़क तक पहुंच गई। कांग्रेस ने अनुराग ठाकुर के जाति वाले बयान पर जहां शहर-शहर विरोध प्रदर्शन किया तो वही बीजेपी ने इस लड़ाई को सोशल मीडिया के जरिए लड़ना शुरू कर दिया। बीजेपी कई ने सोशल मीडिया पर राहुल गांधी और अखिलेश यादव का पूराना वीडियो जारी किया। जिसमें वो जाति पूछते हुए सुने जा सकते हैं। इसके बाद बीजेपी ने राहुल गांधी की दादी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी पूराना वीडियो शेयर किया।जिसमें सुने जा सकते हैं कि इंदिरा गांधी कह रही हैं वो जातिवाद में विश्वास नहीं करती। बीजेपी ने ये वीडियो शेयर करते हुए लिखा,देश को तोड़ने की साजिश करने वाले राहुल गांधी को अपनी दादी को सुनना चाहिए।
जाति पर नए विवाद की शुरूआत बजट पर चर्चा के दौरान 29 जुलाई को हुआ। जब राहुल गांधी ने बजट बनाने वालों में ओवीसी एससी एसटी के बारे में सवाल पूछा। इसी पर पलटवार करने के दौरान अनुराग ठाकुर ने बयान दिया, जिसके बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव भड़क गए।राहुल गांधी को लगता है जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाने से उन्हें लोकसभा चुनाव में फायदा हुआ है। और इस फायदे को अब वो खोना नहीं चाहते, इस लिए लोकसभा चुनाव के बाद भी राहुल गांधी लगातार जाति जनगणना का मुद्दा उठाने से नहीं चुकते। ऐसे में ये जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर राहुल गांधी क्यों जाति वाला चक्रव्यूह बीजेपी के खिलाफ रचना चाहते है? 2024 के चुनावी आंकड़ों पर अगर नजर डाले तो पता चलेगा कि कांग्रेस ने अपना दलित वोट बढ़ा लिया है। जिसका फायदा दलित आरक्षित सीटों पर कांग्रेस के जीत के रूप में दिखा।देशभर में लोकसभा की 84 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व है।2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को दलितों के 16.7 फीसदी वोट मिले थे।और कांग्रेस को सिर्फ 6 एससी रिजर्व सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने दलितों के 20.8 फीसदी वोट हासिल किए। और एससी रिजर्व सीटों में से 20 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली। इस तरह से कांग्रेस को 2019 के मुकाबले 2024 में 14 सीटों का सीधा फायदा हुआ।अगर आप बीजेपी का ग्राफ देखे तो 2024 के चुनाव में बीजेपी का ग्राफ थोड़ा उलट गया। 2019 में बीजेपी को 35.3 फीसदी दलित वोट और 46 रिजर्व एससी सीटों पर जीत मिली थी… 2024 में बीजेपी का दलित वोट घटकर 34.5 फीसदी रह गया। और दलित रिजर्व सीट 46 से घटकर 29 रह गए। इस तरह से बीजेपी को 2019 के मुकाबले 2024 में 17 दलित सीटों पर नुकसान हुआ था।
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2024 के चुनाव में जो ट्रेड पूरे देश में देखा गया।उस ट्रेड का एपिक सेंटर है उत्तर प्रदेश का अयोध्या। हिंदुत्व का पावर सेंट इस चुनाव में जाति दांव से ही हार गया।जाति पर मचे बवाल का मुख्य वजह जाति जनगणना की मांग है।क्योंकि जाति जनगणना वो मांग है। जिसके दम पर विपक्षी इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को लोकसभा चुनाव 2024 में पटखनी दी।यही वजह है कि बीजेपी इस बार खुद के दम पर सरकार नहीं बना पाई। और जेडीयू-टीडीपी जैसे सहयोगियों के दम पर तीसरी बार सरकार बनाई। बिहार में जातिय जनगणना के बाद कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को ये अहसास हो गया कि चुनावों में जीत की चावी जाति वाले एजेंडे में छिपी है।जिससे हिंदुत्व की राजनीति का अंत भी हो सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस से लेकर पूरा विपक्ष जातिय जनगणना की मांग लगातार कर रहा है। 2024 के चुनाव के वक्त जब चुनावी कैंपेन के दौरान जाति वाला मुद्दा हावी था,राहुल गांधी जहां जाति जनगणना को एक्सरे बताकर बीजेपी पर वार कर रहे थे तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संपत्ति छीनने का डर दिखा कर चुनावी रैलियों में राहुल के वार पर पलटवार कर रहे थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए जाति वाला दांव मास्टर स्ट्रोक का काम किया था। खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए,क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने बहुत खराब प्रदर्शन किया था।लेकिन जाति जनगणना को मुद्दा बनाकर दोनों पार्टियों का ग्राफ में जबरदस्त उछाल देखने को मिला। जातीय जनगणना के माध्यम से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ने पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच ये मेसेज देने की कोशिश की कि जबतक जातिय जनगणना नहीं होगी, तब तक उनका विकास नहीं हो सकता।इसका फायदा दोनों ही पार्टियों को लोकसभा चुनाव में हुआ भी उत्तर प्रदेश में नतीजा ऐसा आया जिसका किसी ने उम्मीद नहीं की थी। यही वजह है कि दोनों ही पार्टी के बड़े नेता जाति जनगणना का मुद्दा लगातार उठाते रहते है।