पिता बनाना चाहते थे आईएएस लेकिन यूपी के टॉप 25 मोस्ट वांटेड क्रिमिनल लिस्ट आ गए बृजेश सिंह
उत्तर प्रदेश के टॉप 25 मोस्ट वांटेड क्रिमिनल लिस्ट में बृजेश का नाम शामिल हो चुका है। उस पर कुल 41 मामले दर्ज हैं। 15 में क्लीन चिट मिल चुकी हैं। बाकी के 26 केस कोर्ट में हैं। कई मामलों में आज तक ट्रायल नहीं शुरू हो सका। किसी मामले में अब तक कोई सजा नहीं हुई।
बृजेश की कहानी में अनहोने सी लगती है। इमोशन है। ड्रामा है। क्राइम तो ऐसा कि सुनने वालों की रूह कांप जाए। आइए आज आपको बृजेश की शुरू से लेकर अब तक की कहानी बताते हैं। शुरुआत उनके बचपन से जब वो बृजेश नहीं बल्कि अरुण सिंह हुआ करता था।
साल 1964 वाराणसी का धौरहरा गांव। किसान और स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा अरुण सिंह। रविंद्र का सपना था कि उनका बेटा बड़ा होकर आईएएस बने और परिवार का नाम रोशन करे। अरुण पढ़ाई में अच्छा था। उसने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और में दाखिला ले लिया। इसके साथ ही वो आईएएस परीक्षा की तैयारी भी करने लगा।रुण को अपने पिता से बहुत लगाव था इसलिए वो उनका सपना पूरा करने के लिए जमीन आसमान एक करने को तैयार था। लेकिन फिर अरुण की जिंदगी में एक ऐसा दिन आया जिसने उसे एक होनहार छात्र से माफिया बना दिया। 27 अगस्त 1984 को गांव के 6 दबंगों ने अरुण के पिता की हत्या कर दी। अरुण इस हादसे को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके सिर पर अपनी पिता की मौत का बदला लेने का खून सवार हो गया।
यह भी पढ़े: यूपी के हाईटेक जिले में महिला IPS अफसर करा रहीं शांतिपूर्ण मतदान
इसके बाद अरुण के पिता की हत्या का आरोप लगा पड़ोस के पांचू पर। पांचू उस वक्त इलाके में सबसे पॉवरफुल हुआ करता था। अरुण पांचू के घर पहुंचा। घर के बाहर पांचू के पिता हरिहर सिंह बैठे थे। उसने झुककर उनके पैर छुए, शॉल भेंट की और बंदूक निकालकर गोलियों से छलनी कर दिया। पिता की हत्या का बदला लेने की यह पहली कड़ी थी।
उसके पिता की हत्या में गांव के ही प्रधान रघुनाथ की अहम भूमिका थी, जिसे अरुण ने भरी कचहरी में एके-47 से भून दिया। पूर्वांचल के इतिहास में पहली बार एके -47 से हत्या की गई। ऐसे में पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। इस गैंगवार को रोकने के लिए टीम बनाई। फिर पुलिस एनकाउंटर में पांचू को मार दिया गया। इस एनकाउंटर से लगा कि खूनी खेल बंद हो जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ।
सिकरौरा गांव में पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित 6 लोगों की हत्या कर दी गई। इस दौरान अरुण को गोली लगी, पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फिर पुलिस ने अरुण को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया, यहां से वह फरार हो गया। पुलिस ने हर जगह उसकी तलाश शुरू की और कुछ साल बाद उसे फिर से गिरफ्तार किया गया।अरुण ने बदला लेने के लिए 6 लोगों की हत्या कर दी। इस वाकये ने जनता के बीच उसका खौफ पैदा कर दिया। अरुण को भी अपनी ताकत का एहसास होने लगा। अब वो अरुण सिंह से बदलकर माफिया बृजेश सिंह के नाम से जाना जाने लगा। जेल में उसकी मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई। जल्द ही अच्छी दोस्ती हो गई। धीरे-धीरे दोनों ने मिलकर ठेकेदारी और रंगदारी जैसे काम शुरू कर दिए।
1988 में त्रिभुवन के पुलिस हेड कॉन्स्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या में नाम आया साधु सिंह और मुख्तार अंसारी का। इस हत्याकांड के पहले तक इन दोनों गैंग के बीच कोई खास दुश्मनी नहीं थी, लेकिन इसके बाद दोनों एक-दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन बन गए। त्रिभुवन अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसमें बृजेश ने उसकी मदद करने की ठानी।
साधु सिंह की हुई थी हत्या
राजेंद्र सिंह की हत्या के बाद साधु सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार किया। जब साधु जेल गया था तभी वह पिता बना। ऐसे में साधु अपनी पत्नी और बच्चे को देखने अस्पताल आया। इसी दौरान पुलिस की वर्दी पहने एक व्यक्ति ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने बताया कि ये हत्या बृजेश ने की। दोपहर में हुई इस हत्या के 6 घंटे बाद खबर आई कि साधु सिंह की मां-भाई समेत परिवार के 8 लोगों को मुदियार गांव में मार डाला गया। एक के बाद ऐ हत्या ने पूर्वाचंल को हिला कर रख दिया।