अखिलेश यादव तो यहां तक कहते हैं कि जिसे जाति को लेकर दिक्कत हो। उसे मंडल कमीशन का किताब खरीद लेना चाहिए।देश में जाति पर बहस चल ही रहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर ऐसा फैसला सुनाया कि विपक्ष और ज्यादा आक्रामक हो गया।सुप्रीम कोर्ट ने दलितों के लिए आरक्षण कोटा के भीतर कोटा को मंजूरी दी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है, यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होंगी। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया। हालांकि, कोर्ट का ये भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कांग्रेस ने बीजेपी पर और हमला तेज कर दिया।जाति पर छिड़ी सियासी लड़ाई कोई नई नहीं है। भारतीय राजनीति से जाति कभी जाती ही नहीं है। क्योंकि यही जाति संसद में नेताओं की कुर्सी पक्की करती है। राहुल गांधी और अखिलेश यादव से पहले जाति जनगणना कराने का मुद्दा नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव का रहा है। केंद्र में यूपीए सरकार के समय 2010 में जाति जनगणना की मांग हुई थी, पर तब कांग्रेस ने इनकार कर दिया था। अभी पिछले साल ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति जनगणना का मुद्दा उठाया और बिहार सरकार ने जाति जनगणना करवाई गई।यही नहीं जनगणना की रिपोर्ट भी जनता के सामने लाई गई। जब बिहार में जाति जनगणना करावाई गई तो भारतीय जनता पार्टी उस वक्त विपक्ष में थी। लेकिन जाति जनगणना के हर स्टेप का भारतीय जनता पार्टी ने सपोर्ट किया। बिहार में जाति सर्वेक्षण के बाद ही नए सिरे से देशभर जनगणना की मांग उठी।राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लपक लिया।इसके बाद से जीतने भी चुनाव हुए राहुल गांधी ने हर चुनाव में जाति जनगणना की बात की जिसका फायदा भी कांग्रेस को हुआ। अब इसी फायदे को आगे के विधानसभा चुनाव में भुनाने के लिए राहुल गांधी ने नए जाति वाला चक्रव्यूह रच दिया है।
2024 के चुनाव में कांग्रेस ने दलित वोट प्लस कर लिया,कांग्रेस ने आदिवासी वोट भी प्लस किया,कांग्रेस के मुस्लिम वोट भी प्लस हुए। राहुल गांधी को अभी पिछड़ा वोट प्लस करना है, यानी दलित,आदिवासी, मुसलमान, पिछड़ा राहुल गांधी को लगता है कि जातियों का ये चक्रव्यूह बन गया तो अगले चुनाव में वो पीएम मोदी को इस चक्रव्यूह में फंसा लेंगे।दरअसल, राहुल गांधी का निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोट बैंक पर हैं। बीजेपी पिछले तीन दशक में जिस वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही है।अब उस वोट बैंक में राहुल गांधी सेंध लगाना चाहते हैं। 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी 160 सांसदों वाली पार्टी ही बन पाई थी। बीजेपी ने जब दलित और पिछड़ों के वोट जोड़े तभी वो 300 सीट से आगे निकल पाई।और ये कारनामा बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे की वजह से कर पाई।1996 के चुनाव में बीजेपी को 161 सीटे मिली थी।उस चुनाव में बीजेपी को जितनी सीटें मिली थी उसका 49 फीसदी हिस्सा अपर कास्ट यानी सवर्ण वोट का था।1996 में बीजेपी को 33 फीसदी वोट पिछड़ों के मिले थे।1996 में बीजेपी को मिले वोट में दलित वोट का हिस्सा 11 फीसदी था और आदिवासी वोट का हिस्सा 7 फीसदी था। 2019 में बीजेपी को जितने वोट मिले थे उसमें सवर्ण वोट का हिस्सा 49 फीसदी से घटकर 30 फीसदी रह गया,ओबीसी वोट का हिस्सा 33 फीसदी से बढ़कर 44 फीसदी हो गया और दलित वोट का हिस्सा 11 फीसदी से बढ़कर 16 फीसदी हुआ इसके साथ ही आदिवासी वोट का हिस्सा 7 फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी हो गया।अब वोट का यही गुणा गणित कांग्रेस लगा रही है… राहुल गांधी बीजेपी के वोट बैंक को उलट देना चाहते हैं। इसलिए बार-बार राहुल जाति जनगणना की बात कर रहे हैं।क्योंकि आगे अभी हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं। और राहुल गांधी लोकसभा चुनाव की तरह ही जाति जनगणना का माइलेज इन चुनावों में भी लेना चाहते हैं।दरअसल, वक्त के साथ कांग्रेस पार्टी ने अपनी सियासत में बदलाव किया है। जिस तरह 2014 में बीजेपी ने अपने में बदलाव लाई और उसे सफलता मिली।अब ठीक उसी तरह कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल ली है।तभी तो कांग्रेस जाति जनगणना की बात कर रही है। जति जनगणना की मांग वैसे पुरानी है। फर्क सिर्फ इतना है कि तब लालू यादव मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार जैसे नेता इस मुद्दा को उठाते थे। अब अखिलेश यादव और राहुल गांधी उठा रहे हैं।
लेखक
सरफराज सैफी
न्यूज़ एंकर / वरिष्ठ पत्रकार